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At the Feet of The Mother

SAVITRI Book Three. Canto Three (Eng-Hindi)

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BOOK THREE. THE BOOK OF THE DIVINE MOTHER

Canto Three. The House of the Spirit and the New Creation

 

A mightier task remained than all he had done.

अभी तक उसकी जो प्राप्ति थी उससे एक महत्तर कार्य शेष रह गया था।

To that he turned from which all being comes,
A sign attending from the Secrecy
Which knows the Truth ungrasped behind our thoughts
And guards the world with its all-seeing gaze.

जहां से समस्त सृष्टि की उत्पत्ति होती है अब वह उस सत् कीओर घूम गया,
परम गुह्यता का यह एक संकेत यहां उपस्थित है
जो हमारे विचारों के पीछे छिपे अग्राह्य परम सत्य का ज्ञाता है
और अपनी सर्वगोचर दृष्टि से इस जगत् को सुरक्षित रखता है।

In the unapproachable stillness of his soul,
Intense, one-pointed, monumental, lone,
Patient he sat like an incarnate hope
Motionless on a pedestal of prayer.

योगी अपनी अन्तरात्मा की अगम्य नीरवता में,
दृढ़, एकनिष्ठ, एकाग्र, स्मारक सम अचल, एकाकी था,
धैर्यवान वह एक आशा की मूर्ति सम अचल बना
एक प्रार्थना की पीठिका पर स्थिर आसीन था।

A Strength he sought that was not yet on earth,
Help from a Power too great for mortal will,
The Light of a Truth now only seen afar,
A sanction from his high omnipotent Source.

वह एक ऐसी शक्ति की खोज में था जो अभी धरा की नहीं हो पायी थी,
उसने एक महाशक्ति से सहायता चाही जो हमारे नश्वर संकल्प हित अति महान् थी,
एक अमर सत्य की ज्योति को मांगा पर यह अभी अति दूर थी,
उसके अपने सर्वशक्तिशाली परम स्रोत की यह एक अनुमन्ता थी।

But from the appalling heights there stooped no voice;
The timeless lids were closed; no opening came.

किन्तु उन भीषण अति उन्नत उच्चताओं से कोई वाणी नीचे नहीं उतरी;
अकाल के नेत्र मुंदे थे; कोई राह नहीं सुझायी।

A neutral helpless void oppressed the years.

एक उदासीन असहाय शून्यता वर्षों तक योगी पर छायी रही।

In the texture of our bound humanity
He felt the stark resistance huge and dumb
Of our inconscient and unseeing base,
The stubborn mute rejection in Life’s depths,
The ignorant No in the origin of things.

हमारी जकड़ी मानवता की इस संरचना में
योगी ने हमारे अचित् और अन्धे तमस् के आधार में
नग्न और भीषण और मूढ़ विरोध की अनुभूति पायी,
यह हठीला मूक निषेध जीवन कीगहनताओं में है
यह अज्ञानी ‘नकार’ पदार्थों के आदि मूल में है।

A veiled collaboration with the Night
Even in himself survived and hid from his view:
Still something in his earthly being kept
Its kinship with the Inconscient whence it came.

अविद्या की रात्रि के साथ एक गोपनीय सहयोगिता अब तक भी
योगी के अपने अन्तर में उसकी आत्म दृष्टि से छिपी जीवित थी:
अभी भी उसकी भौतिक सत्ता में किसी वस्तु ने बचा रखा था
उस जड़ अचित् से निज बन्धुत्व को, जहां से वह जन्मीथी।

A shadowy unity with a vanished past
Treasured in an old world-frame was lurking there,
Secret, unnoted by the illumined mind,
And in subconscious whispers and in dream
Still murmured at the mind’s and spirit’s choice.

यह लुप्त अतीत से जुड़ी एक प्रेतरूपी एकता थी
जिसे एक पुरातन संसारी-चौखटे में जड़ संजो रखा था,
यह गोपित थी, प्रबुद्ध मन तक इसे लक्ष नहीं कर पाया था,
यह अभी तक अवचेतन फुसफुसाहटों और स्वप्न में आती
तथा उसके मानस और चैत्य सत्ता के निर्वाचन पर बड़बड़ाती थी।

Its treacherous elements spread like slippery grains[317]
Hoping the incoming Truth might stumble and fall,
And old ideal voices wandering moaned
And pleaded for a heavenly leniency
To the gracious imperfections of our earth
And the sweet weaknesses of our mortal state.

इसके कपटी तत्त्व गोल दानों सम चहुं ओर फैले बिखरे रहते
इस आशा में कि परम सत्य आते ही फिसल कर गिर जाये,
और जीर्ण आदर्श की वाणियां आह भरती विचरण करें
और एक दैवी कृपा हित याचना करती रहें
कि प्रभु हमारी पार्थिव अपूर्णताओं पर कृपादृष्टि रखें,
और ये हमारे नश्वर जीवन की मधुर दुर्बलताओं की दुहाई देतीं।

This now he willed to discover and exile,
The element in him betraying God.

अब इस प्रभु से छल करते तत्त्व को उसने
अपने अन्तर में खोजकर बाहर निकाल देने का संकल्प लिया।

All Nature’s recondite spaces were stripped bare,
All her dim crypts and corners searched with fire
Where refugee instincts and unshaped revolts
Could shelter find in darkness’ sanctuary
Against the white purity of heaven’s cleansing flame.

उसने सकल स्वभाव को गुह्य दिशाओं की परतें उघाड़ नग्न कर दिया,
आत्मशिखा के प्रकाश में प्रकृति के धुंधले कक्षों और कोनों को खोजा
जहां शरणागत वृत्तियां और अरूपी विद्रोहीभावनाएं
श्वेत पावन स्वर्गिक ज्वाला के शोधनकार्य के विरोध में
तमस् की अंधेरी शरणस्थली में शरणले सकती थीं।

All seemed to have perished that was undivine:
Yet some minutest dissident might escape
And still a centre lurk of the blind force.

सब आसुरी प्रवृत्ति नष्ट हो गयी लगती थी:
तथापि किसी आणविक विरोधी तत्त्व के बचे रहने की सम्भावना थी
और अभी भी उस अन्धी ऊर्जा का एक केन्द्र कहीं छिपा था।

For the Inconscient too is infinite;
The more its abysses we insist to sound,
The more it stretches, stretches endlessly.

क्योंकि अचित् महाशक्ति भी अनन्त है;
इसके गर्तों की जितनी हम थाह पाने का आग्रह करते हैं,
उतनी ही यह फैलती जाती है, असीम इसका विस्तार है।

Then lest a human cry should spoil the Truth
He tore desire up from its bleeding roots
And offered to the gods the vacant place.

कहीं एक मनुज चीत्कार परम-ऋत को कलुषित न कर दे
अत: योगी ने कामना को रिसती जड़ तक उखाड़ फेंक दिया
और इस रिक्त स्थान को देवताओं हित अर्पित कर दिया।

Thus could he bear the touch immaculate.

इस तरह वह अति पावन विशुद्ध स्पर्श को सहने योग्य बन सका।

A last and mightiest transformation came.

अब एक अन्तिम चरम सामर्थ्यशाली रूपान्तर उसमें अवतरित हो गया।

His soul was all in front like a great sea
Flooding the mind and body with its waves;
His being, spread to embrace the universe,
United the within and the without
To make of life a cosmic harmony,
An empire of the immanent Divine.

उसका आत्म-पुरुष एक महासागर सम सामने आ गया
जिसने इसके मन और देह को निज लहरों में डूबो दिया;
उसकी सत्ता, सकल विश्व को आलिंगन में भर लेने को फैल गयी,
अन्तरतम और बर्हितम अब युक्त हो एक हो गये
जिसने व्यक्ति-जीवन को एक वैश्विक सामञ्जस्यसे जोड़ दिया,
अन्तर्यामी परमेश का एक सर्वव्यापी साम्राज्य बना दिया।

In this tremendous universality
Not only his soul-nature and mind-sense
Included every soul and mind in his,
But even the life of flesh and nerve was changed
And grew one flesh and nerve with all that lives;
He felt the joy of others as his joy,
He bore the grief of others as his grief;[318]
His universal sympathy upbore,
Immense like ocean, the creation’s load
As earth upbears all beings’ sacrifice,
Thrilled with the hidden Transcendent’s joy and peace.

इस विशाल वैश्विक एकत्व में
अब केवल उसका चैत्यस्वभाव और मानसिक-बोध ही
प्रत्येक जीव और प्रत्येक मन से एकात्म हो मात्र नहीं जुड़े थे,
वरन् उसकी मांसल देह और स्नायु तक बदल गये
और सम्पूर्ण जीवनों की देह और नाड़ी के साथ मिल एक हो गये;
अब वह अन्यों के सुख को अपना जैसा अनुभव करता,
दूसरों के दुःख को अपना समझ वहन करता;
उसकी वैश्विक सहानुभूति सागर सम विशाल हो गयी,
और उसने इस सृष्टि का बोझ ऐसे उठा लिया
जैसे यह पृथ्वी सकल प्राणियों के बलिदान का भार उठाती है,
अन्तर गोपित परात्पर प्रभु के हर्ष और शान्ति से पुलकित रहती है।

There was no more division’s endless scroll;
One grew the Spirit’s secret unity,
All nature felt again the single bliss;
There was no cleavage between soul and soul,
There was no barrier between world and God.

अब उसमें प्राणियों का विभाजनकारी अनन्त खाता निःशेष हो गया;
विश्वात्मा की गुह्य एकता में परमैकम् विकसित हो उठा,
सम्पूर्ण विश्व-स्वभाव एक ही परमानन्द की अनुभूति देता।
अब जीव और जीव के मध्य कोई भेद नहीं रहा था,
और जगत् और परमात्मा के मध्य कोई बाधा नहीं थी।

Overpowered were form and memory’s limiting line;
The covering mind was seized and torn apart;
It was dissolved and now no more could be,
The one Consciousness that made the world was seen;
All now was luminosity and force.

आकार और स्मृति की सीमित रेखा अभिभूत हो गयी;
मन रूपी आवरण को चीर फाड़कर हटा दिया गया;
यह पूर्णत: विघटित हो गया उसका अस्तित्व ही मिट गया,
एक चित्शक्ति जिसने यह संसार रचा है, साक्षात् दिखायी देती;
अब समस्त सृष्टि तेजोमय और शक्ति-रुपा थी।

Abolished in its last thin fainting trace
The circle of the little self was gone;
The separate being could no more be felt;
It disappeared and knew itself no more,
Lost in the Spirit’s wide identity.

अपने अन्तिम क्षीण अचेत अवशेष तक मिटते मिटते
उसके लघु-अहम् का घेरा समाप्त हो गया;
पृथक्-सत्ता की अनुभूति तक लोप हो गयी;
इसे अपना भान तक न होता और पूर्णत: विलीन हो गयी,
व्यक्ति चेतना की पहचान विशाल एकात्मता में खो गयी।

His nature grew a movement of the All,
Exploring itself to find that all was He,
His soul was a delegation of the All
That turned from itself to join the one Supreme.

उसकी प्रकृतिवर्धित हो सर्वभूतात्मा की एक गति बन गयी,
आत्मान्वेषण द्वारा वह जान गया कि तत्-सत् ही भूतमात्र था,
उसका आत्मपुरुष सकल सृष्टि का एक प्रतिनिधि था
जो परमेश्वर से युक्त होने को स्वयं से विमुख हो गया था।

Transcended was the human formula;
Man’s heart that had obscured the Inviolable
Assumed the mighty beating of a god’s;
His seeking mind ceased in the Truth that knows;
His life was a flow of the universal life.

अब मानवीय नियम के सूत्र को पार कर लिया था;
मानव का वह हृदय जिसने अमल प्रभु को धूमिल कर दिया
अब एक देवता के शक्तिशालीतालों का यन्त्र बन धड़कता;
उसका जिज्ञासु मन सर्वज्ञानी परम-सत्य में पहुंच लीन हो गया,
उसका जीवन विश्व जीवन की एक धारा बन गया।

He stood fulfilled on the world’s highest line
Awaiting the ascent beyond the world,
Awaiting the Descent the world to save.

वह संसार के सर्वोच्च ध्रुव पर आत्मतृप्त खड़ा
इस जगत् के परे आरोहण की प्रतीक्षा में था,
इस जगत् की रक्षा हित वह अवतरण की राह देख रहा था।

A Splendour and a Symbol wrapped the earth,
Serene epiphanies looked and hallowed vasts
Surrounded, wise infinitudes were close
And bright remotenesses leaned near and kin.

एक श्रीशोभा और एक दिव्य प्रतीक ने इस धरा को लपेट लिया,
शान्त दिव्य प्रकाश दिखायी देता और पावन विशालताओं ने घेर लिया,
प्रज्ञामयी अनन्तताएं उसके समीप खिंच आयीं
और तेजस्वी सुदूरियां पास आ बन्धु सम लगतीं।

Sense failed in that tremendous lucency;[319]
Ephemeral voices from his hearing fell
And Thought potent no more sank large and pale
Like a tired god into mysterious seas.

उस विशाल दीप्ति में बुद्धि असफल हो गयी थी;
क्षणिक वाणियां उसको सुनाई नहीं देती थीं
और विचारधारा अब बलहीन हो निस्तेज हो गयी
और एक क्लान्त देवता सम रहस्यमय सागरों में डूब गयी।

The robes of mortal thinking were cast down
Leaving his knowledge bare to absolute sight;
Fate’s driving ceased and Nature’s sleepless spur:
The athlete heavings of the will were stilled
In the Omnipotent’s unmoving peace.

भौतिक विचार प्रणाली के परिधान सब उतर गये
योगी का ज्ञान अब परम-दृष्टि के सम्मुख निरावरण खड़ा था;
नियति का विधान मिट गया और विश्व-प्रकृति की जगाती ठोकर समाप्त हो गयीः
सर्वशक्तिशाली प्रभु की अचल शान्ति में
इच्छा-शक्ति की कसरती भाग-दौड़ की हांफन मूक थी।

Life in his members lay down vast and mute;
Naked, unwalled, unterrified it bore
The immense regard of Immortality.

उसके अंगों में प्राणशक्ति विशालता और मौन अवस्था में शान्त थी;
आवरणहीन, असीम और अभय हो
यह शाश्वत अमरता की विशाल दृष्टि की धारक थी।

The last movement died and all at once grew still.

अन्तिम कालगति भी मिट गयी और अब समस्त पर नीरवता छा गयी।

A weight that was the unseen Transcendent’s hand
Laid on his limbs the spirit’s measureless seal,
Infinity swallowed him into shoreless trance.

अगोचर परात्परता के हाथ की एक बोझिलता ने
उसके अंगों पर दबाव डाल परमेश्वर की अमेय छाप लगा दी,
अनन्तता ने तटहीन असीम समाधि में उसे निगल लिया।

 

As one who sets his sail towards mysteried shores
Driven through huge oceans by the breath of God,
The fathomless below, the unknown around,
His soul abandoned the blind star-field, Space.

जैसे कोई अपनी नौका के पालों को गुह्य तटों की ओर खोल दे
और प्रभु के श्वासवायु द्वारा विशाल सागरों पर बहने दे,
वैसे ही उसकी आत्मा ने तारों के धूमिल क्षेत्र, व्योमाकाश को तज दिया,
अब उसके नीचे अगाध पाताल था और अज्ञात चहुं ओर व्याप्त था।

Afar from all that makes the measured world,
Plunging to hidden eternities it withdrew
Back from mind’s foaming surface to the Vasts
Voiceless within us in omniscient sleep.

इस परिमित संसार के रचनाकार तत्त्वों से अति दूर हो,
उसकीसत्ता गुह्य नित्यताओं में निमग्न हो
मन की फेनिल तलछट को त्यागकर पीछे हट गयी
अन्तर में सर्वज्ञातासुषुप्ति की निःशब्द परम विशालताओं में डूब गयी।

Above the imperfect reach of word and thought,
Beyond the sight, the last support of form,
Lost in deep tracts of superconscient Light,
Or voyaging in blank featureless Nothingness,
Sole in the trackless Incommensurable,
Or past not-self and self and selflessness,
Transgressing the dream-shores of conscious mind
He reached at last his sempiternal base.

शब्द और चिन्तन की अधूरी पहुंच से ऊपर,
दृष्टि और आकार का सहारा खोजते आधार से परे,
वह पराचेतना के दिव्य प्रकाश के गहन पथों में खोया था
या निराकारी शून्य असत् की रिक्तता में यात्रा कर रहा था,
उन अगम्यपथहीन घोर विराटताओं में एकाकी था,
या अस्तित्वहीनता और आत्मतत्त्व और निर्वैयक्तिता से निकल,
वह सचेत मानस के स्वप्निल तटों की सीमाएं पार कर
अब अन्त में अपने अविनाशी मूलाधार में पहुंच गया।

On sorrowless heights no winging cry disturbs,
Pure and untouched above the mortal play
Is spread the spirit’s hushed immobile air.

उनके शोकातीत शिखरों की शान्ति को कोई कातर पुकार क्षुब्ध नहीं करती,
इस मानवीय लीला के ऊर्ध्व में अमल और अस्पर्श्य
आत्मा का नीरव और अचल वातावरण चहुं ओर व्याप्त है।

There no beginning is and there no end;[320]
There is the stable force of all that moves;
There the aeonic labourer is at rest.

वहां कोई आदि आरम्भ नहीं है और कोई अन्त नहीं है;
यहां जो सब गतिशील है वहां उसका स्थिर शक्ति-स्त्रोत है;
वहां पर शाश्वत युगों का श्रमिक विश्रामावस्था में स्थित है।

There turns no keyed creation in the void,
No giant mechanism watched by a soul;
There creaks no fate-turned huge machinery;
The marriage of evil with good within one breast,
The clash of strife in the very clasp of love,
The dangerous pain of life’s experiment
In the values of Inconsequence and Chance,
The peril of mind’s gamble, throwing our lives
As stake in a wager of indifferent gods
And the shifting lights and shadows of the idea
Falling upon the surface consciousness,
And in the dream of a mute witness soul
Creating the error of a half-seen world
Where knowledge is a seeking ignorance,
Life’s steps a stumbling series without suit,
Its aspect of fortuitous design,
Its equal measure of the true and false
In that immobile and immutable realm
Find no access, no cause, no right to live:
There only reigns the Spirit’s motionless power
Poised in itself through still eternity
And its omniscient and omnipotent peace.

वहां शून्यता में कोई भी यान्त्रिक शक्ति चक्कर लगाती नहीं घूमती,
कोई आत्मसत्ता वहां किसी घोर यन्त्र की निरीक्षिका द्रष्टा नहीं थी;
नियति द्वारा संचालित किसी विशाल मशीन की घरघराहट सुनायी नहीं देती;
एक ही अन्तर में पाप औ’ पुण्य का गठबन्धन है,
प्रेमालिंगन की जकड़न के साथ टकराव का संघर्ष नहीं है
जीवन के परीक्षण में घोर असंगति और हठात् दैवयोग के
मूल्यों द्वारा प्रदत्त त्रासदायी पीड़ा की अनुभूति नहीं है,
उदासीन देवताओं की एक चौपड़ पर दांव समान हमारे जीवनों को लगा देना,
ऐसी जुआरी मानसिकता का संकट वहां नहीं था,
और हमारे मनोभाव का सतत अस्थिर छाया और प्रकाश समान
पार्थिव बहिर्चेतना के धरातल पर गिरते रहने की सम्भावना वहां नहीं है,
और एक मूक साक्षी आत्म-पुरुष की स्वप्नावस्था में
इस आंशिक दृश्य संसार की रचना भ्रान्ति नहीं लगती,
जहां पर एक जिज्ञासु अविद्या वास्तविक ज्ञान है,
जीवन के पग-पग पर बेमेल ठोकरों की श्रृंखलाएं,
आकस्मिक योजना के इसके दृष्टिकोण,
सत्य और मिथ्या के लिए इसका एक समान मापदण्ड
इस सबका उस अचल और अविकारी साम्राज्य में प्रवेश नहीं है,
वहां इनके अस्तित्व का कोई कारण या अधिकार नहीं है:
वहां केवल चिदात्मा की गतिहीन शक्ति का राज्य है
जो स्थिर शाश्वतता के मध्य आत्मभाव में स्थित है
और अपनी सर्वज्ञ और सर्वशक्तिशाली शान्ति में आसीन है।

Thought clashes not with thought and truth with truth,
There is no war of right with rival right;
There are no stumbling and half-seeing lives
Passing from chance to unexpected chance,
No suffering of hearts compelled to beat
In bodies of the inert Inconscient’s make.

इस क्षेत्र में विचार विचार से और सत्य सत्य से नहीं टकराता,
अधिकार का विरोधी अधिकार के साथ संघर्ष नहीं होता,
वहां आधे अन्धे जीवनों की लड़खड़ाहट नहीं है
जो अवसर चूक जाने पर दैवयोग की प्रत्याशा में रहते हैं,
जड़ अचित् से रचित हमारे शरीरों के हृदय
वहां पर शोकाकुल हो धड़कने को विवश नहीं होते।

Armed with the immune occult unsinking Fire
The guardians of Eternity keep its law
For ever fixed upon Truth’s giant base
In her magnificent and termless home.

निरापद, गुह्य अमर हुताग्नि से सुसज्जित बने
परम-शाश्वतता के संरक्षक देवों ने इसका विधान दृढ़ता से
चरम-ऋत के विशाल आधार पर अनन्तता से
उसके भव्य और कालातीत भुवन में सतत अटल रखा है।

There Nature on her dumb spiritual couch
Immutably transcendent knows her source[321]
And to the stir of multitudinous worlds
Assents unmoved in a perpetual calm.
All-causing, all-sustaining and aloof,
The Witness looks from his unshaken poise,
An Eye immense regarding all things done.

वहीं पर परा विश्व-प्रकृति अपनी मूक आत्मिक शय्या पर आसीन है
निर्विकार भाव में परात्पर यह आत्म स्रोत की ज्ञाता है
और एक अखण्ड सतत प्रशान्ति में अविचल स्थित
यह असंख्य लोकों की गति संचालन को स्वीकृति देती है
समस्त का आदि कारण,सर्वाधार और एकाकी,
परम साक्षी दृष्टि अपने अटल आसन से समष्टि का निरीक्षण करती है,
विशालाकार एक दिव्य दृष्टि सकल सृष्ट पदार्थों को अवलोकती है।

Apart, at peace above creation’s stir,
Immersed in the eternal altitudes,
He abode defended in his shoreless self,
Companioned only by the all-seeing One.

सृष्टि के आन्दोलन से ऊपर शान्त और पृथक्,
अपने अमर उन्नतांशों में निमग्न,
योगी अपनी तट-हीन आत्मसत्ता में सुरक्षित रहता,
केवल सर्वद्रष्टा परमैकम् ही उसका सहचर था।

A Mind too mighty to be bound by Thought,
A Life too boundless for the play in space,
A Soul without borders unconvinced of Time,
He felt the extinction of the world’s long pain,
He became the unborn Self that never dies,
He joined the sessions of Infinity.

एक सर्वोच्च सत्यमन जो विचार धारणा से परे था,
एक मुक्त दिव्यप्राण जो इन दिशाओं में लीला हित अति शक्तिशाली था,
एक असीम चिदात्मा जिसे काल व्याप्त नहीं कर पाता,
योगी ने इस संसारी दीर्घ पीड़ा के अन्त का अनुभव पाया,
वह स्वयं अजात अमर परमात्मा तत्त्व बन गया,
चिरनित्यता के सत्रों में सम्मिलित हो गया।

On the cosmic murmur primal loneliness fell,
Annulled was the contact formed with time-born things,
Empty grew Nature’s wide community.

ब्रह्माण्डीय गुनगुनाहट पर उसका आदि एकाकीपन मिट गया,
काल में जन्मे पदार्थों के साथ हुआ समझौता रद्द हो गया,
विश्व-प्रकृति का विशाल समुदाय पूर्णत: रिक्त हो गया।

All things were brought back to their formless seed,
The world was silent for a cyclic hour.

सभी पदार्थों का अपनी आकारहीन बीजावस्था में पुनरावर्तन हो गया,
अब यह संसार एक युग-चक्र की घड़ी के लिए नीरव था।

Although the afflicted Nature he had left
Maintained beneath him her broad numberless fields,
Her enormous act, receding, failed remote
As if a soulless dream at last had ceased.

यद्यपि इस आक्रान्त सम्पूर्ण प्रकृति को उसने त्याग दिया था
किन्तु उसके नीचे धरा पर प्रकृति के अगणित क्षेत्रों का विस्तार सुरक्षित था,
उसके घोर कर्म अब पीछे हटते हुए, सुदूर हो, असफल हो गये,
मानों एक आत्माहीन स्वप्न था जो अन्त में मिट गया था।

No voice came down from the high silences,
None answered from her desolate solitudes.

उन उन्नत प्रशान्तताओं से कोई दिव्य-वाचा नीचे नहीं उतरी,
उसकी उदास निर्जन एकान्तताओं से कोई उत्तर नहीं आया।

A stillness of cessation reigned, the wide
Immortal hush before the gods were born;
A universal Force awaited, mute,
The veiled Transcendent’s ultimate decree.

निष्पत्ति की एक गतिहीन निस्तब्धता के साम्राज्य का विस्तार था,
देवों के जन्म से पहले का अमर मौन चहुं ओर व्याप्त था;
एक वैश्विक महाशक्ति मूक शान्तभाव से प्रतीक्षारत थी,
प्रच्छन्न गुह्य परात्पर परमेश्वरी के निर्णायक आदेश की।

 

Then suddenly there came a downward look
As if a sea exploring its own depths;
A living Oneness widened at its core
And joined him to unnumbered multitudes.

तब हठात् वहां नीचे की ओर देखती एक चितवन उतरी।
मानों सागर अपनी ही गहनताओं की गवेषणा कर रहा हो ऐसी दृष्टि थी,
एक प्राणवान् परम-एकत्व ने अपना मर्मस्थल विस्तृत कर
योगी को अपनी असंख्य बहुविधाओं से जोड़ दिया।

A Bliss, a Light, a Power, a flame-white Love[322]
Caught all into a sole immense embrace;
Existence found its truth on Oneness’ breast
And each became the self and space of all.

एक परमानन्द, एक परमाज्योति, एक पराशक्ति, दिव्यप्रेम की शुभ्र शिखा ने
सकल को एक अद्वितीय विशाल आलिंगन में बांध लिया;
अस्तित्व ने अपने सत्य को परमैकम् के वक्ष पर पा लिया
और प्रत्येक व्यष्टिसत्ता अब समष्टि की आत्मा और आकाश बन गयी।

The great world-rhythms were heart-beats of one Soul,
To feel was a flame-discovery of God,
All mind was a single harp of many strings,
All life a song of many meeting lives;
For worlds were many, but the Self was one.

ये महान् जग-सुर-ताल सब एक ही परमात्मा के हृदय की धड़कनें थीं,
यह अनुभूति प्रभु के अनुसंधान की ज्योतिशिखा थी,
सकल मानस एक ही वीणा के अनेक तार थे,
सकल प्राण अनेक सम्मिलित जीवनों का एक गीत था;
क्योंकि जगत् अनेक थे, किन्तु उनकी आत्मा एक थी।

This knowledge was now made a cosmos’ seed:
This seed was cased in the safety of the Light,
It needed not a sheath of Ignorance.

यह ज्ञान अब एक ब्रह्माण्डीय बीज मन्त्र बन गया:
इस बीज को पराज्योति के सुरक्षित खोल में रख दिया,
इसे अब अविद्या के आवरण की आवश्यकता नहीं रही।

Then from the trance of that tremendous clasp
And from the throbbings of that single Heart
And from the naked Spirit’s victory
A new and marvellous creation rose.

तब उस घोर आलिंगन की गहन समाधि से
और उस एकाकी महाप्राण हृदय-स्पन्दनों से
और आवरणहीन शून्य विश्वात्मा की विजय से
एक नूतन और अद्भुत सृष्टि उदित हो उठी।

Incalculable outflowing infinitudes
Laughing out an unmeasured happiness
Lived their innumerable unity;
Worlds where the being is unbound and wide
Bodied unthinkably the egoless Self,
Rapture of beatific energies
Joined Time to the Timeless, poles of a single joy;
White vasts were seen where all is wrapped in all.

असंख्य नित्यताएं बहने लगीं
एक अमेय प्रसाद उनके हास्य में प्रवाहित था
वे अपनी अनगिनत एकताओं में निवास करतीं;
इन लोकों में जहां सत्ता मुक्त और विशाल है
अचिन्त्यभाव में यह अहंकारहीन चिदात्मा की काया है;
परमानन्दीय ऊर्जाओं के हर्षोल्लास ने
त्रिकाल को कालातीत से जोड़, एक अद्वितीय हर्ष के ध्रुवों को मिला दिया;
शुभ्र धवल विस्तार दिखायी दिये जहां पर सकल सबको लपेटे थे।

There were no contraries, no sundered parts,
All by spiritual links were joined to all
And bound indissolubly to the One:
Each was unique but took all lives as its own,
And, following out these tones of the Infinite,
Recognised in himself the universe.

वहांद्वन्द्वों का विरोध नहीं था, कोई अंश पृथक् नहीं थे।
सब आत्मिक कड़ियों से आपस में सबसे जुड़े थे
और अटूटता से परमैकम् प्रभु से बंधे थे:
प्रत्येक अपने में अद्वितीय था किन्तु सब जीवनों को अपने जैसा मानता,
और, वह परम-नित्य के विभिन्न रंगों का अनुसरण कर,
अपनी अन्तरात्मा में सकल विश्व को पहचान गया।

A splendid centre of infinity’s whirl
Pushed to its zenith’s height, its last expanse,
Felt the divinity of its own self-bliss
Repeated in its numberless other selves.
It took up tirelessly into its scope
Persons and figures of the Impersonal,
As if prolonging in a celestial count,[323]
In a rapturous multiplication’s sum,
The recurring decimals of eternity.

अनन्तता के घूमते चक्र का एक भव्य केन्द्र बन गया
जिसने अपने अन्तिम विस्तार को उच्चता की चरमता तक उठा दिया,
इसने दिव्यता को अपने आत्मानन्द सम अनुभव किया
एवं इस अनुभूति को अन्य असंख्य आत्माओं में दुहराया:
इसने अपनी व्यापकता में उस निर्वैयक्तिक परमेश के
आकारों और व्यक्तित्वों का अथक भाव से धारण कर लिया,
मानों एक अनन्त संख्या की गणना में,
एक आनन्दवर्धक गुणा के योगफल में,
वह शाश्वतता के दशमलवों कोबारम्बार बढ़ाता जा रहा था।

None was apart, none lived for himself alone,
Each lived for God in him and God in all,
Each soleness inexpressibly held the whole.

कोई भी पृथक् नहीं था, कोई भी मात्र अपने लिए अकेला जीवित नहीं था,
प्रत्येक अपने अन्तर में बसे प्रभु हित और सबमें बसे प्रभु के लिए जीवित था,
प्रत्येक के एकाकीपन में अव्यक्त भाव से समग्रता का वास था।

There Oneness was not tied to monotone;
It showed a thousand aspects of itself,
Its luminous immutable stability
Upbore on a changeless ground for ever safe,
Compelled to a spontaneous servitude,
The ever-changing incalculable steps,
The seeming-reckless dance’s subtle plan
Of immense world-forces in their perfect play.

वहां विश्व एकता एकरसता की नीरस भावना से नहीं बंधी थी;
यह तो आत्मभाव के सहस्त्र पक्षों को दर्शाती,
इसकी प्रशान्त अविकारी स्थायी स्थिरता धारण करती
अपने में सतत सुरक्षित एक विकारहीन भूमि पर,
उन सतत बदलते अनिश्चित कदमों को,
जो सहज सेवाभाव हित बाध्य थे,
एवं आत्म परिपूर्णता के जगनाटक में व्यस्त उन भीषण विश्व शक्तियों के
अविचारी सम दिखते नृत्य की सूक्ष्म योजना वहन करती।

Appearance looked back to its hidden truth
And made of difference oneness’ smiling play;
It made all persons fractions of the Unique,
Yet all were being’s secret integers.

रुपायण ने पीछे मुड़कर अपने गोपित सत्य को अवलोका
और विभिन्नता में एकत्व की मुस्कराती लीला है जान गया;
जिसने सब व्यक्तियों को अद्वितीय परमेश का अंश बना दिया है,
तथापि सब भिन्न होते हुए भी सत्ता के गुह्य पूर्णांक थे।

All struggle was turned to a sweet strife of love
In the harmonised circle of a sure embrace.

सब संघर्ष प्रेम की मधुर नोक-झोंक में
एक निश्चित आलिंगन के संगीतमय वृत्त में परिवर्तित हो गया।

Identity’s reconciling happiness gave
A rich security to difference.

तदात्मता के हितकारी सुख ने
विभिन्नता को एक समृद्ध सुरक्षा प्रदान कर दी।

On a meeting line of hazardous extremes
The Game of games was played to its breaking point,
Where through self-finding by divine self-loss
There leaps out unity’s supreme delight
Whose blissful undivided sweetness feels
A commonality of the Absolute.

संकट भरे विपरीत ध्रुवों की एक मिलन-रेखा पर
समस्त लीलाओं की यह आदि लीला अपने विघटन बिन्दु तक अभिनीत हुई,
जहां पर दिव्य आत्मविस्मृति द्वारा आत्म-ज्ञान प्राप्ति के मध्य
एकत्व में जुड़ जाने का परम सुख फूटा पड़ता है
जिसकी अविभाजित माधुरी का आनन्द रस
परमेश्वर के साथ एक समुदाय होने का अनुभव देता।

There was no sob of suffering anywhere;
Experience ran from point to point of joy:
Bliss was the pure undying truth of things.

वहां पर दुःख-वेदना का रोदन कहीं नहीं था;
हर्ष मानों एक शिखर से दूसरे शिखर तक दौड़ता रहता:
आत्मानन्द पदार्थों में बसा हुआ विशुद्ध अमर सत्य था।

All Nature was a conscious front of God:
A wisdom worked in all, self-moved, self-sure,
A plenitude of illimitable Light,
An authenticity of intuitive Truth,
A glory and passion of creative Force.
Infallible, leaping from eternity,[324]
The moment’s thought inspired the passing act,
A word, a laughter sprang from Silence’ breast,
A rhythm of Beauty in the calm of Space,
A Knowledge in the fathomless heart of Time.

सकल विश्व-प्रकृति प्रभु का एक सचेत मुखमण्डल थी:
एक आत्म-संचालित, आत्म-स्थिर प्रज्ञा सबके अन्तर में कार्यरत थी;
असीम, अनन्त परमाज्योति की एक बहुलता थी,
आत्म-प्रस्फुटित परम-सत्य की एक प्रामाणिकता थी,
सर्जनहार दिव्य महाशक्ति की एक महिमा और उत्साहपूर्ण आवेश था,
अमोघ विचार शाश्वततासे उछलकर बाहर आता,
उस क्षण का वह विचार क्षणिक कर्म को प्रेरणा से भर देता।
परा-मौन के वक्ष से एक शब्द, एक हास्य फूट बह निकला,
आत्माकाश की उस प्रशान्ति में परा-सौन्दर्य का एक गीत बसा था
त्रिकाल के अगाध अन्तर में एक ज्ञान निवास करता।

All turned to all without reserve’s recoil:
A single ecstasy without a break,
Love was a close and thrilled identity
In the throbbing heart of all that luminous life.

सब अबाध-भाव से बिना विरक्ति के सबको भेंटते:
अविराम एक अद्वितीय आनन्द-रस झरता,
प्रेम एक सान्निध्य और पुलकित करती तदात्मता
जो उस आलोकित जीवन के समस्त हृदयों में धड़कती।

A universal vision that unites,
A sympathy of nerve replying to nerve,
Hearing that listens to thought’s inner sound
And follows the rhythmic meanings of the heart,
A touch that needs not hands to feel, to clasp,
Were there the native means of consciousness
And heightened the intimacy of soul with soul.

सबको एकता के सूत्र में बांधता एक विश्व आत्म-दर्शन,
स्नायु को प्रत्युत्तर देता एक दैहिक संवेदन,
विचार की अन्तर्ध्वनि को सुनती श्रवण शक्ति
जो हृदय की संगीतमयी सार्थकताओं का अनुसरण करती,
एक स्पर्शशक्ति जिसे अनुभव करने और धरने को हाथों की आवश्यकता नहीं थी
वहां पर चेतना के यही सहज नैसर्गिक यन्त्र उपकरण थे
जिनसे आत्मा की आत्मा के संग अभिन्नता उन्नत होती।

A grand orchestra of spiritual powers,
A diapason of soul interchange
Harmonised a oneness deep, immeasurable.

आत्मिक शक्तियों के एक भव्य समवेत संगीत-वादन ने,
आत्मिक-विनिमय की एक स्वरलहरी ने
एक एकात्मता की गहनता को अमेय और सुसंगतबना दिया।

In these new worlds projected he became
A portion of the universal gaze,
A station of the all-inhabiting light,
A ripple on a single sea of peace.

इन नवीन लोकों में वह प्रवेश कर
अब विश्व-दृष्टि का एक भाग बन गया,
सर्वव्यापक प्रकाश का एक केन्द्र बन गया,
शान्ति के एक अकेले सागर की एक उर्मिबन गया।

His mind answered to countless communing minds,
His words were syllables of the cosmos’ speech,
His life a field of the vast cosmic stir.

उसका मन असंख्य संचारी मनों को प्रत्युत्तर देता,
उसके शब्द ब्रह्माण्डीय गिरा के अक्षर होते,
उसका जीवन विराट् वैश्विक गति का एक क्षेत्र था।

He felt the footsteps of a million wills
Moving in unison to a single goal.

लक्ष-लक्ष संकल्पों के चरणों की वह अनुभूति पाता
सब एक ध्येय से जुड़े एक साथ गतिशील थे।

A stream ever new-born that never dies,
Caught in its thousandfold current’s ravishing flow,
With its eddies of immortal sweetness thrilled,
He bore coiling through his members as they passed
Calm movements of interminable delight,
The bliss of a myriad myriads who are one.

एक सतत नव-जन्मती अमर सरिता वहां प्रवाहित थी
जो अपनी सहस्र धाराओं के चंचल मदमस्त प्रवाह में धरी,
अमर माधुर्य के चक्रवातों में प्रफुल्लता से उमगती बहती,
इन कुण्डलों को योगी ने निज अंगों में प्रवाहित होते सहन किया
ये दीर्घ आत्मानन्द की शान्त गतियां हैं,
एक परमानन्द की असंख्य अगणित तरंगें हैं।

 

In this vast outbreak of perfection’s law
Imposing its fixity on the flux of things[325]
He saw a hierarchy of lucent planes
Enfeoffed to this highest kingdom of God-state.

परिपूर्णता-विधान के इस विराट् प्रादुर्भाव ने
अपना स्थैर्य पदार्थों के प्रवाह पर आरोपित कर दिया है
योगी ने दीप्तिमान स्तरों की एक परम्परा देखी
जो प्रभु-रियासत के इस सर्वोच्च राज्य को जागीर में मिली थी।

Attuning to one Truth their own right rule
Each housed the gladness of a bright degree,
Alone in beauty, perfect in self-kind,
An image cast by one deep truth’s absolute,
Married to all in happy difference.

इनके अपने शासन-अधिकार एक दिव्य सत्य से सुसंगत थे
प्रत्येक स्वयं में एक तेजस्वी अंश का आह्लाद धाम था,
सौन्दर्य में अद्वितीय, अपने वर्ग में परिपूर्ण,
एक गहन सत्य की परमोच्चता के प्रतिबिम्ब में ढला हुआ,
एक सुखकारी विभिन्नता में सबके साथ गठबन्धित था।

Each gave its powers to help its neighbours’ parts,
But suffered no diminution by the gift;
Profiteers of a mystic interchange,
They grew by what they took and what they gave,
All others they felt as their own complements,
One in the might and joy of multitude.

प्रत्येक अपने बलों का प्रयोग अपने पड़ोसियों की अंशपूर्ति हित करता,
किन्तु इस उपहार द्वारा किसी क्षति को नहीं भोगता;
सब एक गुह्यआदान-प्रदान द्वारा लाभान्वित होते,
वे जो पाते और जो देते दोनोंसे ही सब वर्धित होते,
अन्य सबको वे स्वयं अपना आत्मपूरक सम समझते,
एकता में शक्तिशाली और बहुलता में हर्षित होते।

Even in the poise where Oneness draws apart
To feel the rapture of its separate selves,
The Sole in its solitude yearned towards the All
And the Many turned to look back at the One.

उस सन्तुलन में जहां परमैकम् अपनी पृथक् आत्मसत्ताओं में
परम सुख की अनुभूति प्राप्त करने को एकान्तनिष्ठ हो जाता है,
वहां पर भी एकाकी सत्ता अपने एकान्त में इस समष्टि हित लालायित रहती
और यह बहुलता भी उस कैवल्य को पीछे मुड़-मुड़ देखती।

An all-revealing all-creating Bliss,
Seeking for forms to manifest truths divine,
Aligned in their significant mystery
The gleams of the symbols of the Ineffable
Blazoned like hues upon a colourless air
On the white purity of the Witness Soul.

एक सर्वोन्मेषी सबका सर्जनहार आत्मानन्द,
जो दिव्य-सत्यों को प्रकटाने के लिए आकृतियां खोज रहा है,
अपने रहस्यपूर्ण महत्त्व में संयुक्त
अनिर्वचनीय परमकी प्रतीक दीप्तियां
एक रंगहीन वातावरण पर इन्द्रधनुष समान धधकतीं
उस द्रष्टा आत्मपुरुष की शुभ्र-शुचिता की आभाएं थीं।

These hues were the very prism of the Supreme,
His beauty, power, delight creation’s cause.

ये सतरंगी शोभाएं पुरुषोत्तम की निजी रंगावलीसी
उसकी शोभा, शक्ति, आनन्द इस सृष्टि का मूल कारण थीं।

A vast Truth-Consciousness took up these signs
To pass them on to some divine child Heart
That looked on them with laughter and delight
And joyed in these transcendent images
Living and real as the truths they house.

एक विशाल सत्य-चेतना ने इन चिह्नोंको धारण कर लिया
इन्हें किसी दिव्य बाल विश्व-हृदय में स्थापित करने को
जो उनकीओर हास्य और मोद से भरा निहारता
और इन परात्परता की छवियों के सुखानन्द में डूब गया,
जो उन सत्यों समान ही जीवन्त और यथार्थ थीं जिन्हें वे धारण करतीं।

The Spirit’s white neutrality became
A playground of miracles, a rendezvous
For the secret powers of a mystic Timelessness:
It made of space a marvel house of God,
It poured through Time its works of ageless might,
Unveiled seen as a luring rapturous face[326]
The wonder and beauty of its Love and Force.

उस आत्मपुरुष की श्वेत निरपेक्षता
चमत्कारों की एक क्रीड़ास्थलीबन गयी,
एक रहस्यमय अकाल परम की गुह्यशक्तियों की अभिसार-स्थली हो गयी:
इसने दिशाकाश को प्रभु का एक चमत्कारी भुवन बना दिया,
दिक्काल के मध्य अपनी अकाल सामर्थ्य की कृतियों को उंडेल दिया,
यह घूंघट हटने पर एक मोहक प्रेमविह्वल मुखाकृति सम दिखायी दिया
जो इसके दिव्य प्रेम और पराशक्ति की विलक्षणता और सौन्दर्य से भरा था।

The eternal Goddess moved in her cosmic house
Sporting with God as a Mother with her child:
To him the universe was her bosom of love,
His toys were the immortal verities.

शाश्वती भगवती देवी निज ब्रह्माण्डीय गेह में प्रवेश कर
परमेश्वर के संग ऐसे खिलवाड़ करती जैसे जगज्ज्ननी निज शिशु संग खेलती होः
सकल विश्व उसके लिए माता का वात्सल्य भरा वक्षस्थल था,
अमर यथार्थ सत्य ही उसके खिलौने थे।

All here self-lost had there its divine place.

यहां पृथ्वी पर जो आत्मविस्मृत हैं वहां सब अपने दिव्य स्थान पर हैं।

The Powers that here betray our hearts and err,
Were there sovereign in truth, perfect in joy,
Masters in a creation without flaw,
Possessors of their own infinitude.

वे महाशक्तियां जो हमारे हृदयों से यहां छलावा करतीं और दोषी हैं,
वहां सत्य में प्रभुतासम्पन्न, हर्ष से परिपूरित रहतीं,
एक त्रुटिहीन पूर्ण सृष्टि की स्वामिनी,
अपनी आत्म अनन्तताओं की अधिकारिणी थी।

There Mind, a splendid sun of vision’s rays,
Shaped substance by the glory of its thoughts
And moved amidst the grandeur of its dreams.

वहां सत्य-मन, क्रान्त दर्शन की किरणों का एक भव्य सूर्य,
जो अपने संकल्पों के प्रताप द्वारा पदार्थों को आकार देता
और निज सपनों के वैभव के मध्य गति करता।

Imagination’s great ensorcelling rod
Summoned the unknown and gave to it a home,
Outspread luxuriantly in golden air
Truth’s iris-coloured wings of fantasy,
Or sang to the intuitive heart of joy
Wonder’s dream-notes that bring the Real close.

कल्पनाशक्ति ने महान्वशीकरणी दण्ड द्वारा
अज्ञेय को प्रक्रटा कर एक घर में बसा दिया,
अमर-सत्य की कल्पना के सतरंगी पंखों को
वहां के स्वर्णिम वातावरण में प्रचुरता से चहुं ओर फैला दिया,
या परम-सत्य को समीप खींच लाते अद्भुत स्वप्निल-गीतों को
आनन्द के अन्तर्दशी हृदय के लिए गाया।

Its Power that makes the unknowable near and true,
In the temple of the ideal shrined the One:
It peopled thought and mind and happy sense
Filled with bright aspects of the might of God
And living persons of the one Supreme,
The speech that voices the ineffable,
The ray revealing unseen Presences,
The virgin forms through which the Formless shines,
The Word that ushers divine experience
And the Ideas that crowd the Infinite.

इसकी दैवी-शक्ति जो ज्ञानातीत को समीप ला सत्य बना देती है,
उसने आदर्श के मन्दिर में कैवल्य प्रभु को प्रतिष्ठित कर दियाः
इसने विचार और मन और प्रसन्नइन्द्रियबोध को
प्रभु सामर्थ्य के उज्ज्वल प्रतिभाशाली पक्षों से पूर्ण कर दिया,
और अद्वितीय पुरुषोत्तम के जीवित पुरुष बना दिये,
अनिर्वचनीय प्रभु को शब्द देती वाचा से,
अदृश्य दिव्य उपस्थितियों को अभिव्यक्त करती किरण से,
उन अक्षत रूपों से जिनके द्वारा निराकारी प्रभु प्रकाशमान है,
उस पराशब्द से जो दिव्यानुभूति का प्रेरक है
और उन दिव्य भावों से पूर्ण कर दिया जो नित्य सनातन को घेरे रहते हैं।

There was no gulf between the thought and fact;
Ever they replied like bird to calling bird;
The will obeyed the thought, the act the will,
There was a harmony woven twixt soul and soul.

वहां विचार और यथार्थ के मध्य कोई खाड़ी नहीं थी,
वे तो पक्षी समान एक दूसरे की पुकार का उत्तर देते;
अन्तर्विचार का अनुसरण कर संकल्प और संकल्प से कर्म करते।
आत्मा और आत्मा के मध्य एक सामञ्जस्यपूर्ण समस्वरता थी।

A marriage with eternity divinised Time.

शाश्वतता क संग गठबन्धन ने त्रिकाल को दिव्यता प्रदान कर दी।

There Life pursued unwearied of her sport,
Joy in her heart and laughter on her lips,[327]
The bright adventure of God’s game of chance.

वहां पर प्राणशक्ति अक्लान्त निज लीला में रत रहती,
उसके अधरों पर हास्य और अन्तर में हर्ष भावना भरी रहती,
प्रभु के दांव लगाने के खेल में वह प्रतिभाशालिनी साहसिनी।

In her ingenious ardour of caprice,
In her transfiguring mirth she mapped on Time
A fascinating puzzle of events,
Lured at each turn by new vicissitudes
To self-discovery that could never cease.

अपनी मौज तरंग की अद्भुत पटुता में,
अपने रुपान्तरकारी उत्साही उल्लास में उसने महाकाल के तट पर
घटनाओं की एक मनमोहक पहेली का मानचित्र आंक दिया,
जिसमें प्रत्येक मोड़ पर नूतन ज्वार-भाटों के द्वारा
अविराम चलते आत्मसंधान हित उसे आकर्षित करते।

Ever she framed stark bonds for the will to break,
Brought new creations for the thought’s surprise
And passionate ventures for the heart to dare,
Where Truth recurred with an unexpected face
Or else repeated old familiar joy
Like the return of a delightful rhyme.

जिसे सतत कठोर बन्धनों से गढ़तीऔर इच्छाशक्ति को उसे तोड़ने हित लुभाती,
संकल्प को चकित करने को नयी सृष्टियां रचती
और आवेशपूर्ण संकटों हित हृदय को साहस करने को उकसाती,
जहां पर ऋत एक अप्रत्याशित पक्ष ले बारम्बार प्रकट होता
या अन्यथा पुराने परिचित हर्ष को दोहराये जाता
मानों एक मोदभरे सुखी गीत को लौटा लाता।

At hide and seek on a Mother-Wisdom’s breast,
An artist teeming with her world-idea,
She never could exhaust its numberless thoughts
And vast adventure into thinking shapes
And trial and lure of a new living’s dreams.

एक प्रज्ञा माता के वक्ष पर लुका-छिपी खेलती,
यह अपने भौतिक-विचारों से जुड़ी एक कलाकार है,
जिसके असंख्य विचारों का भण्डार कभी रीता नहीं हो सका है
और चिन्तनशील आकृतियों को गढ़ने का विशाल साहसी कार्य
और एक नव-जीवन के सपनों का परीक्षण और लालसा मिटा नहीं पाती है।

Untired of sameness and untired of change,
Endlessly she unrolled her moving act,
A mystery drama of divine delight,
A living poem of world ecstasy,
A kakemono of significant forms,
A coiled perspective of developing scenes,
A brilliant chase of self-revealing shapes,
An ardent hunt of soul looking for soul,
A seeking and a finding as of gods.

ना एकरसता से ऊबती ना परिवर्तन से थकती,
अनन्तता से वह निज प्रेरक-दृश्य को खोलती रहती,
यह दिव्यानन्द का एक रहस्यपूर्ण नाटक है,
जगत् के हर्षोल्लास की एक जीवन्त कविता है,
सार्थक आकारों की एक काकिमोनो चित्रकृति है,
विकासशील दृश्यजगतों का एक कुण्डलित परिप्रेक्षण है,
स्वयं को उद़्घाटित करते आकारों की एक भव्य भागदौड़ है,
जीव की आत्मा हित एक अति गम्भीर तीव्र खोज है,
मानों देवताओं के हित एक संधान और एक सिद्धि है।

There Matter is the Spirit’s firm density,
An artistry of glad outwardness of self,
A treasure-house of lasting images
Where sense can build a world of pure delight:
The home of a perpetual happiness,
It lodged the hours as in a pleasant inn.

वहां पर जड़तत्त्व आत्मतत्त्व का दृढ़ स्थूल रूप है,
आत्म-चेतना के बर्हिरूप की एक प्रसन्न कलाकृति है,
चिर-प्रतिकृतियों का एक भण्डार-घर है
जहां पर इन्द्रिय विशुद्ध-हर्ष का एक संसार रच सकती है:
एक अविराम प्रसाद सुख का यह भवन,
जिसमें समय की घड़ियों को जैसे एक प्रसन्नता की सराय में बसा दिया है।

The senses there were outlets of the soul;
Even the youngest child-thought of the mind
Incarnated some touch of highest things.

इन्द्रियां वहां पर आत्म-अभिव्यक्ति का साधन थीं:
यहां तक कि मानस का अति लघु विचार भी
उच्चतम पदार्थों के किसी स्पर्श को रूपायित करता।

There substance was a resonant harp of self,[328]
A net for the constant lightnings of the Spirit,
A magnet power of love’s intensity
Whose yearning throb and adoration’s cry
Drew God’s approaches close, sweet, wonderful.

वहां पर सार-द्रव्य भी आत्मचेतना रूपी बीन की एक गूंज था,
आत्म-चेतना की अविरत कौंधनों हित एक जाल था,
प्रेम तीव्रता को बढ़ाती एक आकर्षण की शक्ति थी
लालसा की धड़कन और आराधना की पुकार ने
प्रभु आगमनों को समीप खींचकर मधुमय, अद्भुत कर दिया।

Its solidity was a mass of heavenly make;
Its fixity and sweet permanence of charm
Made a bright pedestal for felicity.

इसकी घनता स्वर्गिक रचना का एक पुंज थी;
इसकी स्थिरता और मोहिनी का मधुर स्थायित्व
परमानन्द हित एक दीप्तिमय पीठिका बन गयी।

Its bodies woven by a divine sense
Prolonged the nearness of soul’s clasp with soul;
Its warm play of external sight and touch
Reflected the glow and thrill of the heart’s joy,
Mind’s climbing brilliant thoughts, the spirit’s bliss;
Life’s rapture kept for ever its flame and cry.

इसके शरीर सब एक दिव्य बोध से बुने हुए
जो आत्मा से आत्मा की पकड़ और सामीप्य को दीर्घ बना देते;
इसकी बहिर्द़ृष्टि और स्पर्श का प्रेमभरा खेल
हृदय के आत्मानन्द की पुलकन और अरुण आभा को झलकाता,
मानस के ऊर्ध्वारोही उज्ज्वल विचारों, आत्मा के अनन्त सुख को दर्शाता;
प्राण जीवन का उत्साह सतत इसकी ज्वाला और पुकार को प्रज्वलित रखता।

All that now passes lived immortal there
In the proud beauty and fine harmony
Of Matter plastic to spiritual light.

यहां वर्तमान में जो अतीत है वहां अमरता में जीवित है
आध्यात्मिक ज्योति के प्रति नमनीय जड़तत्त्व अपने
गर्वीले सौन्दर्य और अपनी सूक्ष्म सामञ्जस्यता में रहता है।

Its ordered hours proclaimed the eternal Law;
Vision reposed on a safety of deathless forms;
Time was Eternity’s transparent robe.

इसकी नियमित घड़ियां शाश्वत दिव्य विधान का घोष करतीं;
अमर आकृतियों की एक सुरक्षा में दिव्य-दर्शन स्थित था;
त्रिकाल चिरन्तनता का पारदर्शी वस्त्र था।

An architect hewing out self’s living rock,
Phenomenon built Reality’s summer-house
On the beaches of the sea of Infinity.

आत्मव्यक्तित्व की जीवन्त शिला को गढ़ते एक वास्तुकार ने,
चिरन्तनता के महासागरीय तटों पर निर्माण कर दिया था
बहिर्द़ृश्य-आभासोंसे परम-सत्य के लिए एक ग्रीष्म भवन का।

 

Against this glory of spiritual states,
Their parallels and yet their opposites
Floated and swayed, eclipsed and shadow-like
As if a doubt made substance, flickering, pale:
This other scheme two vast negations found.

आध्यात्मिक अवस्थाओं की इस शोभा के विरोध में,
जो उनके समानान्तर है तथापि उनके विपरीत तत्त्व हैं,
वहां झूमते बहते, ग्रसित और छाया सम लगते
मानों एक शंका द्रव्य से रचित, पीतवर्णी झिलमिलाते,
यह दूसरी योजना दो विस्तृत बृहदाकारी निषेधों पर आधारित है।

A world that knows not its inhabiting Self,
Labours to find its cause and need to be;
A spirit ignorant of the world it made,
Obscured by Matter, travestied by Life,
Struggles to emerge, to be free, to know and reign;
These were close-tied in one disharmony,
Yet the divergent lines met not at all.

एक ऐसी जगती जो अपनी अन्तरवासिनी चैत्य-सत्ता के प्रति अनजान है
पर अपने आदि-कारण और अस्तित्व की अनिवार्यता जानने को श्रमरत रहती;
एक जीव चेतना जो स्वयं रचित इस संसार से अज्ञ है,
जड़ता ने उसे धूमिल कर दिया है, प्राणशक्ति द्वारा विकृत है,
पर उदित होने, मुक्त होने, जानने और शासन करने को संघर्ष में लगी है;
ये दोनों सृष्टियां एक असंगति में एक दूसरे से बंधी हैं,
किन्तु ये अपसारितारेखाएं कभी भी मिल नहीं पाती हैं।

Three Powers governed its irrational course,[329]
In the beginning an unknowing Force,
In the middle an embodied striving soul,
In its end a silent spirit denying life.

तीन महाशक्तियां इसके विरोधी असंगत यात्रा-पथ का नियन्त्रण करती हैं,
आदि आरम्भ में एक अज्ञ दिव्य-ऊर्जा है,
मध्य में एक देहधारी संघर्षरत जीव पुरुष है,
इसके अन्त में जीवन का निषेध करती एक नीरव आत्मा है।

A dull and infelicitous interlude
Unrolls its dubious truth to a questioning Mind
Compelled by the ignorant Power to play its part
And to record her inconclusive tale,
The mystery of her inconscient plan
And the riddle of a being born from Night
By a marriage of Necessity with Chance.

एक धूमिल नीरस और आनन्दविहीन मध्य में चलती उपनाटिका
जो अपने संदिग्ध सत्य को एक जिज्ञासु मनःशक्ति के लिए खोलती है
यह अविद्या की महाशक्ति द्वारा निज भूमिका करने को
और उसकी अनिर्णायक कथा लिपिबद्ध करने को विवश है,
यही उसकी अचित् योजना का रहस्य है
और अज्ञ जड़रात्रि से एक चैत्य सत्ता के जन्म की पहेली है
जो विश्व अनिवार्यता के साथ दैवयोग के परिणय द्वारा जन्मी है।

This darkness hides our nobler destiny.

इसी अज्ञ अन्धकार में हमारी श्रेष्ठतर नियति छिपी है।

A chrysalis of a great and glorious truth,
It stifles the winged marvel in its sheath
Lest from the prison of Matter it escape
And, wasting its beauty on the formless Vast,
Merged into the Unknowable’s mystery,
Leave unfulfilled the world’s miraculous fate.

यह एक महान् और भव्य सत्य की आदि कोषावस्था है,
जिसने अपने खोल में उस पंखधारी आद़्भुत्य को बन्द कर रखा है
जिससे यह कहीं इस जड़तत्त्व की कारा से छूट कर मुक्त न हो जाये
और अपनी शोभा को निराकारी शून्य ब्रह्म पर न लुटा दे,
या अनिर्वचनीय के रहस्य में लीन हो जाये,
इस संसार की अद्भुत नियति को अधूरा ही छोड़ जाये।

As yet thought only some high spirit’s dream
Or a vexed illusion in man’s toiling mind,
A new creation from the old shall rise,
A Knowledge inarticulate find speech,
Beauty suppressed burst into paradise bloom,
Pleasure and pain dive into absolute bliss.

किन्तु अब तक जिसे केवल किसी श्रेष्ठ आत्मपुरुष का सपना सम समझा
अथवा घोर श्रम में लगे मानव मन की एक विवादग्रस्त मरीचिका सोचा था,
उसी पुरातनता में एक नवीन सृष्टि उदित होगी,
एक प्रज्ञादेवी को व्यक्त होने हित वाणी मिल जायेगी,
दमित शोभा स्वर्गिक पुष्प में प्रस्फुटित हो उठेगी,
प्रसन्नता और पीड़ापरम-आत्मानन्द में मज्जित हो जायेगी।

A tongueless oracle shall speak at last,
The Superconscient conscious grow on earth,
The Eternal’s wonders join the dance of Time.

तब अन्त में एक जिह्वाहीन भविष्यवाणी अन्तर में गुंजित होगी,
अति-मन की चेतना इस धरा पर विकसित होगी,
चिरन्तन-प्रभु के चमत्कार तीनों काल के नृत्य में सम्मिलित हो जायेंगे।

But now all seemed a vainly teeming vast
Upheld by a deluded Energy
To a spectator self-absorbed and mute,
Careless of the unmeaning show he watched,
Regarding the bizarre procession pass
Like one who waits for an expected end.

किन्तु अभी तो अखिल सब निष्फल ही उमड़ता एक विस्तार लगता है,
एक मोहित भ्रमित घोर ऊर्जा द्वारा नियन्त्रित
यह एक मूक आत्म-तल्लीन द्रष्टा के सम्मुख पसरा हुआ था,
इस अर्थहीन प्रदर्शनकीओर राजा ने ध्यान नहीं दिया,
इस विचित्र जुलूस की यात्रा को गुजरते देखता रहा
उस व्यक्ति सम जो एक प्रत्याशित अन्त की प्रतीक्षा में था।

He saw a world that is from a world to be.

उसे एक संसार दिखायी दिया जो एक भावी जगत् से सम्बन्धित था।

There he divined rather than saw or felt,
Far off upon the rim of consciousness,
Transient and frail this little whirling globe[330]
And on it left like a lost dream’s vain mould,
A fragile copy of the spirit’s shell,
His body gathered into mystic sleep.

उसने इसे देखने या अनुभव करने की अपेक्षा इसका एक दैवी आभास पाया,
सुदूर चेतना के अन्तिम किनारे पर
इस नन्हें, नश्वर और दुर्बल क्षीण घूमते भूगोलक पर,
और जिसे एक लुप्त स्वप्न के व्यर्थ ढांचे सम छोड़ दिया गया था,
आत्म-सत्ता के कोश की एक क्षीण सुकुमार पाण्डुलिपि सम लग रहा था,
योगी की देह गहन सुषुप्ति में केन्द्रित थी।

A foreign shape it seemed, a mythic shade.

यह एक विजातीय आकृति, एक कल्पना की छाया जैसी दिख रही थी

 

Alien now seemed that dim far universe,
Self and eternity alone were true.

अब वह धूमिल दूरस्थित धाम अपरिचित लग रहा था,
केवल आत्मा और शाश्वतता ही सत्य थे।

Then memory climbed to him from the striving planes
Bringing a cry from once-loved cherished things,
And to the cry as to its own lost call
A ray replied from the occult Supreme.

तब इन श्रमशील स्तरों से एक स्मृति उस तक आरोहण कर आ गयी
जो अपने संग अतीत की प्रिय अन्तरंग वस्तुओं का क्रन्दन लायी थी,
और इस क्रन्दन के साथ उसकी स्वयं कीखोयी पुकार भी थी
इसका उत्तर पुरुषोत्तम की एक गुह्य रश्मि ने दिया।

For even there the boundless Oneness dwells.
To its own sight unrecognisable,
It lived still sunk in its own tenebrous seas,
Upholding the world’s inconscient unity
Hidden in Matter’s insentient multitude.

यद्यपि वहां पर भी इस असीम एकात्मता का वास है,
पर वह स्वयं अपनी दृष्टि से अपरिचित अज्ञ रहता है,
अभी भी अपने ही आत्म-अन्धकार के सागरों में डूबा हुआ,
जड़तत्त्व के अचेत रूपों में गोपित है
इस संसार की अचित् एकबद्धता का यही आधार है।

This seed-self sown in the Indeterminate
Forfeits its glory of divinity,
Concealing the omnipotence of its Force,
Concealing the omniscience of its Soul;
An agent of its own transcendent Will,
It merges knowledge in the inconscient deep;
Accepting error, sorrow, death and pain,
It pays the ransom of the ignorant Night,
Redeeming by its substance Nature’s fall.

यही बीज-रूप आत्मा है जिसने स्वयं को इस अनिश्चय के लोक में आरोपित कर
देवत्व की निज महिमा का अधिकार खो दिया है,
अपनी दैवी शक्ति कीसर्वशक्तिमत्ता को छिपा कर,
अपनी आत्मसत्ता की सर्वज्ञता को छिपा लिया है;
अपने स्वयं के परात्पर संकल्प का यह एक प्रतिनिधि बन गया है,
इसने ज्ञान को अचित्-गहनता में निमग्न कर दिया है;
भूल-दोष, दुःख मृत्यु और पीड़ा को स्वीकार कर,
यह इस अज्ञ जड़-रात्रि की दण्ड-राशि चुकाता है
अपने सत्-तत्त्व द्वारा जड़प्रकृति को पतन से बचाता है।

Himself he knew and why his soul had gone
Into earth’s passionate obscurity
To share the labour of an errant Power
Which by division hopes to find the One.

योगी को आत्मज्ञान हो गया और जान गया कि उसकी आत्मा
इस धरती की रजोगुणी धूमिलता में क्यों
एक भटकी महाशक्ति के परिश्रम में हिस्सा लेने आयी है
जो विभाजन द्वारा परमैकम् को पाने की आशा करती है।

Two beings he was, one wide and free above,
One struggling, bound, intense, its portion here.

वह दो सत्ताएं था, एक विशाल और मुक्त ऊर्ध्व में थी,
दूसरी संघर्षरत, बद्ध, उत्कट इसका दूसरा अंश यहां पर थी।

A tie between them still could bridge two worlds;
There was a dim response, a distant breath;
All had not ceased in the unbounded hush.

उन दोनों के मध्य की एक ग्रन्थि अभी भी दो लोकों में एक सेतु रच सकती थी;
वहां प्रत्युत्तर अभी मद्धिम था, एक सुदूर का श्वास था;
उस असीम बन्धनहीन नीरवता में अभी सम्पूर्ण समाप्त नहीं हुआ था।

His heart lay somewhere conscious and alone
Far down below him like a lamp in night;[331]
Abandoned it lay, alone, imperishable,
Immobile with excess of passionate will,
His living, sacrificed and offered heart
Absorbed in adoration mystical,
Turned to its far-off fount of light and love.

योगी का हृदय कहीं और सचेत और एकाकी लेटा था
उसकी ऊर्ध्व सत्ता के अति नीचे सुदूर रात्रि में एक दीप सम जलता;
यह एकाकी, अविनाशी, परित्यक्त पड़ा था,
भावावेशी संकल्प की अधिकता से अचल हो गया
उसका जीवित पर बलिदानी निवेदित प्राण
गुह्य भावपूर्ण उपासना में तल्लीन था,
यह सुदूर के प्रकाश और प्रेम के अपने स्रोत कीओर मुड़ गया।

In the luminous stillness of its mute appeal
It looked up to the heights it could not see;
It yearned from the longing depths it could not leave.

निवेदित मूकता की अपनी द्युतिमयी स्थिरता में
इसने उन पराकाष्ठाओं कीओर, जिन्हें देख नहीं सकता था, अवलोका;
अपनी उत्कण्ठित गहराइयों से जिन्हें छोड़ नहीं सका था, उनके लिए लालायित हो उठा।

In the centre of its vast and fateful trance
Half way between his free and fallen selves,
Interceding twixt God’s day and the mortal’s night,
Accepting worship as its single law,
Accepting bliss as the sole cause of things,
Refusing the austere joy which none can share,
Refusing the calm that lives for calm alone,
To her it turned for whom it willed to be.

अपनी विराट् और भाग्यरचित समाधि के केन्द्र में
अपनी मुक्ति और पतित सत्ताओं के आधे मार्ग के मध्य में,
इस नश्वर मर्त्यरात्रि और प्रभु दिवस के बीच मध्यस्थ बन,
इसने अर्चना को अपने अकेले विधान सम स्वीकार कर,
प्रेमानन्द को पदार्थों का एकाकी कारण सम मान,
उस तापसी प्रसाद का जिसमें कोई सम्मिलित नहीं हो सकता, निषेध कर दिया,
जो शांन्ति केवल अपने लिए जीवित है उसको अस्वीकार कर दिया,
यह प्राण उस देवी की ओर मुड़ गया जिसके हित उसने सत्ता में आने का संकल्प लिया था।

In the passion of its solitary dream
It lay like a closed soundless oratory
Where sleeps a consecrated argent floor
Lit by a single and untrembling ray
And an invisible Presence kneels in prayer.

अब अपने एकाकी संकल्प के भावावेश में लेटा
जो एक बन्द नीरव प्रार्थनाघर समान था,
जहां पर एक रजतफर्श समर्पित भाव से सोया
एक अकेली अकम्पित किरण द्वारा प्रकाशित था
और एक अदृश्य प्रभु-सान्निध्य की प्रार्थना में झुका था।

On some deep breast of liberating peace
All else was satisfied with quietude;
This only knew there was a truth beyond.

मुक्तिदायिनी शान्ति के किसी गम्भीर वक्ष पर
जहां पर शेष सब इस नीरवता में सन्तुष्ट थे;
केवल यही जानता था कि वहां इसके परे एक सत्य और भी है।

All other parts were dumb in centred sleep
Consenting to the slow deliberate Power
Which tolerates the world’s error and its grief,
Consenting to the cosmic long delay,
Timelessly waiting through the patient years
Her coming they had asked for earth and men;
This was the fiery point that called her now.

शेष समस्त भाग ध्यान सुषुप्ति में एकाग्र और मूक थे
वे उस मन्द विवेकी सुविचारित महाशक्ति के अनुगामी थे
जो जगत् के दोष और इसके कष्टों को सहती है,
इस वैश्विक दीर्घसूत्री विलम्ब को स्वीकारती है,
इन वर्षों के मध्य धैर्यपूर्वक वे अनन्त काल से प्रतीक्षा कर रहे हैं
उसके दिव्य आगमन की, जिसको उन्होंने पृथ्वी और मानव हित मांगा था;
यही उस सत्ता का ज्वलन्त केन्द्र थी जो अब उसे पुकार रही थी।

Extinction could not quench that lonely fire;
Its seeing filled the blank of mind and will;
Thought dead, its changeless force abode and grew.

उस अकेली अग्नि को निर्वाण का विलोपन बुझा नहीं सका;
इसके दर्शन ने मन और संकल्प के रीतेपन को भर दिया था;
विचार नष्ट हो गया था, किन्तु इसकी अविकारी ऊर्जा जीवित और विकसित थी।

Armed with the intuition of a bliss
To which some moved tranquillity was the key,[332]
It persevered through life’s huge emptiness
Amid the blank denials of the world.

एक आत्मानन्द की सहज प्रेरणा से सुसज्जित
यह शान्ति वह कुंजी है जिसकीओर कुछ जन प्रेरित होते हैं,
पर यह अग्नि जीवन की घोर रिक्तता के मध्य भी सुरक्षित थी
और इस लोक के सुने निषेधों के मध्य भी जीवित थी।

It sent its voiceless prayer to the Unknown
It listened for the footsteps of its hopes
Returning through the void immensities,
It waited for the fiat of the Word
That comes through the still self from the Supreme.[333]

इसने निज गिरहिन प्रार्थना अज्ञेय-प्रभु की और पठायी;
यह अपनी आशाओं के लौटने की पदचापों को
उन घोर शुन्य विशालताओं के मध्य सुनती,
यह उस परम शब्द की अनुज्ञप्ति की प्रतीक्ष्या में रहती
जो सर्वेश्र्वर की नीरव-आत्मा से बाहर आती।

END OF CANTO THREE