Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors
At the Feet of The Mother

SAVITRI Book Three. Canto One (Eng-Hindi)

Back ⇑

BOOK THREE. THE BOOK OF THE DIVINE MOTHER

Canto One. The Pursuit of the Unknowable

 

All is too little that the world can give:
Its power and knowledge are the gifts of Time
And cannot fill the spirit’s sacred thirst.

यह संसार जो दे सकता है वह सब अति अल्प है:
इसकी शक्ति और ज्ञान के सब उपहार दिक्काल के हैं
और इनसे जीवात्मा की पावन पिपासा शान्त नहीं हो सकती।

Although of One these forms of greatness are
And by its breath of grace our lives abide,
Although more near to us than nearness’ self,
It is some utter truth of what we are;
Hidden by its own works it seemed far off,
Impenetrable, occult, voiceless, obscure.

यद्यपि महानता के ये आकार उसी एकम् के ही रूप हैं
और उसी के कृपा-प्राणश्वास पर हमारे जीवन आधारित हैं,
यद्यपि यह सान्निध्य अन्तरात्मा से भी अधिक हमारे समीप है,
एक कोई नितान्त विशुद्ध सत्य है जिससे हम अस्तित्व में आये हैं;
पर अपने ही कर्मों द्वारा वह छिप गया और अति दूर लगता है,
यह अभेद्य, गुह्य, वाचाहीन, अस्पष्ट है।

The Presence was lost by which all things have charm,
The Glory lacked of which they are dim signs.

वह प्रभू-उपस्थिति खो गयी है जिससे सब पदार्थ श्रीसम्पन्न होते हैं,
प्रभु-महिमा का यहां अभाव है जिसके ये सब धूमिल चिह्न हैं।

The world lived on made empty of its Cause,
Like Love when the Beloved’s face is gone.

अपने दिव्य कारण से हीन हो यह लोक जीवन व्यतीत करता है,
यह उस प्रेमी समान जीवित है जिसकी प्राणप्रिया छोड़ चली गयी हो।

The labour to know seemed a vain strife of Mind;
All knowledge ended in the Unknowable:
The effort to rule seemed a vain pride of Will;
A trivial achievement scorned by Time,
All power retired into the Omnipotent.

यहां जानने का परिश्रम मनःशक्ति का एक निष्फल संघर्ष लगता है;
सकल ज्ञान उस परम अज्ञेय में समाप्त हो जाता है:
शासन करने का प्रयास संकल्प शक्ति का एक व्यर्थ का दर्प लगता है;
जो त्रिकाल द्वारा उपहासित एक तुच्छ सफलता सम हास्यास्पद है,
सर्वशक्तिमान प्रभु में सकल बल-सामर्थ्य लीन हो जाते हैं।

A cave of darkness guards the eternal Light.

उस चिरन्तन पराज्योति पर एक अन्धकार का पहरा है।

A silence settled on his striving heart;
Absolved from the voices of the world’s desire,
He turned to the Ineffable’s timeless call.

अब योगी के संघर्षरत हृदय पर एक नीरव शान्ति छायी थी;
जग-कामना के कोलाहलों से मुक्त हो,
अब वह अनिर्वचनीय परम की कालातीत पुकार कीओर मुड़ गया।

A Being intimate and unnameable,
A wide compelling ecstasy and peace
Felt in himself and all and yet ungrasped,
Approached and faded from his soul’s pursuit
As if for ever luring him beyond.

उसे एक अन्तरंग और अनामी परम-सत्ता की अनुभूति आती,
एक विशाल आग्रही आह्लाद और शान्ति की
वह स्वयं में तथा समष्टि में अनुभूत तो पाता, पर यह पकड़ में न आती,
और निकट आती लगती पर उसकी अन्तरात्मा की खोज से फिर धूमिल पड़ जाती
उसे परात्परता से, सतत ललचा कर आकर्षित करती।

Near, it retreated; far, it called him still.

समीप आती, दूर हट जाती; सुदूर जा, यह फिर उसे पुकारती।

Nothing could satisfy but its delight:
Its absence left the greatest actions dull,
Its presence made the smallest seem divine.[305]

इसके आत्म-रंजन को छोड़ अब योगी को अन्य कुछ भी सन्तुष्ट नहीं कर पाताः
इसका अभाव उसके महानतम कार्यों को नीरस बना देता,
इसका भाव अति लघु कर्म को दिव्यता प्रदान कर देता।

When it was there, the heart’s abyss was filled;
But when the uplifting Deity withdrew,
Existence lost its aim in the Inane.

जब यह उपस्थिति होती, योगी के हृदय-गर्त को भर देती;
किन्तु ज्यों ही यह उन्नयनकारी भगवती विदा हो जाती,
अस्तित्व अपना लक्ष्य निस्सार शून्यता में खो देता।

The order of the immemorial planes,
The godlike fullness of the instruments
Were turned to props for an impermanent scene.

उन अविस्मरणीय स्तरों की क्रम सुव्यवस्था,
उसके अवयवों की देवतुल्य परिपूर्णताएं
एक अस्थायी दृश्य हित ये सब अवलम्बन में बदल गये थे।

But who that mightiness was he knew not yet.

किन्तु यह सामर्थ्यशालिनी कौन थी यह वह अभी तक जान नहीं पाया था।

Impalpable, yet filling all that is,
It made and blotted out a million worlds
And took and lost a thousand shapes and names.

यद्यपि अग्राह्य थी, फिर भी सब अस्तित्व को भर रही थी,
यह लक्ष-लक्ष जगतों को रचती और मिटाती
और सहस्त्रों रूपों आकारों को धारण करती और खो देती।

It wore the guise of an indiscernible Vast,
Or was a subtle kernel in the soul:
A distant greatness left it huge and dim,
A mystic closeness shut it sweetly in:
It seemed sometimes a figment or a robe
And seemed sometimes his own colossal shade.

यह एक अज्ञात अतीन्द्रिय विराट् का मुखौटा धारण कर लेती,
या अन्तरात्मा में एक सूक्ष्म सारतत्त्व सम लगती:
एक दूर की महत्ता इसे विशाल और धूमिल बना तज गयी थी
एक गुह्य सान्निध्य ने इसे मधुरता से अपने में छिपा लिया:
कभी यह कल्पना या एक आवरण की अनुभूति देती
और कभी-कभी यह स्वयं अपनी ही विशाल छाया-सीलगती।

A giant doubt overshadowed his advance.

योगी की प्रगति पर एक घोर शंका की छाया पड़ गयी।

Across a neutral all-supporting Void
Whose blankness nursed his lone immortal spirit,
Allured towards some recondite Supreme,
Aided, coerced by enigmatic Powers,
Aspiring and half-sinking and upborne,
Invincibly he ascended without pause.

एक उदासीन सर्वाधार महाशून्य के उस पार से
जिसकी रिक्तता ने उसकी एकाकी अमर-आत्मा को पोषित किया था,
उसे किसी निगुह्य सर्वोच्च परम कीओर ललचाया था,
रहस्यपूर्ण महाशक्तियों द्वारा विवश बना एवं सहायता पा,
अभीप्सासे पूर्ण और आधा-डूबता तथा उतराता,
अजेय बना वह अविराम आरोहण करता गया।

Always a signless vague Immensity
Brooded, without approach, beyond response,
Condemning finite things to nothingness,
Fronting him with the incommensurable.

जहां एक लक्षणहीन अस्पष्ट-सी चरम अनन्तता
सदैव ध्यान में डूबी, अगम्य, मनन चिन्तन से परे थी,
यह नश्वर पदार्थों को शून्य में लोप होने का दण्ड दे रही थी,
अप्रमेयता के साथ यह योगी के समक्ष खड़ी थी।

Then to the ascent there came a mighty term:
A height was reached where nothing made could live,
A line where every hope and search must cease
Neared some intolerant bare Reality,
A zero formed pregnant with boundless change.

उसके आरोहण में एक शक्तिशाली काल आ पहुंचा:
एक ऐसा शिखर आ गया जहां कुछ भी सृष्ट पदार्थ जीवित नहीं रह सकता था,
एक सीमा थी जहां प्रत्येक आशा और खोज का अन्त हो जाता
यह किसी असहिष्णु नग्न चरम सत् का सान्निध्य था,
एक शून्य रूपायित हो यहां अनन्त परिवर्तन से गर्भित था।

On a dizzy verge where all disguises fail
And human mind must abdicate in Light
Or die like a moth in the naked blaze of Truth,
He stood compelled to a tremendous choice.[306]

एक सिर चकराने वाली सीमा पर जहां सब आवरण गिर जाते हैं
और मानव-मन को पराज्योति में पूर्ण-समर्पित होना पड़ता है
या चरम सत्य की नग्न ज्वाला में एक पतंगे सम मृत्यु-वरण करता है,
वहां योगी विवशबना एक भीषण विकल्प हित बाध्य खड़ा था।

All he had been and all towards which he grew
Must now be left behind or else transform
Into a self of That which has no name.

वह जो सब था और उस सकल सिद्धि को जिसमें वह विकसित हुआ था
उसे पीछे छोड़ना होगा अन्यथा रूपान्तरित होना होगा
परम-तत् के एक तत्त्व में जिसका कोई नाम नहीं है।

Alone and fronting an intangible Force
Which offered nothing to the grasp of Thought,
His spirit faced the adventure of the Inane.

वह अकेला था और एक अप्रत्यक्ष अग्राह्य महाशक्ति का सामना था
यह संकल्प-विचार की ग्रहणशीलता से अगम्य,
उसकी आत्मा ने उस ‘शून्य असत्’ का सामना करने का साहस किया।

Abandoned by the worlds of form he strove.

आकारों के लोकों द्वारा परित्यक्त हो वह श्रम संघर्ष में जुट गया।

A fruitful world-wide Ignorance foundered there;
Thought’s long far-circling journey touched its close
And ineffective paused the actor Will.

जगत्-व्याप्त एक फलकामना का अज्ञान यहां आ नष्ट हो गया;
मानस-विचार की सुदूर घूमती चिर यात्रा यहां अपने अन्त को छू रही थी
और वह संकल्प रूपी अभिनेता निष्प्रभ हो ठहर गया था।

The symbol modes of being helped no more,
The structures Nescience builds collapsing failed,
And even the spirit that holds the universe
Fainted in luminous insufficiency.

सत्ता की प्रतीक प्रणालियां अब और सहायक नहीं रहीं,
विश्व-निश्चेतना द्वारा निर्मित आकृतियां असफल हो ढह गयीं,
और वह विश्वात्मा भी जो इस विश्व को धारण करती है
निज दीप्ति की अपर्याप्त क्षीणता में अचेत हो गयी।

In an abysmal lapse of all things built
Transcending every perishable support
And joining at last its mighty origin,
The separate self must melt or be reborn
Into a Truth beyond the mind’s appeal.

समस्त सृष्ट पदार्थों के अगाध अभावहीन शून्य में
प्रत्येक नश्वर अवलम्बन के परे जाकर
और अन्त में अपने शक्तिशाली मूल स्रोत से संयुक्त होकर,
यहां पृथक् जीवसत्ता को घुलकर विलीन होना पड़ता है
या मन की सीमा से परे जाकर एक चरम सत्य में पुनः जन्म लेना होता है।

All glory of outline, sweetness of harmony,
Rejected like a grace of trivial notes,
Expunged from Being’s silence nude, austere,
Died into a fine and blissful Nothingness.

बहिर्सीमा की समस्त यशस्विता, समस्वरता की माधुरी,
क्षीण स्वरों के एक निवेदन सम अस्वीकार कर दी गयी,
आत्मपुरुष की नीरव नग्नता से बहिष्कृत, तपस्या,
एक सुखकारी और आनन्ददायक असत् शून्यता में मिट गयी।

The Demiurges lost their names and forms,
The great schemed worlds that they had planned and wrought
Passed, taken and abolished one by one.

यहां पर देवशिल्पियों ने अपने नाम और आकृतियां खो दीं,
जो बृहद् रूप-रेखाओं के जगत् उन्होंने आयोजित कर रचे थे
अतीत में गुजर, वे एक-एक कर सब विनष्ट हो गये।

The universe removed its coloured veil,
And at the unimaginable end
Of the huge riddle of created things
Appeared the far-seen Godhead of the whole,
His feet firm-based on Life’s stupendous wings,
Omnipotent, a lonely seer of Time,
Inward, inscrutable, with diamond gaze.
Attracted by the unfathomable regard
The unsolved slow cycles to their fount returned
To rise again from that invisible sea.[307]

विश्व पर से इसका रंगीन घूंघट हट गया,
और सृष्ट वस्तुओं की अति विशाल पहेली के
एक अकल्पित अन्त पर,
समष्टि का अति सुदूर दिखायी देता परमात्म-तत्त्व प्रकट हो उठा,
उसके चरण द़ृढ़ता से विश्व-प्राण के विशाल पक्षों पर धरे थे,
वह सर्वशक्तिशाली, त्रिकाल का अद्वितीय एकाकी द्रष्टा,
अन्तर्मुखी, अबोधगम्य, उसकी चितवन हीरे समान थी
उस अगाध दृष्टि से श्रद्वावंत तथा आकर्षित हो
असमाधेय मन्द वे कालचक्र अपने स्रोत कीओर लौट गये
फिर से उस अगोचर सागर से उदित होने।

All from his puissance born was now undone;
Nothing remained the cosmic Mind conceives.

जो सब उसकी शक्ति से जन्मा था अब समाप्त हो गया;
वैश्विक मन-शक्ति द्वारा संकल्पित कुछ भी शेष नहीं रहा।

Eternity prepared to fade and seemed
A hue and imposition on the Void,
Space was the fluttering of a dream that sank
Before its ending into Nothing’s deeps.

शाश्वतता क्षीणहो धुंधली पड़ गयी थी और वह
उस शून्याकाश पर आरोपित एक आभा सम लग रही थी,
दिशाओं में एक स्वप्न की छटपटाहट थी
जो अपने अन्त से पूर्व ही शून्य नगण्यता की गहनताओं में डूब गयी।

The spirit that dies not and the Godhead’s self
Seemed myths projected from the Unknowable;
From It all sprang, in It is called to cease.

आत्मा अमर है और ईश्वर का आत्मतत्त्व है
यह अज्ञेय से प्रक्षिप्त एक कपोल कल्पना लगने लगी;
जैसे सब इस असत् से प्रकटा था, और सब इसी में लय हो जाता है।

But what That was, no thought or sight could tell.

किन्तु यह ‘तत्’ क्या था, कोई विचार या दृश्य नहीं बता सका।

Only a formless Form of self was left,
A tenuous ghost of something that had been,
The last experience of a lapsing wave
Before it sinks into a bourneless sea,—
As if it kept even on the brink of Nought
Its bare feeling of the ocean whence it came.

केवल आत्मतत्त्व का एक निराकारी रूप ही शेष बचा था
यह किसी अतीत की सम्भूति का एक सूक्ष्म प्रेताकार-सा,
एक सांस तोड़ती लहर का एक अन्तिम अनुभव जैसा
जो उसने असीम सिन्धु में डूबने से पहले पाया था,-
मानों उसने इस घोर नास्ति के तट पर भी
अपने जन्मदाता सागर में रीतेपन की भावना को पास रखा था।

A Vastness brooded free from sense of Space,
An Everlastingness cut off from Time;
A strange sublime unalterable Peace
Silent rejected from it world and soul.

यहां दिशाबोध से मुक्त एक घोर-विराट् ध्यानमग्न था,
काल-बोध से विच्छिन्न एक चिरन्तनता का विस्तार था,
एक विलक्षण अलौकिक अविकारी चरम शान्ति
जिसकी मौन निस्तब्धता में संसार और आत्मा अस्वीकृत थे।

A stark companionless Reality
Answered at last to his soul’s passionate search:
Passionless, wordless, absorbed in its fathomless hush,
Keeping the mystery none would ever pierce,
It brooded inscrutable and intangible
Facing him with its dumb tremendous calm.

अन्त में एक नितान्त निस्संग परम सत् ने
उसके आत्म-पुरुष के उत्कट-भाव की खोज का उत्तर दिया:
यह भावहीन, निःशब्द, अपनी अगाध निस्तब्धता में निमग्न,
उस रहस्य को छिपाये था जिसका कोई भेद नहीं पा सका,
अबोधगम्य और अग्राह्य यह समाधि में डूबा
अपनी मौन विशाल शान्ति में स्थित यह योगी के सामने था।

It had no kinship with the universe:
There was no act, no movement in its Vast:
Life’s question met by its silence died on her lips,
The world’s effort ceased convicted of ignorance
Finding no sanction of supernal Light:
There was no mind there with its need to know,
There was no heart there with its need to love.

हमारे इस विश्व से उसका कोई सम्बन्ध नहीं था:
इसकी व्याप्त विस्तृतता में कोई क्रिया या कोई गति नहीं थी:
जीवन के प्रश्न इसी नीरवता के सामने अधरों पर ही मर जाते,
संसार के प्रयास अज्ञता के दोष से अपराधी बन यहां ठहर गये
क्योंकि उन्हें परा-ज्योति से कोई अनुमोदन नहीं मिला था:
यहां कोई मानस सत्ता नहीं थी जिसे जानने की आवश्यकता होती,
वहां पर प्रेम का अनुभव लेने हित कोई हृदय नहीं था।

All person perished in its namelessness.

समस्त व्यक्तित्व इसकी नाम-हीनता में नष्ट हो गया था।

There was no second, it had no partner or peer;
Only itself was real to itself.[308]

यह अद्वितीय था, इसका कोई समकक्ष, साथी नहीं था;
निस्संग, केवल निज आत्मा में स्वयं अपना सत्य था।

A pure existence safe from thought and mood,
A consciousness of unshared immortal bliss,
It dwelt aloof in its bare infinite,
One and unique, unutterably sole.

एक विशुद्ध अस्तित्व जो विचार और भाव से निरापद,
अनासक्त, अविभाजित परमानन्द की एक चित्शक्ति है,
यह अपनी शून्य अनन्तता में एकाकी बसती,
अकेली और अद्वितीय अनिर्वचनीय अनन्या है।

A Being formless, featureless and mute
That knew itself by its own timeless self,
Aware for ever in its motionless depths,
Uncreating, uncreated and unborn,
The One by whom all live, who lives by none,
An immeasurable luminous secrecy
Guarded by the veils of the Unmanifest,
Above the changing cosmic interlude
Abode supreme, immutably the same,
A silent Cause occult, impenetrable,—
Infinite, eternal, unthinkable, alone.[309]

निराकारी एक परा-सत्ता, अरूप और मूक
जो आत्मभाव द्वारा स्वयं अपनी अकाल सत्ता को जानती है,
अपनी गतिहीन गहनताओं में यह चिर सचेत,
सृजन-विहीन, स्वयंभू और अजात,
परमैकम् जो सब जीवनों का आधार है पर स्वयं आत्मस्थित है,
एक अमेय ज्योतिर्मय गुह्यता
अव्यक्त परमेश्वर के पटों में सुरक्षित,
इस परिवर्तनशील ब्रह्माण्डीय मध्यावस्था के ऊर्ध्व में
सर्वोच्च परम-धाम, अविकारी रूप से समभाव में,
एक नीरव गुह्य आदि-कारण, अगम्य है,-
अनन्त, नित्य, चिरसनातन, अचिन्त्य, अकेली है।

END OF CANTO ONE