राजराजेश्वरी महेश्वरी मानसी तर्कबुद्धि और इच्छाशक्ति के ऊपर बृहत् में आसीन हैं और वे इन दो वृत्तियों को विशुद्ध और उन्नत करके ज्ञानस्वरूप और बृहत् बनाती हैं अथवा परा ज्योति से प्लावित कर देती हैं। कारण वे ही हैं वे शक्तिमयी ज्ञानमयी जो हमें विज्ञान की अनंत सत्ताओं की ओर, विश्वव्यापक बृहत् की ओर, परमा ज्योति की माहेश्वरी महिमा की ओर, अलौकिक ज्ञान के भंडार की ओर और माता की चिरंतन शक्तियों की अपरिमेय गति की ओर उन्मुक्त कर देती हैं। शांतिमयी हैं, आश्चर्यमयी हैं, सदा अपनी महिमा में स्थित स्थिर-गंभीर। कोई चीज उन्हें हिला-डुला नहीं सकती, क्योंकि समग्र ज्ञान उनके अंदर है; कोई बात जो वे जानना चाहें उनसे छिपी नहीं रह सकती; सब पदार्थ और सब जीव और उनके स्वभाव और उनके चालक भाव तथा सृष्टि का विधान और उसके कालविभाग तथा यह जो कुछ जैसा था और है और होगा, सब उनके दृष्टिगत है। उनमें वह शक्ति है जो सबके सामने आती और सबको वश में करती है और कोई भी उनका विरोध करके उनके महान् अननुमेय ज्ञान और उत्तुंग प्रशांत शक्ति के सामने अंत तक ठहर नहीं सकता। वे सम हैं, धीर हैं, अपने संकल्प में अटल हैं, मनुष्यों के साथ उनका व्यवहार जिस-तिस की प्रकृति के अनुसार और पदार्थ मात्र तथा घटना मात्र में उनका कार्य उनकी शक्ति और अंतःस्थ सत्य के अनुरूप होता है। पक्षपात उनमें है ही नहीं, परंतु वे परम पुरुष भगवान् के आदेशों का अनुवर्तन करती हैं और इस तरह वे किसी को ऊपर उठाती हैं और किसी को ढकेल देती हैं नीचे या अपने पास से हटाकर अंधकार में डाल देती हैं। ज्ञानियों को वे और भी महान्, और भी ज्योतिर्मय ज्ञान प्रदान करती हैं; जिन्हें अंतर्दृष्टि प्राप्त है उन पर वे अपनी मंत्रणा का रहस्य प्रकट करती हैं, जो विरुद्धाचारी हैं उनसे उनके विरुद्धाचार का फल भोग कराती हैं; जो अज्ञ और मूढ़ है उन्हें उनकी अंधता के अनुसार ही लिये चलती हैं। प्रत्येक मनुष्य की प्रकृति के विभिन्न अंगों को वे तत्तत् अंग के प्रयोजन, प्रवृत्ति और वांछित प्रतिफल के अनुसार प्राप्त होती और उन्हें संचालित करती हैं; उनके ऊपर यथावश्यक भार रखती हैं अथवा उन्हें उनकी प्रिय पोषित स्वतंत्रता के हवाले कर देती हैं अज्ञान के मार्ग में फलने-फूलने या विनष्ट होने के लिये। कारण वे सबके ऊपर हैं, जगत् की किसी वस्तु में बद्ध या आसक्त नहीं। तथापि उन्हींका हृदय और सब की अपेक्षा, जगन्माता का हृदय है। उनकी करुणा अपार, अशेष है; सभी उनकी दृष्टि में उनके संतान और अद्वितीय एकमेव भगवान् के अंश हैं — असुर, राक्षस और पिशाच तक, और जो उनके विद्रोही और विरोधी हैं वे भी। वे यदि किसी का त्याग करती हैं तो उनका वह त्याग करना, कुछ काल पश्चात् अनुग्रह करने के निश्चय का ही एक प्रकार है और यदि वे किसी को दंड देती हैं तो उनका वह दंडविधान भी उनका प्रसाद ही है। परंतु उनकी करुणा उनके ज्ञान को अंध नहीं करती या उनके कर्म को निर्दिष्ट पथ से भ्रष्ट नहीं करती; कारण पदार्थ मात्र के सत्य से ही उनको काम है, ज्ञान ही उनकी शक्ति का केंद्र है और हमारे अंतरात्मा और प्रकृति को भागवत सत्य के अनुरूप निर्मित करना ही उनका व्रत और अनुष्ठान है।
Every element, no matter how small, plays a crucial role in building the world. Even the seemingly insignificant contributes to the grand design of the Cosmic Spirit, shaping great minds and achievements.
About Savitri | B1C1-10 The Response of Earth (p.5)