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At the Feet of The Mother

SAVITRI Book Seven. Canto Five (Eng-Hindi)

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BOOK SEVEN. THE BOOK OF YOGA

Canto Five. The Finding of the Soul

 

Onward she passed seeking the soul’s mystic cave.

अपनी अन्तरात्मा के गुह्यगर्भगृह की खोज में अब सावित्री आगे बढ़ी।

At first she stepped into a night of God.

सर्वप्रथम वह भगवत्ता की एक रात्रि में प्रवेश कर गयी।

The light was quenched that helps the labouring world,
The power that struggles and stumbles in our life;
This inefficient mind gave up its thoughts,
The striving heart its unavailing hopes.
All Knowledge failed and the Idea’s forms,
And Wisdom screened in awe her lowly head
Feeling a Truth too great for thought or speech,
Formless, ineffable, for ever the same.

वहां पर इस श्रमरत संसार की सहायिका-ज्योति बुझा दी गयी थी,
यह वह शक्ति है जो हमारे जीवन में संघर्ष करती एवं ठोकर खाती है;
उसके इस अदक्ष मन ने निज विचारों को तज दिया,
प्रयासरत हृदय ने अपनी निष्फल आशाओं को छोड़ दिया,
वहांसकल ज्ञान असफल और महाभाव के आकार फलहीन थे
और विस्मित हो प्रज्ञादेवी ने अपना नमित शीश घूंघट में छिपा लिया
एक अविनाशी सत्य का अनुभव था जो विचार या वाणी के लिए अति विशाल था,
जो निराकारी, अनिर्वचनीय सतत एक-रूप था।

An innocent and holy Ignorance
Adored like one who worships formless God
The unseen light she could not claim nor own.

एक अबोध और पावन विशुद्ध अविद्या द्वारा
ऐसे पूजित था जैसे कोई निराकारी प्रभु को पूजता हो,
उस अगोचर दिव्य प्रकाश पर सावित्री निजाधिकार नहीं जता पायी।

In a simple purity of emptiness
Her mind knelt down before the unknowable.

वहां रिक्तता की एक सहज पवित्रता में
उसका मन उस अज्ञेय के चरणों में नमित हो गया।

All was abolished save her naked self
And the prostrate yearning of her surrendered heart.
There was no strength in her, no pride of force;
The lofty burning of desire had sunk
Ashamed, a vanity of separate self,
The hope of spiritual greatness fled,
Salvation she asked not nor a heavenly crown:
Humanity seemed now too proud a state.

सावित्री की अपनी आवरणहीन नग्न सत्ता को छोड़ शेष सब लोप हो गया
और उसके समर्पित हृदय की अभीप्सा साष्टांग लेट गयी:
उसमें कोई बल नहीं था, शक्ति का कोई गर्व तक शेष नहीं रहा;
कामना की उदात्त जलती शिखा भी डूब गयी,
पृथक् आत्मसत्ता के एक गर्व पर वह लज्जित
आध्यात्मिक महत्ता की आशा भी उड़गयी,
उसकी मांग अब मोक्ष की नहीं थी न ही स्वर्ग के सिंहासन की चाह थी:
विनम्रता भी अब एक अहंकारी-स्थिति सम लगने लगी।

Her self was nothing, God alone was all,
Yet God she knew not but only knew he was.

वह स्वयं अब नगण्य थी, प्रभु ही केवल सम्पूर्णसकल था,
फिर भी वह प्रभु को जानती तक न थी केवल ‘वह है’ इतना ही ज्ञान था।

A sacred darkness brooded now within,
The world was a deep darkness great and nude.

अब उसके अन्तर में एक पावन अन्धकार ध्यानमग्न था,
यह संसार स्वयं एक गहन अन्धकार महान्और नग्न था।

This Void held more than all the teeming worlds,
This blank felt more than all that Time has borne,
This dark knew dumbly, immensely the Unknown.

इस घोर रिक्तता में सकल भरपूर लोकों से अधिक प्राचुर्य था,
इस शून्यता में त्रिकाल कीसम्पूर्ण अनुभूति से अधिक अनुभव था,
यह कालिमा अपनी मूकता में ज्ञानी परम अज्ञेय को अत्यधिक जानती थी।

But all was formless, voiceless, infinite.[522]

किन्तु यह सम्पूर्णता अरूप निराकार,वाचाहीन, अनन्त थी।

As might a shadow walk in a shadowy scene,
A small nought passing through a mightier Nought,
A night of person in a bare outline
Crossing a fathomless impersonal Night,
Silent she moved, empty and absolute.

एक छायावी धुंधले दृश्य में जैसे एक परछाईं चलती हो,
एक लघु नगण्यता एक महत्तर घोर शून्यता से गुजरती हो,
व्यक्तित्व की अभावरात्रि में केवल एक बहिर्रेखा सम दीखती
सावित्री एक अगाध निर्वैयक्तिक घोर रात्रि को पार कर,
उस क्षेत्र में नीरव, शून्य, भावहीन और परिपूर्ण बनी निकल गयी।

In endless Time her soul reached a wide end;
The spaceless vast became her spirit’s place.

अनन्त महाकाल में उसकी द्रष्टा आत्मा एक विस्तृत सीमा पर पहुंच गयी,
यह असीम दिशाहीन विराट् अब उसकी अन्तरात्मा का क्षेत्र बन गया।

At last a change approached, the emptiness broke;
A wave rippled within, the world had stirred;
Once more her inner self became her space.

अन्त में एक परिवर्तन आ गया, वह शून्य असत् मिट गया;
अन्तर में एक लहर लहरायी, उस जगत् में हलचल हो उठी;
एक बार पुन: उसकी अन्तर्सत्ता उसका आकाश बन गयी।

There was felt a blissful nearness to the Goal;
Heaven leaned low to kiss the sacred hill,
The air trembled with passion and delight.
A rose of splendour on a tree of dreams,
The face of Dawn out of mooned twilight grew.

अब वहां अपने लक्ष्य के सान्निध्य की उसे एक सुखानुभूति हुई;
उस पुनीत उपगिरि को चूमने नभमण्डल नीचे झुक आया,
वातावरण वहां आवेश और आनन्द से कम्पित था
सपनों के एक तरुवर पर एक भव्य शोभा का गुलाब प्रस्फुटित था,
ज्योत्स्ना की धूसर आभा में दिव्य-उषा का मुखमण्डल उदित हो उठा।

Day came, priest of a sacrifice of joy
Into the worshipping silence of her world;
He carried immortal((( Possible alternative: “a mortal”.))) lustre as his robe,
Trailed Heaven like a purple scarf and wore
As his vermilion caste-mark a red sun.

दिवस का, आनन्द-यज्ञ के एक पुजारी सम आगमन हुआ
जो उसके आराधित मौन के संसार में आ पहुंचा था;
वह अमर ज्योति को वस्त्र समान धारण किये था,
उसके पीछे स्वर्गलोक एक रक्त-नीलरंगी उत्तरीय सम घिसट रहा था
और ललाट पर एक सिन्दूरी सूर्य वर्ण-चिह्न सम धारण किये था।

As if an old remembered dream come true,
She recognised in her prophetic mind
The imperishable lustre of that sky,
The tremulous sweetness of that happy air
And, covered from mind’s view and life’s approach,
The mystic cavern in the sacred hill
And knew the dwelling of her secret soul.

जैसे कि स्मृति में जाग्रत् एक पुराना सपना सत्य हो उठा हो
सावित्री ने अपने त्रिकालदर्शी मानस में
आकाश की अविनाशी दीप्ति को पहचान लिया,
उस प्रसन्नवायु के उस सिहरते माधुर्य को जान लिया
और, मानस की दृष्टि और प्राण की पहुंच से छिपी,
उस पुनीत गिरि की गुह्य कन्दरा को जान गयी
वह अपनी गुह्य चैत्य सत्ता के निवासस्थान को पहचान गयी।

As if in some Elysian occult depth,
Truth’s last retreat from thought’s profaning touch,
As if in a rock-temple’s solitude hid,
God’s refuge from an ignorant worshipping world,
It lay withdrawn even from life’s inner sense,
Receding from the entangled heart’s desire.

जैसे कि किसी आनन्दधाम की गुह्य गहनता में
विचार के संसारी स्पर्शसे दूर ऋत का अन्तिम एकान्तवास हो,
यथा एक चट्टान के अन्तर-एकान्त में एक मन्दिर छिपा हो,
एक अज्ञानी पूजा में लगी जगती से दूर प्रभु का आश्रम हो,
यह तो प्राण के अन्तर्बोध से भी परित्यक्त स्थित धाम था,
हृदय की जटिल कामनापूर्ण उलझन से परे पीछे छिपा था।

A marvellous brooding twilight met the eyes
And a holy stillness held that voiceless space.[523]

एक अद्भुत ध्यानमग्न द्वाभा सावित्री के नयनों से आ भेंटी
और एक पुनीत स्थिरता उस निःशब्द दिशा पर छायी थी।

An awful dimness wrapped the great rock-doors
Carved in the massive stone of Matter’s trance.

एक धूमिल भीषण कुहासा उन महान् शिला-द्वारों से लिपटा था
जिसे जड़तत्त्व की समाधि के स्थूल-पाषाण से तराशा गया था।

Two golden serpents round the lintel curled,
Enveloping it with their pure and dreadful strength,
Looked out with wisdom’s deep and luminous eyes.

दो सुनहरे सर्पराज उस द्वार के कगार से कुण्डलित लिपटे थे,
वे उसे अपनी विशुद्ध घोर शक्ति के साथ घेरे थे,
और अपनी प्रज्ञा के गम्भीर और चमकते नेत्रों से बाहर देख रहे थे।

An eagle covered it with wide conquering wings.
Flames of self-lost immobile reverie,
Doves crowded the grey musing cornices
Like sculptured postures of white-bosomed peace.

एक गरुड़ ने इसे अपने विजयी पंखों को फैला कर ढक रखा था:
अचल सुखानन्द में आत्म-विस्मृति कीज्वालाएं जैसे
कपोतों के समूह धूसर ध्यानमग्न छज्जों पर बैठे
शुभ्र-वक्षा शान्ति कीतक्षित मूर्तियों की भंगिमा समान लग रहे थे।

Across the threshold’s sleep she entered in
And found herself amid great figures of gods
Conscious in stone and living without breath,
Watching with fixed regard the soul of man,
Executive figures of the cosmic self,
World-symbols of immutable potency.

सुषुप्ति की दहलीज को पार कर सावित्री ने अन्दर प्रवेश किया
और स्वयं को देवताओं के महान् आकारों के मध्य पाया
वे पाषाण में सचेत और प्राणवायु-हीन होकर जीवन्त थे,
अचल स्थिर दृष्टि से मानव आत्मा को निरखते
विश्वात्मा के व्यवस्थापक आकार वे,
अविकारी सामर्थ्य बल के भौतिक संसारी रूप के प्रतीक थे।

On the walls covered with significant shapes
Looked at her the life-scene of man and beast
And the high meaning of the life of gods,
The power and necessity of these numberless worlds
And faces of beings and stretches of world-space
Spoke the succinct and inexhaustible
Hieratic message of the climbing planes.

वहां मानव और पशुजीवन औ’ देवताओं के
उन्नत सार्थक जीवन-दृश्य अपने महत्त्वपूर्ण आकारों में
दीवारों पर चित्रित अंकित उसकीओर देख रहे थे,
इन अनगिनत लोकों की शक्ति और आवश्यकता के चित्रों ने,
और विभिन्न सत्ताओं और जगत्-दिशा-विस्तारों के रूपों ने
सावित्री को अविनाशी, अक्षय सारगर्भित सूत्रों में
आत्मा के आरोह करते स्तरों के दिव्य सन्देश दिये।

In their immensitude signing infinity
They were the extension of the self of God
And housed, impassively receiving all,
His figures and his small and mighty acts
And his passion and his birth and life and death
And his return to immortality.

वे अपनी विशालता से अनन्तता कीओर संकेत कर दिखा रहे थे
कि वे प्रभु की आत्मसत्ता का विस्तृत प्रसारण थे
और उदासीन भाव से सबको भेंटते और निज में धारण करते,
उसके रूपों को और उसके लघु एवं शक्तिशाली कार्यों को
और उसके रागावेश और उसके जन्म, जीवन और मृत्यु को
और अमरत्व की ओर उसके लौटते चरणों के प्रत्यावर्तन को।

To the abiding and eternal is their climb,
To the pure existence everywhere the same,
To the sheer consciousness and the absolute force
And the unimaginable and formless bliss,
To the mirth in Time and the timeless mystery
Of the triune being who is all and one
And yet is no one but himself apart.

उनका सतत आरोहण शाश्वत है,
उस विशुद्ध सत् की ओर जो सर्वत्र एक रूप समभाव है,
निर्विकार चेतना और परिपूर्ण शक्ति है
औ’ कल्पनातीत और निराकारी सुखानुभूतिकीओर है,
दिक्काल में हर्षोल्लास की ओर एवं उस त्रिरूपी सत्ता के
उस अकाल रहस्य की ओर है जो अखिल और एक है
और फिर भी कुछ नहीं है केवल पृथक्ता में स्वयं सत् है।

There was no step of breathing men, no sound,[524]
Only the living nearness of the soul.

उस क्षेत्र में किसी श्वासधारी मानव-पदचाप की कोई ध्वनि नहीं थी,
केवल आत्मा के जीवन्त सान्निध्य की अनुभूति थी।

Yet all the worlds and God himself were there,
For every symbol was a reality
And brought the Presence which had given it life.

तथापि सकल लोक और प्रभु वहां स्वयं था,
क्योंकि प्रत्येक प्रतीक वहां यथार्थ था
और उस दिव्य उपस्थिति को जिसने इसे जीवन दिया है अभिव्यक्त करता था।

All this she saw and inly felt and knew
Not by some thought of mind but by the self.

यह सब सावित्री ने देखा और अन्तर में अनुभव कर, ज्ञान पाया,
किसी बौद्धिक विवेक से नहीं बल्कि आत्मबोध द्वारा।

A light not born of sun or moon nor fire,
A light that dwelt within and saw within
Shedding an intimate visibility,
Made secrecy more revealing than the word:
Our sight and sense are a fallible gaze and touch
And only the spirit’s vision is wholly true.

सूर्य या चन्द्रमा या अग्नि से जो नहीं जन्मा, ऐसा एक प्रकाश था,
अन्तर्वासी आत्मदृष्टि से देखती एक ज्योति
जो अन्तर में एक अभिन्न प्रत्यक्ष-दर्शन बरसा रही थी,
और रहस्य को शब्द की अपेक्षा अधिक स्पष्ट कर रही थीः
हमारी भौतिक दृष्टि का अवलोकन एवं इन्द्रिय-स्पर्श दोषपूर्ण है
और केवल आत्मदर्शन ही पूर्ण सत्य है।

As thus she passed in that mysterious place
Through room and room, through door and rock-hewn door,
She felt herself made one with all she saw.

इस प्रकार वह उस गुह्य क्षेत्र में से गुजरी
एक कक्ष से दूसरे कक्ष में, द्वार से हो एवं चट्टानी मुख्य द्वार से निकली,
उसने जो सब देखा उसके साथ तदात्मता की अनुभूति पायी।

A sealed identity within her woke;
She knew herself the Beloved of the Supreme:
These Gods and Goddesses were he and she:
The Mother was she of Beauty and Delight,
The Word in Brahma’s vast creating clasp,
The World-Puissance on almighty Shiva’s lap,—
The Master and the Mother of all lives
Watching the worlds their twin regard had made,
And Krishna and Radha for ever entwined in bliss,
The Adorer and Adored self-lost and one.

उसके अन्तर में एक मुहरबन्द अभिन्नता जाग्रत् हो उठी;
अब वह परम पुरुष की प्रियतमा का आत्म-स्वरुप पहचान गयी:
ये देवी और देवता सब उन दोनों की ही भिन्न आकृतियां थीं:
वह दिव्य सौन्दर्य और परमानन्द की स्वयं मां भगवती,
ब्रह्मा के विशाल सर्जनशील आलिंगन में बद्ध मां सरस्वती,
सर्वशक्तिमान् शिव की अंकशायिनी जगदम्बा आदि शक्ति,-
सकल प्राणियों के जगदीश्वर और जगदम्बा
अपने युगल सम्बन्ध द्वारा सृष्ट इन लोकों का अवलोकन करते,
वे कृष्ण और राधा हैं जो सतत प्रेमानन्द में गुम्फित हैं,
वे परम आराधक एवं आराध्य इष्ट हैं आत्मविस्मृत और एक हैं।

In the last chamber on a golden seat
One sat whose shape no vision could define,
Only one felt the world’s unattainable fount,
A Power of which she was a straying Force,
An invisible Beauty, goal of the world’s desire,
A Sun of which all knowledge is a beam,
A Greatness without whom no life could be.

तब अन्तिम कक्ष में एक स्वर्णासन पर विराजमान
अद्वितीय परम बैठा था जिसका रूप दर्शन वर्णन से परे था;
केवल इस संसार के अगम्य उद़्गम का अनुभव वहां होता,
यह एक आदि शक्तिदेवी जिसकी वह स्वयं संसार में भटकती एक आत्मशक्ति थी,
दृष्टि से अगोचर एक दिव्य सौन्दर्य, जो इस जग-कामना का लक्ष्य है,
एक तेजपुंज सूर्यदेव जिसका यह सब ज्ञान मात्र एक किरण है,
एक भागवत महत्ता जिसके अभाव में कोई जीवन संभव नहीं है।

Thence all departed into silent self,
And all became formless and pure and bare.

तब फिर सब एक नीरव चैतन्य में विलीन हो गया,
और सम्पूर्ण सम्भूति निराकार और विशुद्ध और शून्य रह गयी।

Then through a tunnel dug in the last rock
She came out where there shone a deathless sun.[525]

तब उस अन्तिम चट्टान में से खनित एक सुरंग से निकल
वह पहुंच गयी वहां जहां एक अमर सूर्य जाज्वल्यमान है।

A house was there all made of flame and light
And crossing a wall of doorless living fire
There suddenly she met her secret soul.

वहां ज्वाला और ज्योति से निर्मित एक गेह था
और उस जाग्रत् अग्नि की द्वारहीन दीवार को पार कर
हठात्, सावित्री निज गुह्य अन्तरात्मा से आ भेंटी।

 

A being stood immortal in transience,
Deathless dallying with momentary things,
In whose wide eyes of tranquil happiness
Which pity and sorrow could not abrogate
Infinity turned its gaze on finite shapes:
Observer of the silent steps of the hours
And the passing scenes of the Everlasting’s play,
In the mystery of its selecting will,
In the Divine Comedy a participant,
The Spirit’s conscious representative,
God’s delegate in our humanity,
Comrade of the universe, the Transcendent’s ray,
She had come into the mortal body’s room
To play at ball with Time and Circumstance.

नश्वरता में एक सत्ता अमरत्व धारण किये खड़ी
अमर होकर भी जो क्षणिक पदार्थों के साथ खेलती,
जिसके विशाल नेत्र शान्तिपूर्ण प्रसन्नता से पूर्ण थे
जिसे दया और दु:ख भंग नहीं कर पाये
इस चिरन्तन ने अपनी दृष्टि नश्वर रूपों की ओर मोड़ दी हैः
घण्टों के मूक कदमों पर वह दृष्टि गड़ाये रहती
यह चिरन्तनता हर पल के क्षणिक कर्मों का समर्थन करती
शाश्वत प्रभु की लीला के गुजरते दृश्यों की द्रष्टा है।
अपने निर्वाचित संकल्प की गुह्यता में,
इस दिव्य प्रहसन में वह एक सहयोगिनी है
परमात्मा की सचेत प्रतिनिधि है,
हमारी मानवता में भगवत्ता की रूप है,
इस विश्व की सहचरी है,परात्परता की रश्मि है,
वह इस नश्वर कायाकक्ष में उतर आयी है
दिक्काल और दैवयोग के साथ खेल खेलने।

A joy in the world her master movement here,
The passion of the game lighted her eyes:
A smile on her lips welcomed earth’s bliss and grief,
A laugh was her return to pleasure and pain.

इस संसार में उसके प्रभुसम्पन्न गतिचक्र हर्षवृद्धि करते,
इस लीला का आवेश उसके नयनों को प्रदीप्त कर देता है:
अपने अधरों की मुस्कान से धरती के सुख-दुःख का अभिनन्दन करती,
प्रसन्नता और पीड़ा का वह हास्य से प्रत्युत्तर देती।

All things she saw as a masquerade of Truth
Disguised in the costumes of Ignorance,
Crossing the years to immortality:
All she could front with the strong spirit’s peace.

सकल पदार्थों को वह परम सत्य का लीला आवरण सम जानती है
जो अविद्या के परिधानों में छिपा अभिनय करता,
वर्षों युगों की अवधि पार कर अमरत्व कीओर बढ़ता है;
वह आत्मबल की शान्ति के साथ सब घटनाओं का सामना करती है।

But since she knows the toil of mind and life
As a mother feels and shares her children’s lives,
She puts forth a small portion of herself,
A being no bigger than the thumb of man
Into a hidden region of the heart
To face the pang and to forget the bliss,
To share the suffering and endure earth’s wounds
And labour mid the labour of the stars.

क्योंकि वह मन और जीवन के कठिन श्रम को जानती है
एक माता समान वह निज बच्चों के जीवनों में अनुभव लेहिस्सा बंटाती है,
इसके लिए वह अपना एक अल्पांश सामने रख देती है,
एक सत्ता जो मनुष्य के अंगुष्ठ के बराबर है
और उसके हृदय के एक गुह्य गर्भगृह में छिपी
यह परमानन्द का सुख भूलकर यातना का सामना करने के लिए है,
एवं जगती के दुःख में भाग लेने और धरा के घावों को सहने को
और तारों के परिश्रम के साथ-साथ श्रमरत रहने को है।

This in us laughs and weeps, suffers the stroke,
Exults in victory, struggles for the crown,[526]
Identified with the mind and body and life,
It takes on itself their anguish and defeat,
Bleeds with Fate’s whips and hangs upon the cross,
Yet is the unwounded and immortal self
Supporting the actor on the human scene.

यही जीव पुरुष हममें हंसता औ’ रोता, आघात का दु:ख भोगता है,
विजय में उल्लसित होता, राजमुकुट हित संघर्ष करता है;
यह मन और देह और जीवन से एकात्म बन रहता है,
अपने ऊपर उनके कष्ट और पराजय वहन करता है,
भाग्य विधाता के कोड़ों से लहूलुहान हो सूली पर लटक जाता है,
तथापि अक्षत है और स्वयं में अमर सत्ता है
इस मानवीय जीवन दृश्य में अभिनेता को सहारा देता है।

Through this she sends us her glory and her powers,
Pushes to wisdom’s heights, through misery’s gulfs;
She gives us strength to do our daily task
And sympathy that partakes of others’ grief
And the little strength we have to help our race,
We who must fill the role of the universe
Acting itself out in a slight human shape
And on our shoulders carry the struggling world.

इसी माध्यम के द्वारा भगवती हम पर कृपा और निज शक्तियां प्रदान करती है,
प्रज्ञा के शिखरों की ओर धकेलती है, कष्टों की खाड़ियां पार कराती है;
वह हममें अपनी दैनिक कार्यपूर्ति हित बल प्रदान करती है
और अन्यों के दुःख में हिस्सा बंटा सकें वह ऐसी सहानुभूति देती है
और हममें जो लघु सामर्थ्य है वह हमारी जाति की सहायता हित है,
इस एक छोटे-से मनुज-रूप में अपना अभिनय करते हुए
हमें इस विश्व में अपनी भूमिका पूरी तरह सम्पादित करनी है
और अपने कन्धों पर इस संघर्षरत संसार का भार वहन करना है।

This is in us the godhead small and marred;
In this human portion of divinity
She seats the greatness of the Soul in Time
To uplift from light to light, from power to power,
Till on a heavenly peak it stands, a king.

हमारे अन्तर में यही भागवत अंश अति नन्हा और क्षत है;
दिव्य-तत्त्व के इस मानवीय भाग के द्वारा भगवती माता
परमात्मा की महत्ता को दिक्काल में स्थापित करती है
जिससे यह ज्योति से ज्योति की ओर, शक्ति से शक्ति कीओर उन्नत हो जाये,
जब तक यह मनुज एक स्वर्गिक शिखर पर एक अधिपति सम खड़ा न हो जाये।

In body weak, in its heart an invincible might,
It climbs stumbling, held up by an unseen hand,
A toiling spirit in a mortal shape.

यह देह से दुर्बल है, अपने हृदय में अदम्य सामर्थ्य रखता है,
यह लड़खड़ाता चढ़ता है एक अगोचर कर उसे थामे रहता है,
एक नश्वर रूप में यह श्रमरत आत्म-तत्त्व चैत्य पुरुष है।

Here in this chamber of flame and light they met;
They looked upon each other, knew themselves,
The secret deity and its human part,
The calm immortal and the struggling soul.

यहां इस ज्वाला और ज्योति-कक्ष में आज वे भेंटे:
उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा, और स्वयं को आत्मज्ञान से जान गये,
यही गुह्य देवी, और उसी की मानवीय अंश है,
यह शान्त चिरन्तन, और संघर्ष में लगी जीव-सत्ता है।

Then with a magic transformation’s speed
They rushed into each other and grew one.

तब एक जादुई रूपान्तरण के तीव्र वेग से
वे एक दूसरे में अबाध रूप से समा एक हो गये।

 

Once more she was human upon earthly soil
In the muttering night amid the rain-swept woods
And the rude cottage where she sat in trance:
That subtle world withdrew deeply within
Behind the sun-veil of the inner sight.

अब एक बार फिर से वह पृथ्वी की माटी पर मानवी थी
उस टपटप बरसती रात के मध्य वर्षा से बुहारी गयी वनस्थली में
और उस माटी की कुटी में जहां वह समाधि में बैठी थी:
वह सूक्ष्म संसार अब अन्तर की गहनता में डूब लोप हो गया
अन्तर-दृष्टि के सूर्य-पट के पीछे जा छिप गया।

But now the half-opened lotus bud of her heart
Had bloomed and stood disclosed to the earthly ray;
In an image shone revealed her secret soul.[527]

किन्तु अब उसके हृदय की अर्ध-मुकुलित कमल कली
पूर्ण प्रस्फुटित, भौतिक प्रकाश-किरण में साक्षात् खड़ी थी;
उसकी गुह्यात्मा को प्रकटाती एक प्रतिबिम्ब सम चमक रही थी।

There was no wall severing the soul and mind,
No mystic fence guarding from the claims of life.

अब यहां मन और चैत्य-सत्ता को पृथक् करती कोई दीवार नहीं थी,
जीवन के अधिकारों पर पहरा देती कोई गुह्य सीमा नहीं थी।

In its deep lotus home her being sat
As if on concentration’s marble seat,
Calling the mighty Mother of the worlds
To make this earthly tenement her house.

अपने गहन कमलकक्ष में उसकी चैत्य-सत्ता आसीन थी
एकाग्रता के संगमरमरी आसन पर बैठी,
त्रिलोकों की भगवती माता को पुकारती
इस पृथ्वी लोक को निज धाम बना लेने को टेरती।

As in a flash from a supernal light,
A living image of the original Power,
A face, a form came down into her heart
And made of it its temple and pure abode.

हठात्, एक दिव्य ज्योति से एक बिजली सम कौंधती
उस आदि चित्शक्ति की एक जाग्रत् छवि,
एक मुखश्री, एक आकृति अवतरित हो उसके अन्तर में प्रवेश कर गयी
और उसमें अपना मन्दिर अपना पुनीत धाम बना लिया।

But when its feet had touched the quivering bloom,
A mighty movement rocked the inner space
As if a world were shaken and found its soul:
Out of the Inconscient’s soulless mindless Night
A flaming serpent rose released from sleep.

किन्तु जब इसके चरण कमलों ने उस कम्पित कुसुम को स्पर्श किया,
एक शक्तिशाली गति संचालन ने उस अन्तराकाश को हिला दिया
जैसे कि एक संसार हिल उठा और निज अन्तरात्मा को पा लिया:
उस घोर अचित् की आत्माहीन मनहीन काल अंधरात्रि से बाहर आ
जड़ता से एक ज्वलन्त महानाग अपनी निद्रा तज जाग उठा।

It rose billowing its coils and stood erect
And climbing mightily stormily on its way
It touched her centres with its flaming mouth:
As if a fiery kiss had broken their sleep,
They bloomed and laughed surcharged with light and bliss;
Then at the crown it joined the Eternal’s space.

यह अपने कुण्डलों को लहराता सीधा खड़ा हो गया
और बलपूर्वक अपना मार्ग आंधीसम बनाता ऊपर चढ़ने लगा
इसने सावित्री के चक्रों को अपने प्रज्वलित मुख से स्पर्श किया;
एक प्रज्वलित चुम्बन से उनकी निद्रा को भंग करता गया,
वे प्रसन्नता से पूर्ण प्रस्फुटित हो, ज्योति और मोद से संचारित हो उठे।
तब यह शीर्ष तक जा पहुंचा और चिरन्तन के शून्याकाश से जुड़ गया।

In the flower of the head, in the flower of Matter’s base,
In each divine stronghold and Nature-knot
It held together the mystic stream which joins
The viewless summits with the unseen depths,
The string of forts that make the frail defence
Safeguarding us against the enormous world,
Our lines of self-expression in its Vast.

सिर के ऊर्ध्व में सहस्रार पुष्प में, जड़तत्त्व के आधार मूलाधार पुष्प में
प्रत्येक भगवत्ता के दृढ़ धार में और विश्व-प्रकृति की ग्रन्थि में
यह उस गुह्य जीवनधारा को धारण किये है जो अगोचर शिखरों को
जोड़ती है धरा की अगाध अचित् गहनताओं से,
हमारे चक्रदुर्गों की यह पंक्ति जो इन भीषण संसारी आघातों से
सुरक्षित रखती, अति दुर्बल रक्षा-कवच बन पाती है,
इस विश्व-विराटता में, यही हमारी आत्म-अभिव्यक्ति की पंक्तियां हैं।

An image sat of the original Power
Wearing the mighty Mother’s form and face.

वहां इस आदिमूल महाशक्ति की एक छवि
आदि-शक्ति मां भगवती का आकार और रूप धारण किये थी।

Armed, bearer of the weapon and the sign
Whose occult might no magic can imitate,
Manifold yet one she sat, a guardian force:
A saviour gesture stretched her lifted arm,
And symbol of some native cosmic strength,
A sacred beast lay prone below her feet,[528]
A silent flame-eyed mass of living force.

सुशस्त्रित, शस्त्रधारिणी और शुभचिह्न से सज्जित
जिसकी रहस्यमयी सामर्थ्य का कोई माया अनुकरण नहीं कर सकी।
बहुरूपिणी होकर भी वहां एकरूपा संरक्षिका महाशक्ति आसीन थी:
वह अपनी भुजा को एक अभयदान देती मुद्रा में उठाये थी,
और किसी आदिमूल विश्व-बल का प्रतीक-सा,
एक पावन पशु उसके चरणों में प्रणत लेटा था,
यह जीवन्त बल मूक ज्वाला-नेत्रों का एक द्रव्यमान था।

All underwent a high celestial change:
Breaking the black Inconscient’s blind mute wall,
Effacing the circles of the Ignorance,
Powers and divinities burst flaming forth;
Each part of the being trembling with delight
Lay overwhelmed with tides of happiness
And saw her hand in every circumstance
And felt her touch in every limb and cell:
In the country of the lotus of the head
Which thinking mind has made its busy space,
In the castle of the lotus twixt the brows
Whence it shoots the arrows of its sight and will,
In the passage of the lotus of the throat
Where speech must rise and the expressing mind
And the heart’s impulse run towards word and fact,
A glad uplift and a new working came.

अब सब में एक उच्च अलौकिक परिवर्तन आ गया:
जिसने तामसिक अचित् की अन्धी मूक दीवार भंग कर दी,
घोर अविद्या की गोल सीमाएं मिटा दीं,
शक्तियां और दिव्यताएं प्रज्वलित हो प्रस्फुटित हो उठीं;
सत्ता का प्रत्येक भाग हर्ष से कांप उठा
सुख के ज्वार भाटे से अभिभूत हो शान्त हो गया
अब सत्ता प्रत्येक परिस्थिति में माता का हाथ देखती
और अंग-प्रत्यंग और कोषाणु में उसके स्पर्श का अनुभव पाती।
शीर्ष के सहस्त्रदल कमल केन्द्र में
जिसमें मनीषी मन अपना व्यस्त आकाश रच लेता है,
भूमध्य के आज्ञाचक्र कमल केन्द्र के दुर्ग में
जहां से यह अपनी अन्तर्दृष्टि और संकल्प के बाण छोड़ता है,
कण्ठ के विशुद्धिचक्र-कमल के केन्द्र में
जहांसे वाणी उदित हो मन के विचारों को व्यक्त करती है
और हृदय की भावना को कर्म और शब्द देती है,
इनमें एक प्रसादमयी उदात्तता और एक नूतन प्रक्रिया आ गयी।

The immortal’s thoughts displaced our bounded view,
The immortal’s thoughts earth’s drab idea and sense;
All things now bore a deeper heavenlier sense.

हमारे सीमित बंधे दृष्टिकोण का स्थान अविनाशी संकल्पों ने ले लिया,
इन शाश्वत विचारों ने पार्थिव नीरस धारणाऔर बोध को बदल दिया;
सकल वस्तुओं में एक गहनतर स्वर्गिक बोध अब आ गया था।

A glad clear harmony marked their truth’s outline,
Re-set the balance and measures of the world.

एक प्रसन्न स्पष्ट सुसंगति ने उनकीसत्य रूप-रेखा को अंकित कर दिया,
इस संसार के समतोलन और माप को फिर से निर्धारित कर दिया।

Each shape showed its occult design, unveiled
God’s meaning in it for which it was made
And the vivid splendour of his artist thought.

प्रत्येक रूप ने अपनी गुह्य योजना को दर्शा दिया,
जिस कार्य के लिए यह बना था उसमें छिपे प्रभु के अर्थ को खोल दिया
और अपने कलात्मक विचार की जीवन्त भव्यता को प्रकटा दिया।

A channel of the mighty Mother’s choice,
The immortal’s will took into its calm control
Our blind or erring government of life;
A loose republic once of wants and needs,
Then bowed to the uncertain sovereign mind,
Life now obeyed to a diviner rule
And every act became an act of God.

शक्तिरूपी भगवती की इच्छा ने उसे अपनी एक प्रणाली बना,
जीवन के इस दोषपूर्ण शासन को या हमारी अन्धता को
अमरत्व के संकल्प ने अपने शान्त नियन्त्रण में ले लिया;
कभी जो अभावों और आवश्यकताओं का एक शिथिल गणतन्त्र था,
तब यह अनिश्चित अस्थिर अधिपति मन के प्रति नमित था,
यह प्राण अब एक दिव्यतर शासन का अनुगत हो गया
और उसका प्रत्येक कर्म एक भागवत कर्म बन गया।

In the kingdom of the lotus of the heart
Love chanting its pure hymeneal hymn
Made life and body mirrors of sacred joy
And all the emotions gave themselves to God.[529]

हृदयचक्र के शतदल कमल के उस राज्य में
प्रेम देवता अपने विशुद्ध वैवाहिक मन्त्रों का उच्चारण करता
जिसने प्राण और शरीर को पावन हर्ष का दर्पण बना दिया
और इसकी समस्त भावनाओं ने स्वयं को प्रभु को समर्पित कर दिया।

In the navel lotus’s broad imperial range
Its proud ambitions and its master lusts
Were tamed into instruments of a great calm sway
To do a work of God on earthly soil.

नाभिकेन्द्र-कमल के विस्तृत राज्य क्षेत्र में
इसकी गर्वीली उच्चाकांक्षाओं और इसके मुख्य भोगविलासों को
वश में कर एक महती शान्ति के यन्त्रों में ढाल दिया,
इस पार्थिव माटी पर उन्हें प्रभु का कार्य सौंप दिया।

In the narrow nether centre’s petty parts
Its childish game of daily dwarf desires
Was changed into a sweet and boisterous play,
A romp of little gods with life in Time.

संकुचित अधोचक्र के छोटे अंगों में कार्य करती
दैनिक लघु कामनाओं की बचकानी क्रीड़ा
परिवर्तित हो एक मधुर और ऊधमी खेल बन गयी,
दिक्काल में प्राण के साथ खेलते लघु देवों की एक खिलवाड़ हो गयी।

In the deep place where once the Serpent slept,
There came a grip on Matter’s giant powers
For large utilities in life’s little space;
A firm ground was made for Heaven’s descending might.

उस गहन स्थान पर जहां कभी कुण्डलिनी सोयी थी,
वहां पर जड़तत्त्व की घोर शक्तियों को अधिकार में कर,
जीवन के नन्हें आकाश में विशाल उपयोग हित कार्य में लगा दी गयीं;
दिविलोक के अवतरण हित एक दृढ़ आधारभूमि तैयार हो गयी।

Behind all reigned her sovereign deathless soul:
Casting aside its veil of Ignorance,
Allied to gods and cosmic beings and powers
It built the harmony of its human state;
Surrendered into the great World-Mother’s hands
Only she obeyed her sole supreme behest
In the enigma of the Inconscient’s world.

इस सबके पीछे सावित्री की अमर-चैत्य सत्ता का साम्राज्य चलता:
अपने घोर अविद्या के घूंघट को हटा,
यह अब देवताओं औ’ वैश्विक सत्ताओं और शक्तियों की मित्र थी
इसने अब अपनी मानवीय स्थिति के साथ सुसंगति रच ली;
स्वयं को भगवती जगत्-जननी के हाथों में समर्पित कर
इस भीषण अचित् संसार की समस्या में
वह केवल उसकी सर्वोच्च आज्ञा का अनुपालन करती।

A secret soul behind supporting all
Is master and witness of our ignorant life,
Admits the Person’s look and Nature’s role.

एक गुह्यात्मा जो सकल सृष्टि को पीछे से सहारा देती है
हमारे अज्ञ जीवन की यही साक्षी और स्वामिनी है,
यही पुरुष का व्यक्तित्व और अपराप्रकृति की भूमिका स्वीकारती है।

But once the hidden doors are flung apart
Then the veiled king steps out in Nature’s front;
A Light comes down into the Ignorance,
Its heavy painful knot loosens its grasp:
The mind becomes a mastered instrument
And life a hue and figure of the soul.

किन्तु एक बार जब गोपित द्वार पूर्णत: खुल जाते हैं
तब पट के पीछे छिपा यह राजा प्रकट हो प्रकृति देवी के सामने खड़ा हो जाता है;
इस अन्ध अविद्या में एक दिव्य-प्रकाश उतर आता है,
जिससे इसकी बोझिल कष्टदायी ग्रन्थि की पकड़ ढीली हो जाती है।
यह मन तब आत्मा का एक प्रधान यन्त्र बन जाता है
और यह प्राण आत्मा के रंग और रूप में रंग जाता है।

All happy grows towards knowledge and towards bliss.

सकल भाग प्रमुदित हो ज्ञान और आनन्द कीओर विकास करते हैं।

A divine Puissance then takes Nature’s place
And pushes the movements of our body and mind;
Possessor of our passionate hopes and dreams,
The beloved despot of our thoughts and acts,
She streams into us with her unbound force,
Into mortal limbs the Immortal’s rapture and power.

हमारे स्वभाव का स्थान एक दिव्य आत्मबल ले लेता है
और हमारी दैहिक और मानसिक प्रक्रियाओं को प्रेरित करता है,
यह हमारी आवेशपूर्ण आशाओं और सपनों की नाथ है,
यह हमारे विचारों और कर्मों की अतिप्रिय शासक है
वह अपनी असीम शक्ति से हमारे अन्तर को प्लावित कर देती है,
नश्वर अंगों को अमरता के आह्लाद और बल से भर देती है।

An inner law of beauty shapes our lives;[530]
Our words become the natural speech of Truth,
Each thought is a ripple on a sea of Light.

हमारे जीवनों को एक अन्तर सौन्दर्य का विधान रूपायित करता है;
हमारे शब्द परम-सत्य की वाणी सहज धारण कर लेते हैं,
प्रत्येक संकल्प परा-ज्योति के सिन्धु की एक ऊर्मि होता है।

Then sin and virtue leave the cosmic lists;
They struggle no more in our delivered hearts:
Our acts chime with God’s simple natural good
Or serve the rule of a supernal Right.

तब विश्व-सूचियों से पाप एवं पुण्य निष्कासित हो जाते हैं;
इन द्वन्द्वों के संघर्ष अब हमारे मुक्त-हृदयों को नहीं छेदतेः
हमारे कर्म अब प्रभु के सहज स्वाभाविक शिवत्व से गुंजित होते हैं
या वे एक भगवत्ता के विश्व-कल्याण के नियम से बंधे होते हैं।

All moods unlovely, evil and untrue
Forsake their stations in fierce disarray
And hide their shame in the subconscient’s dusk;
Then lifts the mind a cry of victory:
“O soul, my soul, we have created Heaven,
Within we have found the kingdom here of God,
His fortress built in a loud ignorant world.

कुरूप, अशुभ और समस्त असत्य मनोभावनाएं
घोर अव्यवस्था में अपने स्थानों को तज देती हैं
और लज्जा के कारण स्वयं को अवचेतन-धूसरता में छिपा लेती हैं।
तब विजय की एक शंखध्वनि मानस को उन्नत कर पुकार उठती है:
‘‘हे आत्मा, ओ मेरी चैत्य-सत्ता, हमने स्वर्ग की सृष्टि कर ली है,
यहां अपने अन्तर में हमने प्रभु के साम्राज्य की स्थापना कर ली है
एक कोलाहलपूर्ण अज्ञ जगत् में उसके दुर्ग की रचना कर ली है।

Our life is entrenched between two rivers of Light,
We have turned space into a gulf of peace
And made the body a capitol of bliss.

हमारा जीवन परा-ज्योति की दोसरिताओं के मध्य स्थापित है,
हमने अन्तरकाश को एक शान्ति की खाड़ी में बदल दिया है
और इस शरीर को सुखानन्द का गिरिस्थित एक देवालय बना दिया है।

What more, what more, if more must still be done?”

और क्या चाहिये, और क्या करना है, क्या अभी कुछ और कर्तव्य शेष है?’’

In the slow process of the evolving spirit,
In the brief stade between a death and birth
A first perfection’s stage is reached at last;
Out of the wood and stone of our nature’s stuff
A temple is shaped where the high gods could live.

इस विकसित होते चैत्य पुरुष की मन्द प्रक्रिया में,
जीवन और मृत्यु के मध्य इस क्षणिक अखाड़े में
अन्त में एक प्रथम परिपूर्ण अवस्था तो प्राप्त कर ली गयी है;
इस काष्ठ और पाषाण से निर्मित हमारे प्राकृतिक द्रव्य से
एक मन्दिर का निर्माण हो गया है जहां पर उन्नत देवगण बस सकते हैं।

Even if the struggling world is left outside
One man’s perfection still can save the world.

यद्यपि यह संघर्षरत भौतिक संसार बाहर छोड़ दिया जाता है
फिर भी एक मानव की परिपूर्णता इस संसार की रक्षा कर सकती है।

There is won a new proximity to the skies,
A first betrothal of the Earth to Heaven,
A deep concordat between Truth and Life:
A camp of God is pitched in human time.[531]

दिविलोकों की एक नूतन समीपता अब सावित्री में स्थापित हो गयी थी
धरा और देवलोक की यह प्रथम प्रेम-सगाई थी,
परम सत्य और प्राणजीवन के मध्य एक गहन आत्मसंधि थी।
मानवीय दिक्काल में प्रभु का एक शिविर गाड़ दिया था।

END OF CANTO FIVE