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At the Feet of The Mother

वह कौन सो रहा ?

A poem which came on this December 05

वह कौन सो रहा पृथ्वी पर
झूल रहा मृत्यु के संग
खेल रहा यह खेल विकट
वह कौन सो रहा ?

कैसी अद्भुत निद्रा है यह
वह जाग रहा है तन्द्रा में
लाने को परम प्रकाश यहाँ
उतरा वह मृत्यु-कन्दरा में I

चिर शांति मृत्यु की नहीं है यह
मुखमंडल को जो घेर रही
वह है शिवत्व की शांति परम
मानव विष को सोख रही l

स्वर्णिम चादर में वह लिपटा
मृत्यु दंश से मरा नहीं
मानव को नव जीवन देने को
स्वीकारी उसने यह नियति I

मृत्यु की गहन गुफा में जा
नव सृष्टि बीज बोया उसने
अमृत गंगा बरसाने को
पाताल मार्ग खोला उसने I

वह स्वप्न बो रहा पृथ्वी पर
जीवन को दिव्य बनाने का
कोई अंत नहीं आरम्भ है ये
धरती को स्वर्ग बनाने का l

वह सेतु बंध बन उतरा है
नव युग की नींव बिठाने को
धरती पर स्वर्णिम गंगा का
कलकल नव गीत सुनाने को I

वह निद्रा में भी जाग रहा
हम जागे हुए भी सोये हैं
वह महानिशा लाता प्रकाश
हम अंधकार में खोये हैं I

उसके इस परम त्याग से ही
सब स्वर्ग द्वार अब खुल गए हैं
मानव हेतु सर्वस्व त्याग
प्रभु मृत्यु शैय्या पे सोये हैं I

शत शत नमन धन्य पृथ्वी
जिसने यह दृश्य भी देखा है
स्वर्ग शेष शैय्या को त्याग
भू बना बिछावन सोये हैं l

देखो देखो मृत्यु भी नत
उन मूँदे नयन को देख रही
वह भी खड़ी प्रतीक्षारत
प्रभु साथ बंधी उसकी नियति

अब पल दो पल की बात यहाँ
सब अंधकार मिट जाएगा
उनके प्रकाश के सम्मुख वह
अब कब तक यूँ टिक पाएगा I

चलो प्रणाम करें हम सब
यह महा नमन की बेला है
यह वो क्षण जब मानव भू में
प्रभु ने अमरत्व को बोया है l

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