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At the Feet of The Mother

SAVITRI Book Two. Canto Thirteen (Eng-Hindi)

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BOOK TWO. THE BOOK OF THE TRAVELLER OF THE WORLDS

Canto Thirteen. In the Self of Mind

 

At last there came a bare indifferent sky
Where Silence listened to the cosmic Voice,
But answered nothing to a million calls;
The soul’s endless question met with no response.

अन्त में वहां एक खाली उदासीन चित्ताकाश आ पहुंचा
जहां चरम-नीरवता ब्रह्माण्डीय परावाचा को सुनती,
किन्तु लाखों पुकारों का कोई उत्तर नहीं देती थी;
उस आत्मा को अपने अन्तहीन प्रश्न का कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला।

An abrupt conclusion ended eager hopes,
A deep cessation in a mighty calm,
A finis-line on the last page of thought
And a margin and a blank of wordless peace.

एक हठात् निष्पत्ति ने आतुर आशाओं को मिटा दिया,
एक शक्तिशाली नीरवता में एक गहन अवसान आ गया,
निःशब्द शान्ति की एक सीमा और रिक्तता आ गयी
विचार के अन्तिम पृष्ठ पर एक विराम रेखा आ गयी।

There paused the climbing hierarchy of worlds.

यहां आकर लोकों के आरोहण की परम्परा ठहर गयी।

He stood on a wide arc of summit Space
Alone with an enormous Self of Mind
Which held all life in a corner of its vasts.

राजा आत्माकाशीय एक शिखर के विस्तृत वृत्तांश पर
मनःशक्ति की एक विराट् अन्तरात्मा के साथ एकाकी खड़ा था
जो अपनी विशालताओं के एक कोने में सकल जीवन को धारण किये थी।

Omnipotent, immobile and aloof,
In the world which sprang from it, it took no part
It gave no heed to the paeans of victory,
It was indifferent to its own defeats,
It heard the cry of grief and made no sign,
Impartial fell its gaze on evil and good,
It saw destruction come and did not move.

सर्वशक्तिमान्, अचल और अकेली,
अपने से प्रस्फुटित संसार में, यह कोई भाग नहीं लेती:
निवेदित विजय-गीतों की ओर यह ध्यान नहीं देती,
अपनी पराजयों के प्रति भी यह उदासीन रहती,
दुःख के आर्तनादों को सुनकर भी कोई संकेत नहीं देती;
पाप और पुण्य दोनों पर इसकी दृष्टि निष्पक्ष भाव से पड़ती,
विनाश को समीप आते देख यह विचलित नहीं होती।

An equal Cause of things, a lonely Seer
And Master of its multitude of forms,
It acted not but bore all thoughts and deeds,
The witness Lord of Nature’s myriad acts
Consenting to the movements of her Force.

यह वस्तुओं के सम-भाव का एक मूल कारण, एक एकाकी द्रष्टा आत्मा
और इसके विविध आकारों की परम-स्वामिनी
यह निष्क्रिय रहकर भी समस्त विचारों और कर्मों को धारण करती है
विश्व-प्रकृति के असंख्य कर्मों का साक्षी प्रभु है
वह उसकी चरम-ऊर्जा की गतियों की स्वीकृति देता है।

His mind reflected this vast quietism.

योगी के मन ने इस विशाल प्रशान्तता को प्रतिबिम्बित किया।

This witness hush is the Thinker’s secret base:
Hidden in silent depths the word is formed,
From hidden silences the act is born
Into the voiceful mind, the labouring world;
In secrecy wraps the seed the Eternal sows
Silence, the mystic birthplace of the soul.[283]

यही साक्षी मौन ही तो मनीषी ऋषि की गुह्य आधारभूमि है:
मौन गहनताओं की गोपनीयता में आदि शब्द आकार लेता है,
इसकी गुह्य नीरवताओं से कर्म उत्पन्न हो
इस वाचापूर्ण मन में, इस श्रमरत संसार में आता है;
चिरन्तन प्रभु द्वारा रोपित यह बीज रहस्य में लिपटा रहता है,
परम-नीरवता, इस अन्तरात्मा का गुह्य जन्म-स्थान है।

In God’s supreme withdrawn and timeless hush
A seeing Self and potent Energy met;
The Silence knew itself and thought took form:
Self-made from the dual power creation rose.

प्रभु की सर्वोच्च अन्तर्मुखी और कालातीत नीरवता में
एक द्रष्टा आत्म-पुरुष और समर्थ तपःशक्ति भेंटे;
आत्म-नीरवता स्वयं को जान गयी और विचार साकार हो उठा:
उस स्वयंभू द्वैत शक्ति से यह सृष्टि उदित हो उठी।

In the still self he lived and it in him;
Its mute immemorable listening depths,
Its vastness and its stillness were his own;
One being with it he grew wide, powerful, free.

उस स्थिर आत्मसत्ता में अब योगी बसता और यह उसमें रहती;
इसकी मूक स्मरणातीत श्रवण करतीं गहनताएं,
इसकी विशालता और इसकी स्थिरता अब उसकी अपनी थी;
इसके साथ एकात्म हो वह विशाल,शक्तिशाली और मुक्त हो गया।

As one who builds his own imagined scenes
And loses not himself in what he sees,
Spectator of a drama self-conceived,
He looked on the world and watched its motive thoughts
With the burden of luminous prophecy in their eyes,
Its forces with their feet of wind and fire
Arisen from the dumbness in his soul.

पृथक बन्धनहीन हो अब वह सकल पदार्थों को अवलोकता।
जैसे कि कोई अपने निजी कल्पित दृश्यों को रचता हो
किन्तु उस दृश्य में स्वयं को खो नहीं देता,
आत्म-रचित एक नाटक का द्रष्टा बना रहता,
योगी ने इस संसार को देखा और इसके प्रेरक संकल्पों का निरीक्षण किया
जिनके नेत्र ज्योतिर्मयी भविष्यवाणी के बोझ से बोझिल थे,
उसने अपनी अन्तरात्मा की मूकतासे उठती
पवन और पावक के चरणोंवाली इसकी तेजस्वी ऊर्जाओं को देखा।

All now he seemed to understand and know;
Desire came not nor any gust of will,
The great perturbed inquirer lost his task;
Nothing was asked nor wanted any more.

अब वह पूर्णत: समझता जानता दिखता था;
उसके अन्तर से कोई कामना और संकल्प का झोंका नहीं उठा,
उस महान् व्याकुल जिज्ञासु ने अपना कठोर-व्रत खो दिया था;
कोई प्रश्न शेष नहीं रहा और जानने की चाहना भी बाकी नहीं रही।

There he could stay, the Self, the Silence won:
His soul had peace, it knew the cosmic Whole.

वहां वह ठहर सकता था, विज्ञानमय आत्मा, चरम शान्ति अब उसकी थी:
उसकी अन्तरात्मा शान्त थी, यह विश्व-सर्वेश्वर की ज्ञाता थी।

Then suddenly a luminous finger fell
On all things seen or touched or heard or felt
And showed his mind that nothing could be known;
That must be reached from which all knowledge comes.

तब हठात् एक दीप्तिमयी अंगुली संकेत करती गिरी
उन सब पदार्थों पर जो दृष्ट थे या स्पर्श्य या श्रुत अथवा अनुभूत थे
और उसके मानस को दिखा दिया कि कुछ भी जाना नहीं जा सकता है;
उसे तत्-सत् तक पहुंचना होगा जहां से सकल ज्ञान आता है।

The sceptic Ray disrupted all that seems
And smote at the very roots of thought and sense.

उस संशय की दिव्य किरण ने जोसकल दिखता था उसमें व्यवधान डाल दिया
और चिन्तन और बोध की अपनी ही जड़ों को काट दिया।

In a universe of Nescience they have grown,
Aspiring towards a superconscient Sun,
Playing in shine and rain from heavenlier skies
They never can win however high their reach
Or overpass however keen their probe.

चिन्तन एवं बोध निश्चेतन महाशक्ति के एक विश्व में विकसित हुए हैं,
एक पराचेतना के सूर्यदेव की ओर अभीप्सा करते हैं,
स्वर्ग के गगनों से आती धूप और वर्षा में खेलते हैं
वे चाहे कितनी भी ऊंची उड़ान भर लें कभी विजयी नहीं हो सकते हैं
या उनका परीक्षण कितना भी गहन क्यों न हो वे उसे पार नहीं कर सकते।

A doubt corroded even the means to think,
Distrust was thrown upon Mind’s instruments;
All that it takes for reality’s shining coin,
Proved fact, fixed inference, deduction clear,[284]
Firm theory, assured significance,
Appeared as frauds upon Time’s credit bank
Or assets valueless in Truth’s treasury.

चिन्तन के उपकरणों को एक सन्देह क्षीण कर डालता है,
मानस के यन्त्र-साधनों पर एक अविश्वास छा जाता है;
जिसे मन वास्तविक चमकते सिक्के सम लेता है,
प्रमाणित तथ्य, निश्चित निष्कर्ष, स्पष्ट निगमन
अटल सिद्धान्त, आश्वासनपूर्णसार्थकता,
अब सब युग-काल के जमा खाते में जाली नोट सम लगते
या शाश्वत सत्य के खजाने में मूल्यहीन सम्पत्ति थे।

An Ignorance on an uneasy throne
Travestied with a fortuitous sovereignty
A figure of knowledge garbed in dubious words
And tinsel thought-forms brightly inadequate.

एक आशंकित सिंहासन पर एक अविद्या आसीन हो
एक दैवी आकस्मिक प्रभुता के साथ उपहास में मग्न थी,
यह ज्ञान का एक रूप धारण कर संदिग्ध शब्दों के परिधान से
और चमकीले विचार-आकारों की अपर्याप्त भड़कीली सजावट से सज्जित थी।

A labourer in the dark dazzled by half-light,
What it knew was an image in a broken glass,
What it saw was real but its sight untrue.

अन्धकार का एक श्रमिक जैसे अर्ध-प्रकाश से चौंधिया गया था,
जिसका ज्ञान एक टूटे दर्पण में दिखता एक प्रतिबिम्ब मात्र था,
जो यह देखता वह यथार्थ था किन्तु यह दर्शन ही असत्य था।

All the ideas in its vast repertory
Were like the mutterings of a transient cloud
That spent itself in sound and left no trace.

इसके विस्तृत संग्रहालय की सकल विचार-धारणाएं
एक क्षणिक मेघ गर्जन कीगड़गड़ाहटों समान थीं
जो स्वयं को गरजने में खर्च कर निःशेष हो गयी थीं।

A frail house hanging in uncertain air,
The thin ingenious web round which it moves,
Put out awhile on the tree of the universe,
And gathered up into itself again,
Was only a trap to catch life’s insect food,
Winged thoughts that flutter fragile in brief light
But dead, once captured in fixed forms of mind,
Aims puny but looming large in man’s small scale,
Flickers of imagination’s brilliant gauze
And cobweb-wrapped beliefs alive no more.

अनिश्चय के वातावरण में यह लटकता एक क्षीण भंगुर गेह था,
एक महीन कौशल के जाले से लटका चहुं ओर यह घूमता,
जिसे विश्व-वृक्ष पर कुछ समय के लिए टांग दिया गया था,
और पुनः इसे अपने अन्तर में समेट लिया जाता,
वास्तव में यह जीवन की कीट खुराक थी, उसे फंसाने हित एक जाल था
पंखधारी विचार जो क्षणिक ज्योति में बलहीन से फड़फड़ाते उड़े थे
किन्तु अब मर चुके थे, कभी वे मानस की निश्चित आकृतियों सम धरे गये थे,
उनके लक्ष्य लघु थे किन्तु मानव की क्षुद्र तुला पर महान् दिखते थे,
कल्पना की चमकीली धुंध के वे स्फुरण थे
और वाग्जाल में लिपटे विश्वास अब जीवित नहीं रहे थे।

The magic hut of built-up certitudes
Made out of glittering dust and bright moonshine
In which it shrines its image of the Real,
Collapsed into the Nescience whence it rose.

उसके मन द्वारा रचित विश्वासों की यह मायावी कुटी
जो चमकते धूलिकणों और उज्ज्वल कल्पना द्वारा बनायी गयी थी
जिसके भीतर इसने परम सत् की अपनी प्रतिमा स्थापित की थी,
अब यह उसी घोर निश्चेतना में ढह गयी जहां से उठी थी।

Only a gleam was there of symbol facts
That shroud the mystery lurking in their glow,
And falsehoods based on hidden realities
By which they live until they fall from Time.

सांकेतिक तथ्यों की वहां एक झलक मात्र शेष थी
जो अपनी चमक में उस रहस्य को छिपाये थी जो अन्तर में चिपका है,
और गोपित वास्तविकताओं पर आधारित असत्य थे
इन पर निर्भर वे तब तक जीते थे जब तक काल से च्युत नहीं हो जाते।

Our mind is a house haunted by the slain past,
Ideas soon mummified, ghosts of old truths,
God’s spontaneities tied with formal strings
And packed into drawers of reason’s trim bureau,
A grave of great lost opportunities,[285]
Or an office for misuse of soul and life
And all the waste man makes of heaven’s gifts
And all his squanderings of Nature’s store,
A stage for the comedy of Ignorance.

मानव मन निहत भूतकाल के प्रेतों का एक घर है,
जहां धारणाओं के सूखे शव रखे हैं, पुरातन सत्य प्रेत सम रहते हैं,
प्रभु कीसहजवृत्तियों को इसमें औपचारिकता के सूत्रों से बांध दिया गया है
और उन्हें बुद्धि के व्यवस्थित कार्यालयों में क्रम से संवेष्टित कर भर दिया गया है,
यह लुप्त महान् अवसरों की एक समाधि है,
या जीव और जीवन के दुरुपयोग हित एक कार्यालय है
यहां पर सकल स्वर्गिक उपहारों को मानव बर्बाद कर विकृत कर देता है
और यहांविश्व-प्रकृति के भण्डार की उसकी लूटें भरी हुई हैं,
अज्ञ अविद्या की प्रहसन नाटिका का यह एक रंगमंच है।

The world seemed a long aeonic failure’s scene:
All sterile grew, no base was left secure.

यह लोक दीर्घ युगान्तरीय असफलताओं से पूर्ण एक दृश्य जैसा दिखता:
समस्त एक बंजरभूमि सम विस्तार था, एक भी आधार सुरक्षित नहीं था।

Assailed by the edge of the convicting beam
The builder Reason lost her confidence
In the successful sleight and turn of thought
That makes the soul the prisoner of a phrase.

उस दोषारोपण करती किरण की तीखी धार से आक्रामित हो
उस रचनाकार श्रेष्ठ विवेक ने अपना विश्वास खो दिया
सफल चतुर कौशल और मानसिक संकल्प के आवर्तन को खो दिया
जो अन्तःपुरुष को एक शब्द-जाल में फंसा बन्दी बना रख लेता है।

Its highest wisdom was a brilliant guess,
Its mighty structured science of the worlds
A passing light on being’s surfaces.

वहां इसकी सर्वोच्च प्रज्ञा भी मात्र एक प्रतिभाशाली अनुमान थी,
इन जगतों का इसका शक्तिशाली रचित विज्ञान
प्राणी के धरातलों पर एक क्षणिक प्रकाश मात्र डालता है।

There was nothing there but a schema drawn by sense,
A substitute for eternal mysteries,
A scrawl figure of reality, a plan
And elevation by the architect Word
Imposed upon the semblances of Time.

यह सब चित्तबोध द्वारा अंकित एक योजना के सिवाय कुछ नहीं था,
शाश्वत-रहस्यों का मात्र यह एक विकल्प था,
यथार्थ का घसीटा हुआ एक आकार था,
स्रष्टा आदि-शब्द द्वारा रचित एक योजना और एक उत्थान था
जिसे दिक्काल के सादृश्यों पर आरोपित कर दिया गया था।

Existence’ self was shadowed by a doubt;
Almost it seemed a lotus-leaf afloat
On a nude pool of cosmic Nothingness.

अस्तित्व की अन्तरात्मा अब एक शंका की छाया से धूमिल हो उठी
और यह एक कमल-पत्र सम तैरती-सी
ब्रह्माण्डीय असत् के आवरणहीन सरोवर पर बहती-सी लग रही थी।

This great spectator and creator Mind
Was only some half-seeing’s delegate,
A veil that hung between the soul and Light,
An idol, not the living body of God.

यह महान् दर्शक निर्माता और स्रष्टा मन-शक्ति
किसी अर्ध-दृष्टि की प्रतिनिधि मात्र-सी
जीव और पराज्योति के मध्य पड़ी एक पट जैसी,
एक प्रतिमा थी, प्रभु की जीवन्त काया नहीं थी।

Even the still spirit that looks upon its works
Was some pale front of the Unknowable;
A shadow seemed the wide and witness Self,
Its liberation and immobile calm
A void recoil of being from Time-made things,
Not the self-vision of Eternity.

यहां तक कि वह दृढ़ नीरव आत्मा भी जो निज कार्यों की द्रष्टा है
उस परम अचिन्त्य प्रभु का क्षीणव्यक्त दर्शन है;
वह विशाल और साक्षी आत्म-पुरुष भी एक प्रतिबिम्ब लगता,
इसकी मुक्ति और अचल स्थिर प्रशान्तता
जीव की कालनिर्मित पदार्थों के प्रति एक अर्थहीन जुगुप्सा थी,
चिरन्तनता का आत्म-दर्शन नहीं था।

Deep peace was there, but not the nameless Force:
Our sweet and mighty Mother was not there
Who gathers to her bosom her children’s lives,
Her clasp that takes the world into her arms
In the fathomless rapture of the Infinite,[286]
The Bliss that is creation’s splendid grain
Or the white passion of God-ecstasy
That laughs in the blaze of the boundless heart of Love.

वहां गहन शान्ति थी, किन्तु अनामी दैवीशक्ति वहां नहीं थी:
हमारी ममतामयी शक्तिरूपिणी जग-जननी वहां नहीं थी
जो अपनी सन्तानों के जीवनों को अपनी वक्ष में धारण किये रहती है,
इस जगत् को निज बाहों में लपेटे उसका आलिंगन
वहां नहीं था जो इसे अनन्तता के अगाध परम सुख में डूबो देता है,
उस परमानन्द का जो सृष्टि की भव्य तन्तु-रचना है
या प्रभु-आह्लाद के धवल अनुराग का वहां अभाव था
जो दिव्य प्रेम के अगाध हृदय की भावाग्नि में हंसता है।

A greater Spirit than the Self of Mind
Must answer to the questioning of his soul.

मनोमय पुरुष से महत्तर परमात्मतत्व को
योगी की अन्तरात्मा के प्रश्नों का उत्तर देना ही होगा।

For here was no firm clue and no sure road;
High-climbing pathways closed in the unknown;
An artist sight constructed the Beyond
In contrary patterns and conflicting hues;
A part-experience fragmented the Whole.

क्योंकि यहां कोई स्थिर सूत्र या कोई निश्चित मार्ग नहीं था;
उच्च-आरोहण के पथ पर सब अज्ञात की ओर मुड़ रुक जाते थे;
एक कलाकार की श्रेष्ठ दृष्टि ने परात्परता को
परस्पर विरोधी नमूनों और टकराते रंगों में रच डाला था;
एक आंशिक अनुभव के टुकड़ों को जोड़ पूर्ण अखिलेश बना दिया।

He looked above, but all was blank and still;
A sapphire firmament of abstract Thought
Escaped into a formless Vacancy.

योगी ने ऊर्ध्व में देखा किन्तु सब रिक्त और स्थिर था;
भावात्मक उच्चसंकल्प का एक नीलमणि आकाश पलायन कर
जैसे एक निराकारी शून्य-ब्रह्म में जा लोप हो गया था।

He looked below, but all was dark and mute.

फिर उसने नीचे कीओर देखा, किन्तु वहां सब तमसाच्छन्न और गूढ़ था।

A noise was heard, between, of thought and prayer,
A strife, a labour without end or pause;
A vain and ignorant seeking raised its voice.

मध्य में विचार और प्रार्थना का एक कोलाहल सुनायी दिया,
एक संघर्ष और परिश्रम निरन्तर बिना विश्राम के सतत चल रहा था;
एक अहंकारी और अज्ञानी जिज्ञासा ने निज वाणी को उठाया।

A rumour and a movement and a call,
A foaming mass, a cry innumerable
Rolled ever upon the ocean surge of Life
Along the coasts of mortal Ignorance.

एक किंवदन्ती और एक आन्दोलन और एक पुकार का
एक उमड़ता फेनिल जनसमूह था, असंख्य कण्ठों से उठता एक चीत्कार था
जो विश्व जीवन सागर के उफान पर सतत डोलता
मर्त्य अविद्या के तटों के साथ-साथ बहता रहता।

On its unstable and enormous breast
Beings and forces, forms, ideas like waves
Jostled for figure and supremacy,
And rose and sank and rose again in Time,
And at the bottom of the sleepless stir,
A Nothingness parent of the struggling worlds,
A huge creator Death, a mystic Void,
For ever sustaining the irrational cry,
For ever excluding the supernal Word,
Motionless, refusing question and response,
Reposed beneath the voices and the march
The dim Inconscient’s dumb incertitude.

इसकी अस्थिर और अतिविशाल छाती पर
जीव और ऊर्जाएं, आकार एवं विचार लहरों सम
रूपायित होने एवं प्रभुत्व पा लेने को रेलपेल करते,
ये उदित होते और डूब जाते और कालान्तर में पुनः उठ आते;
और इस अनिद्रित हलचल के अवतल में,
एक असत्-ब्रह्म है जो इन संघर्षरत लोको का जनक है,
एक विराट् सृष्टिकर्ता मृत्युदेव, एक गुह्य महाशून्य,
यह इस अज्ञान के चीत्कार को सतत सहारा दे धारण करता है,
सतत उस परम-नाद का बहिष्कार करता है,
अटल, प्रश्न और प्रत्युत्तर को अस्वीकार करता है,
पार्थिव वाणियोंऔर इस भवप्रयाण के तले में शयन करता
मन्द धूमिल जड़ अचित् का मूढ़ मूक संशय है।

Two firmaments of darkness and of light
Opposed their limits to the spirit’s walk;
It moved veiled in from Self’s infinity[287]
In a world of beings and momentary events
Where all must die to live and live to die.

अन्धकार और प्रकाश के दो आकाशों का विरोधी विस्तार है
जो अपनी सीमाओं से बाहर इस आत्म-सत्ता के विचरण का विरोधी है;
अत: यह मनशक्ति यहां पर परमात्मतत्त्व की शाश्वतता को पर्दे में छिपा
प्राणियों और क्षणिक घटनाओं के एक जगत् में विचरण करती है
जहां पर सकल जीवन धारण करने को मरते हैं और जीते हैं मरण के लिए।

Immortal by renewed mortality,
It wandered in the spiral of its acts
Or ran around the cycles of its thought,
Yet was no more than its original self
And knew no more than when it first began.

नवजन्मी देह की नश्वरता द्वारा यह अमरत्व प्राप्त कर
अपने कर्मों के कुण्डलित चक्रों में घूमती रहती है
या अपने विचार-संकल्पों के घेरों के चहुं ओर दौड़ती है
तथापि अपने मूल तत्त्व से तनिक भी अधिक नहीं हो पायी है
और अपने आरम्भिक ज्ञान से अधिक और कुछ नहीं जान पायी है।

To be was a prison, extinction the escape.[288]

अस्तित्व में रहना एक कारावास था, निर्वाण ही मात्र बचाव था।

END OF CANTO THIRTEEN