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At the Feet of The Mother

SAVITRI Book Ten. Canto One (Eng-Hindi)

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BOOK TEN. THE BOOK OF THE DOUBLE TWILIGHT

Canto One. The Dream Twilight of the Ideal

 

All still was darkness dread and desolate;
There was no change nor any hope of change.

अभी भी समस्त अन्धकारमय विकराल और सुनसान था;
कोई परिवर्तन नहीं था और इसका कोई लक्षण भी नहीं था।

In this black dream which was a house of Void,
A walk to Nowhere in a land of Nought,
Ever they drifted without aim or goal;
Gloom led to worse gloom, death to an emptier death,
In some positive Non-Being’s purposeless Vast
Through formless wastes dumb and unknowable.

इस काले स्वप्न में जो असत् का एक धाम था,
घोर शून्यता की भूमि पर ‘कहीं नहीं’ जाने का एक संचरण था,
बिना लक्ष्य या ध्येय के बस वे सतत बहते जा रहे थे;
विषाद अधिक भीषण विषाद की ओर ले जाता गर्त और अधिक गहनता में डूब जाता,
किसी सकारात्मक असत् सत्ता की निरुद्देशीय भीषण विशालता में
आकारहीन, मूढ़, मूक और अज्ञात उजाड़ व्यर्थताओं से गुजरता।

An ineffectual beam of suffering light
Through the despairing darkness dogged their steps
Like the remembrance of a glory lost;
Even while it grew, it seemed unreal there,
Yet haunted Nihil’s chill stupendous realm,
Unquenchable, perpetual, lonely, null,
A pallid ghost of some dead eternity.

पर अभी भी वहां कष्ट पाती ज्योति की एक क्षीण रश्मि
उस निराशा की निशा में उनके कदमों का पीछा करती
एक लुप्त गरिमा की स्मृति सम दिख रही थी;
जब यह वर्धित होती, तब भी उस क्षेत्र में कल्पित-सी लगती,
फिर भी विराट् निहिल के ठण्डे हिमवत् घोर साम्राज्य के पीछे पड़ी थी,
अदमनीय, अविराम, एक अकेली किरण, नगण्य-सी,
किसी मृत-शाश्वतता की एक प्रभाहीन छाया-सी।

It was as if she must pay now her debt,
Her vain presumption to exist and think,
To some brilliant Maya that conceived her soul.

जैसे कि उसे आज अपना ऋण चुकाना ही था,
जो अस्तित्व और संकल्प की गर्वीली साहसी धृष्टता का मूल्य था,
जिसे किसी प्रतिभाशाली महामाया को देना था, जिसने उसकी सत्ता को धारण किया था।

This most she must absolve with endless pangs,
Her deep original sin, the will to be
And the sin last, greatest, the spiritual pride,
That, made of dust, equalled itself with heaven,
Its scorn of the worm writhing in the mud,
Condemned, ephemeral, born from Nature’s dream,
Refusal of the transient creature’s role,
The claim to be a living fire of God,
The will to be immortal and divine.

इस समस्त को उसे अनन्त कष्टों से मुक्त कर चुकाना होगा,
इसका आदि पाप गम्भीर था, जो अस्तित्व में आने के संकल्प का था
और इसका अन्तिम, अति घोर पाप था, आध्यात्मिक गर्व का,
कि यह धूलि से निर्मित हो, स्वयं को स्वर्ग का समकक्ष मानती,
कीचड़ में कुलबुलाते कीट के प्रति अवज्ञा भाव रखती,
विश्व-प्रकृति के स्वप्न से जन्मी यह क्षणिकता की सजा पाये थी,
पर यह अनित्य प्राणी की भूमिका को अस्वीकारती,
प्रभु की संजीवित अग्नि होने का दावा करती,
अमरत्व और दिव्य होने का संकल्प रखती।

In that tremendous darkness heavy and bare
She atoned for all since the first act whence sprang
The error of the consciousness of Time,
The rending of the Inconscient’s seal of sleep,[599]
The primal and unpardoned revolt that broke
The peace and silence of the Nothingness
Which was before a seeming universe
Appeared in a vanity of imagined space
And life arose engendering grief and pain:
A great Negation was the Real’s face
Prohibiting the vain process of Time:
And when there is no world, no creature more,
When Time’s intrusion has been blotted out,
It shall last, unbodied, saved from thought, at peace.

उस घोर अन्धकार के अन्तर में बोझिल और नग्न उसने
सबके हित प्रायश्चित किया था, तभी से प्रथम कर्म से
त्रिकाल की चेतना में भ्रान्ति फूट बह निकली,
जिसने जड़ की अचित् निद्रा भंग करनी आरम्भ कर दी थी,
तभी से अक्षम्य और आदिम विद्रोह जो फूटा
जिसने इस शून्य विराट् की नीरवता और शान्ति को मिटा दिया,
जो शून्य पहले एक सम्भावित विश्व जैसा लगता था
वह एक कल्पित व्योमाकाश में एक निस्सारता सम उभरा
और जीवन के दुःख और पीड़ा का बीजारोपण हो गयाः
परम-सत् का मुख ही एक महान् नकारात्मक असत् हैः
जो युगों की इस निष्फल प्रक्रिया में व्यवधान डालता है:
और जब यहां किसी सृष्टि और किसी प्राणी का अस्तित्व नहीं होता है,
जब महाकाल के हस्तक्षेप का भी लोप हो जाता है,
तब भी वह बचा रहता है, निराकार, विचार से मुक्त, शान्ति में बसता है।

Accursed in what had been her godhead source,
Condemned to live for ever empty of bliss,
Her immortality her chastisement,
Her spirit, guilty of being, wandered doomed,
Moving for ever through eternal Night.

यह रश्मि अपने दिव्य उद़्गम में जो कभी उसका अपना था, आज अभिशप्त थी,
सदा के लिए आत्मसुख से रिक्त हो जीने की सजा पाये थी,
उसकी अमरता ही उसका प्रायश्चित थी
उसकी आत्मा, सत्ता में आने की दोषी, अभागिन-सी भटकती,
शाश्वत कालरात्रि के मध्य सतत विचरण करती।

But Maya is a veil of the Absolute;
A Truth occult has made this mighty world:
The Eternal’s wisdom and self-knowledge act
In ignorant Mind and in the body’s steps.

किन्तु महामाया परम-पुरुष पर पड़ा एक घूंघट है;
एक गुह्य अमर-सत्य ने इस सामर्थ्यशाली संसार को रचा है:
जहां पर अज्ञ मानस में और शरीर के प्रत्येक चरण में
चिरन्तन प्रभु की प्रज्ञा और आत्म-ज्ञान सक्रिय है।

The Inconscient is the Superconscient’s sleep.

यह जड़-अचित् ही तो परात्पर चैतन्य की निद्रा है।

An unintelligible Intelligence
Invents creation’s paradox profound;
Spiritual thought is crammed in Matter’s forms,
Unseen it throws out a dumb energy
And works a miracle by a machine.

एक अबोधगम्य अविद्या की परम-मेधा है
जिसने सृष्टि के गहन विरोधाभासों का आविष्कार किया है;
जड़तत्त्व की आकृतियां आध्यात्मिक संकल्प से भरपूर हैं,
अगोचर हो यह एक मूक ऊर्जा का क्षेपण करता है
और एक मशीनी यन्त्र द्वारा एक चमत्कार सम्भव करता है।

All here is a mystery of contraries:
Darkness a magic of self-hidden light,
Suffering some secret rapture’s tragic mask
And death an instrument of perpetual life.

समस्त यहां विरोधों का ही एक रहस्य है:
आत्म-गोपित ज्योति का एक जादू यह अन्धकार है,
दुःख का मुखौटा लगा परमगुह्य-आह्लाद ही कष्ट भोगता है
और अविरत जीवन-श्रृंखला हित मृत्यु एक साधन है।

Although Death walks beside us on Life’s road,
A dim bystander at the body’s start
And a last judgment on man’s futile works,
Other is the riddle of its ambiguous face:
Death is a stair, a door, a stumbling stride
The soul must take to cross from birth to birth,
A grey defeat pregnant with victory,[600]
A whip to lash us towards our deathless state.

यद्यपि शाश्वत जीवन पथ पर मृत्युदेव हमारे संग चलता है,
इस देह के आदि से एक धूमिल दर्शक सम साथ है
और मानव के निस्सार कार्यों का एक अन्तिम निर्णायक है,
इसके संदिग्ध मुख का एक अन्य रहस्य भी हैः
मृत्यु एक सोपान है, एक द्वार है, एक ठोकर खाता चरण है
जिसे इस जीव को एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने को पार करना पड़ता है,
एक धूसररंगी पराजय है जिसके गर्भ में विजय छिपी है,
यह हमें अमरत्व की ओर ले जाता एक चाबुक है।

The inconscient world is the spirit’s self-made room,
Eternal Night shadow of eternal Day.

यह अचित्-जगत् हमारी चैत्य सत्ता द्वारा निर्मित एक कक्ष है,
यह शाश्वत कालरात्रि शाश्वत दिव्य दिवस की मात्र छाया है।

Night is not our beginning nor our end;
She is the dark Mother in whose womb we have hid
Safe from too swift a waking to world-pain.

यह घोर निशा ही हमारा आरम्भ और अन्त नहीं है;
यह तो हमारी काली माता है जिसके गर्भ में हम छिपकर
संसारी पीड़ा की अति तीव्र जाग्रत् अवस्था से दूर उसमें सुरक्षित रहते हैं।

We came to her from a supernal Light,
By Light we live and to the Light we go.

एक परात्पर ज्योति से उतर हम उस तक आये थे,
पराज्योति से हम जीवित हैं और उसी पराज्योति में विलीन हो जाते हैं।

Here in this seat of Darkness mute and lone,
In the heart of everlasting Nothingness
Light conquered now even by that feeble beam:
Its faint infiltration drilled the blind deaf mass;
Almost it changed into a glimmering sight
That housed the phantom of an aureate Sun
Whose orb pupilled the eye of Nothingness.

घोर तामसिक निशा के इस मूक और एकाकी पीठ-स्थान में
अनन्त विराट्-शून्यता के इस अन्तर में
उस क्षीण निस्तेज किरण द्वारा आज पराज्योति ने विजय पायी:
इसके तेजहीन हस्तक्षेप ने उस अंधी बधिर स्थूलता को भेद दिया;
तुरन्त ही यह प्रायः एक जगमगाते दर्शन में परिवर्तित हो गयी
जिसमें एक स्वर्ण सूर्यदेव के छायाभासी आकार का वास था
जिसका वृत्त मण्डलाकार शून्य-विराट् के नेत्र की पुतली था।

A golden fire came in and burnt Night’s heart;
Her dusky mindlessness began to dream;
The Inconscient conscious grew, Night felt and thought.

शाश्वत निशा के हृदय में एक स्वर्णाग्नि प्रज्वलित हो उठी;
उसकी धूसर धूमिल मनहीनता ने स्वप्न देखना आरम्भ कर दिया;
यह तामसिक अचित् अब सचेत हो उठा, कालनिशा में अनुभव और चिन्तन जागा।

Assailed in the sovereign emptiness of its reign
The intolerant Darkness paled and drew apart
Till only a few black remnants stained that Ray.

अपने साम्राज्य की निरंकुश शून्यता में आक्रामित हो उठा
वह असहिष्णु घोर अन्धकार अब क्षीण हो फटता गया
अब उस दिव्य किरण पर केवल कुछ काले धब्बे शेष रह गये।

But on a failing edge of dumb lost space
Still a great dragon body sullenly loomed;
Adversary of the slow struggling Dawn
Defending its ground of tortured mystery,
It trailed its coils through the dead martyred air
And curving fled down a grey slope of Time.

किन्तु उस मूढ़ लोप होती दिशा के एक असफल होते तट पर
अभी भी एक महाकाय दैत्याकार विषाद वहां छाया था;
यह उस मद्धिम संघर्षरत उषा देवी का विरोधी था
अपनी आतंकपूर्ण रहस्यमयी भूमि की रक्षा में संलग्न था,
यह अपने कुण्डलों को उस मृत शहीदी वातावरण में घसीट रहा था
और फिर बल खाकर त्रिकाल की धूसर ढलान से नीचे उतर भाग गया।

 

There is a morning twilight of the gods;
Miraculous from sleep their forms arise
And God’s long nights are justified by dawn.

अब वहां पर देवों के एक प्रभात की द्वाभा फैली थी;
उस समय जब निद्रा से उनके अद्भुत आकार उठते हैं
और प्रभु की दीर्घ निशाओं को उषा न्यायोचित सिद्ध कर देती है।

There breaks a passion and splendour of new birth
And hue-winged visions stray across the lids,
The dreaming deities look beyond the seen
And fashion in their thoughts the ideal worlds
Sprung from a limitless moment of desire[601]
That once had lodged in some abysmal heart.

वहां पर नव जन्म का वैभव और आवेश प्रस्फुटित हो उठता है
और पलकों के सामने रंगीन पक्षियों सम दृश्य भटकते आ जाते हैं,
स्वर्ग की ऋचाएं धूमिल दृष्टि के व्योमाकाश को जगाती हैं।
सपनाती दिव्यताएं इस दृश्य के परे अवलोकती हैं
और अपने चिन्तन में इन आदर्श लोकों को सजा लेती हैं
वे कामना के उस अनन्त क्षण से उछल निकल आतीं
जो कभी किसी निरानंदी हृदय में रहती थीं।

Passed was the heaviness of the eyeless dark
And all the sorrow of the night was dead:
Surprised by a blind joy with groping hands
Like one who wakes to find his dreams were true,
Into a happy misty twilit world
Where all ran after light and joy and love
She slipped; there far-off raptures drew more close
And deep anticipations of delight
For ever eager to be grasped and held,
Were never grasped, yet breathed strange ecstasy.
A pearl-winged indistinctness fleeting swam,
An air that dared not suffer too much light.

अब उस नेत्रहीन अन्धकार की भारक्रान्त दशा समाप्त हो गयी
और उस रात्रि की सकल दुःख वेदना मर चुकी थी:
हठात् एक अन्धे हर्ष से पूरित हाथों से टटोलती, चकित
वह उस व्यक्ति समान थी जो जागने पर निज सपनों को सच पाये,
वैसे ही एक सुखद धूसर द्वाभा के इस लोक में
जहां सब प्रकाश और हर्ष औ’ प्रेम के पीछे भाग रहे थे
वह फिसल गयी; वहां सुदूर के हर्षोल्लास अधिक समीप खिंच आये
और सुखानन्द के एक गहन पूर्वाभास से आकर्षित थे,
जो सतत ग्रहीत होने और धर लिये जाने को सदैव आतुर रहते,
किन्तु कभी पकड़ में न आते, फिर भी विचित्र आह्लाद से श्वासित होता
एक श्वेत पंखों की धूमिलता अस्पष्ट उड़ती-सी तैर रही थी,
एक वायु-मण्डल था जिसे तीव्र ज्योति सुहाती न थी।

Vague fields were there, vague pastures gleaned, vague trees,
Vague scenes dim-hearted in a drifting haze;
Vague cattle white roamed glimmering through the mist;
Vague spirits wandered with a bodiless cry,
Vague melodies touched the soul and fled pursued
Into harmonious distances unseized;
Forms subtly elusive and half-luminous powers
Wishing no goal for their unearthly course
Strayed happily through vague ideal lands
Or floated without footing or their walk
Left steps of reverie on sweet memory’s ground;
Or they paced to the mighty measure of their thoughts
Led by a low far chanting of the gods.

अस्पष्ट-से क्षेत्र वहां थे, धूमिल गोचर चमकते, अस्पष्ट वृक्ष भी दिखायी देते,
क्षीण प्राण की धूमिल दृश्यावलियां उस बहती धुंध में तैरती लगतीं;
उस कोहरे में धूमिल पशु श्वेतरंगी विचरते चमक रहे थे;
धूमिल प्रेतात्माएं देहहीन चीत्कार से पुकारती भटक रही थीं,
अस्पष्ट धुनें अन्तरात्मा को स्पर्श कर उड़ जातीं और पीछा करने पर
पकड़ायी नहीं देतीं किसी सुदूर के संगीतमय लोकों में खो जातीं;
सूक्ष्म-भ्रामक आकृतियां और अर्ध-ज्योतित शक्तियां
जिन्हें अपने अपार्थिव मार्ग पर किसी लक्ष्य की कामना नहीं थी
उस धूसर आदर्श क्षेत्र के मध्य सुख से भटक रही थीं,
या बिना पग धरे बहतीं या विचरण करतीं,
उनकी चाल मधु-स्मृति की भूमि पर सुखानुभूति की छाप छोड़ जाती;
या वे अपने चिन्तन के शक्तिशाली ताल पर कदम मिला चलतीं
देवों की सुदूर से आती मन्द ध्वनि पर थिरकतीं।

A ripple of gleaming wings crossed the far sky;
Birds like pale-bosomed imaginations flew
With low disturbing voices of desire,
And half-heard lowings drew the listening ear,
As if the Sun-god’s brilliant kine were there
Hidden in mist and passing towards the sun.

चमकते पंखों की एक सरसराहट उस सुदूर नभ को पार कर गयी;
पीतरंगी कल्पनाएं वहां पक्षियों सम
कामना की मन्द क्षुब्ध ध्वनियां करती उड़ रही थीं,
और सावित्री की श्रवणेन्द्रिय को एक मन्द अधसुनी रंभाने की ध्वनि ने खींचा,
मानों सूर्यदेव की दीप्तिमयी गायों का यूथ वहां उपस्थित था
और उस धुंध में छिपा सूर्यलोक की ओर जा रहा था।

These fugitive beings, these elusive shapes
Were all that claimed the eye and met the soul,
The natural inhabitants of that world.

ये अस्थिर सत्ताएं, ये अग्राह्य आकृतियां
सब नेत्रों को लुभातीं और चैत्य आत्मा को भेंटतीं,
ये उस लोक की स्वाभाविक निवासिनी थीं।

But nothing there was fixed or stayed for long;[602]
No mortal feet could rest upon that soil,
No breath of life lingered embodied there.

किन्तु वहां कुछ भी निश्चित नहीं था या देर तक स्थिर नहीं था;
उस धरती पर किसी मानव का चरण टिक नहीं सकता था,
वहां देहधारी के लिए प्राणवायु का अभाव था।

In that fine chaos joy fled dancing past
And beauty evaded settled line and form
And hid its sense in mysteries of hue;
Yet gladness ever repeated the same notes
And gave the sense of an enduring world;
There was a strange consistency of shapes,
And the same thoughts were constant passers-by
And all renewed unendingly its charm
Alluring ever the expectant heart
Like music that one always waits to hear,
Like the recurrence of a haunting rhyme.

उस रम्य अव्यवस्था में हर्ष नाचता हुआ उड़ जाता
और सुन्दरता निश्चित रेखा और आकार से बच निकलती
और रंगीन रहस्यों में अपना अर्थ बोध छिपा लेती;
तथापि प्रसन्नता सतत उन्हें स्वरों को दोहराये जाती
और इस प्रकार एक स्थिर जगत् का बोध देती;
वहां पर रूपों का एक विचित्र सामंजस्य था,
और वही विचार अविराम दोहराये जाते थे
और सब अपनी मोहकता सतत नूतन बनाते रहते
और प्रत्याशी हृदय को सदैव आकर्षित करते,
उस संगीत समान जिसे सुनने हित जन सदैव प्रतीक्षारत रहते हैं,
एक आवर्तित होती धुन समान जो कानों में अविराम गूंजती रहती।

One touched incessantly things never seized,
A skirt of worlds invisibly divine.

सतत उन वस्तुओं का स्पर्श होता जो पकड़ में नहीं आता था,
अदृश्य दिव्य लोकों को यह सीमा पर एक झालर सम घेरे था।

As if a trail of disappearing stars
There showered upon the floating atmosphere
Colours and lights and evanescent gleams
That called to follow into magic heaven,
And in each cry that fainted on the ear
There was the voice of an unrealised bliss.

मानों लोप होते तारों के समूह की एक पुच्छलता हो
जो उस बहते वातावरण पर रंगों और प्रकाशों की
और तिरोगामी किरणों की आभा बरसाती,
एक जादुई स्वर्ग में अनुगमन करने को पुकारती,
और प्रत्येक पुकार से जो श्रवण में आते ही अचेत हो जाती थी
एक अतृप्त आत्मानन्द की ध्वनि से गुंजित होती।

An adoration reigned in the yearning heart,
A spirit of purity, an elusive presence
Of faery beauty and ungrasped delight
Whose momentary and escaping thrill,
However unsubstantial to our flesh,
And brief even in imperishableness,
Much sweeter seemed than any rapture known
Earth or all-conquering heaven can ever give.

उस आदर्श जग के हृदय में एक पूजा की भावना राज्य करती थी,
जो शुचिता की एक चेतना, एक अग्राह्य उपस्थिति थी
एक परी सम मोहिनी की शोभा और अगृहीत आनन्द थी,
जिसकी पुलकन का सुख क्षणिक और पलायनकारी था,
हमारी देह के लिए यह कितनी भी सारहीन क्यों न होती
इसका अविनाशी रूप कितना भी क्षणिक क्यों न होता,
पर यह किसी भी परिचित सुख-विभोरता की अपेक्षा अधिक मधुमय लगती
जिसे यह सर्वजयी स्वर्ग या पृथ्वी हमें अब तक दे पायी थी।

Heaven ever young and earth too firm and old
Delay the heart by immobility:
Their raptures of creation last too long,
Their bold formations are too absolute;
Carved by an anguish of divine endeavour
They stand up sculptured on the eternal hills,
Or quarried from the living rocks of God[603]
Win immortality by perfect form.

सुरलोक सतत तरुण है और पृथ्वी की दृढ़ता और पुरातनता
निज अचलता द्वारा इस हृदय की अवरोधक बन जाती है:
स्वर्ग की सृष्टि का आत्मसुख अति दीर्घ समय तक स्थायी रहता है,
उनकी सुस्पष्ट सुडौल कृतियां अति परिपूर्ण हैं;
दिव्य प्रयास की एक वेदना द्वारा उन्हें तराशा गया है
वे सनातन पहाडियों पर शिल्पित खड़ी रहती हैं,
या परमात्मा की जीवित चट्टानों से खोद निकाली गयी हैं
और अपनी परिपूर्ण आकृति द्वारा अमरत्व को जीत लेती हैं।

They are too intimate with eternal things:
Vessels of infinite significances,
They are too clear, too great, too meaningful;
No mist or shadow soothes the vanquished sight,
No soft penumbra of incertitude.

वे अविनाशी द्रव्य के साथ अति आत्मीय हैं:
शाश्वत महत्ताओं, विशेषताओं की पात्र हैं,
वे अति स्पष्ट, अति महान् अति सार्थक हैं;
उस निष्कासित दृश्य को कोई धुंध या छाया स्पर्श न कर पायी,
और अनिश्चित अस्थिरता की कोमल छाया नहीं दे पायी।

These only touch a golden hem of bliss,
The gleaming shoulder of some godlike hope,
The flying feet of exquisite desires.

यह तो केवल आनन्द की सुनहरी किनारी की एक छुअन थी,
किसी देवतुल्य आशा का यह मात्र दीप्तिमान स्कन्ध थी,
अनुपम कामनाओं के उड़ते चरणभर थे।

On a slow trembling brink between night and day
They shine like visitants from the morning star,
Satisfied beginnings of perfection, first
Tremulous imaginings of a heavenly world:
They mingle in a passion of pursuit,
Thrilled with a spray of joy too slight to tire.

रात्रि और दिवस के मध्य एक मन्द कम्पित क्षितिज पर वे
प्रभात के तारे से आये पर्यटकों सम झिलमिला रहे थे,
प्रथम परिपूर्णता का सन्तुष्ट आरम्भ हो जैसे,
एक दिवि-लोक की भीरु-संकोची प्रथम कल्पनाएं थीं:
जो पीछा करने के एक आवेश में घुल-मिल जाती थीं,
मन्द हर्ष की एक फुहार जो थकाती नहीं, पुलक से भर देती।

All in this world was shadowed forth, not limned,
Like faces leaping on a fan of fire
Or shapes of wonder in a tinted blur,
Like fugitive landscapes painting silver mists.

इस जगत् में सब छायाभासी था, रेखाओं में नहीं ढल पाया था,
अग्नि की लपलपाती लपटों पर उछलती आकृतियां हों जैसे
या चमत्कारी आकारों पर रंगीन धुंध छायी हो जैसे,
मानों पलायनकारी दृश्यों को एक चांदी सम कुहरे से ढक चित्रित किया हो।

Here vision fled back from the sight alarmed,
And sound sought refuge from the ear’s surprise,
And all experience was a hasty joy.

यहां पर दर्शन दृष्टि से चौंक कर उड़ जाते थे,
और श्रवण से चकित हो ध्वनि छिपने हित आश्रय खोजती,
और सकल अनुभव एक उतावली भरी प्रसन्नता थी।

The joys here snatched were half-forbidden things,
Timorous soul-bridals delicately veiled
As when a goddess’ bosom dimly moves
To first desire and her white soul transfigured,
A glimmering Eden crossed by fairy gleams,
Trembles to expectation’s fiery wand,
But nothing is familiar yet with bliss.

यहां हर्षों को अर्ध-निषेधित पदार्थों से छीन लिया जाता,
आत्माएं कम्पित वधुओं सम झीने घूंघट में छिपी थीं
जैसे कि एक देवी का वक्ष प्रथम कामना से धीरे से कांप उठे
और उसकी विशुद्ध श्वेत आत्मा का रूपान्तर हो जाये,
यह एक जगमगाता नन्दनकानन जिसे क्षणिक दीप्तियां पार कर उड़ जाती थीं,
वे प्रत्याशा की एक अग्निल छड़ी से कांप कांप उठतीं,
किन्तु आनन्द से अभी तक वहां कोई परिचित नहीं था।

All things in this fair realm were heavenly strange
In a fleeting gladness of untired delight,
In an insistency of magic change.

अथकित हर्ष की एक क्षणिक प्रसन्नता में,
जादुई परिवर्तन की एक साग्रहता में
इस मनोहर क्षेत्र में सकल पदार्थ अलौकिक विचित्रता लिये थे।

Past vanishing hedges, hurrying hints of fields,
Mid swift escaping lanes that fled her feet
Journeying she wished no end: as one through clouds
Travels upon a mountain ridge and hears[604]
Arising to him out of hidden depths
Sound of invisible streams, she walked besieged
By the illusion of a mystic space,
A charm of bodiless touches felt and heard
A sweetness as of voices high and dim
Calling like travellers upon seeking winds
Melodiously with an alluring cry.

विलीन होती झाड़ियां निकल जातीं, खेतों के संकेत भी दौड़ते गुजर जाते,
सावित्री के पांव तले भागती गलियों के मध्य यात्रा करते हुए
उसने इस यात्रा का अन्त न होने की इच्छा की: ज्यों कोई मेघों में
उड़ता हुआ एक पर्वत श्रेणी के पार जाते हुए, सुन रहा हो
पर्वत की गोपित गहनताओं से उठती ध्वनि को जो
अगोचर जलधाराओं से उठ रही थी, वैसे ही सावित्री चल रही थी
एक गुह्याकाश की उस माया से बंधी हुई घिरी-सी,
देहहीनता की मोहिनी की स्पर्शानुभूति पाती और सुनती
उन वाणियों की तीव्र और मन्द स्वर की माधुरी को
जो खोजी हवाओं पर सवार यात्रियों सम पुकारते
एक लुभाते आवाहन के संगीत पर तैरती आतीं।

As if a music old yet ever new,
Moving suggestions on her heart-strings dwelt,
Thoughts that no habitation found, yet clung
With passionate repetition to her mind,
Desires that hurt not, happy only to live
Always the same and always unfulfilled
Sang in the breast like a celestial lyre.

मानों एक पुरातन संगीत होकर भी सतत नूतनता लिये हो,
उसकी हृदय-तंत्रियों पर संचारी सुझावों ने घर बना लिया,
ऐसे विचारों ने जिन्हें कोई घर रहने को नहीं मिला था,
फिर भी सावित्री के मानस से आवेश में बारम्बार चिपक जातीं
ऐसी कामनाएं थीं जो पीड़ा नहीं देतीं, मात्र जीवित रहने से प्रसन्न थीं
सतत एक रूप में आतीं और कभी परिपूर्ण न होतीं
पर वे हृदय में एक अलौकिक वीणा सम ध्वनित होतीं।

Thus all could last, yet nothing ever be.

इस प्रकार वहां समस्त चिरायु था फिर भी सतत सत्ताहीन था।

In this beauty as of mind made visible,
Dressed in its rays of wonder Satyavan
Before her seemed the centre of its charm,
Head of her loveliness of longing dreams
And captain of the fancies of her soul.

इस सौन्दर्य ने मानों उसके मानस को द्रष्टा बना दिया था,
इसकी चमत्कारी किरणों से सज्जित सत्यवान् को अपने सामने
देखती सावित्री को वह इस लोक की शोभा का केन्द्र-बिन्दु लग रहा था,
उसके लालायित सपनों की माधुरी का वही शीर्ष मुकुट था
उसकी अन्तरात्मा की कल्पनाओं का वह मुख्य केंद्रबिंदु था।

Even the dreadful majesty of Death’s face
And its sombre sadness could not darken nor slay
The intangible lustre of those fleeting skies.

यम के मुख की भयावनी प्रभुता भी
और इसकी निराशा की उदासी भी इन उड़ते गगनों की
अस्पर्श्य अस्पष्ट दीप्ति को मैली न कर सकी और न मार सकी।

The sombre Shadow sullen, implacable
Made beauty and laughter more imperative;
Enhanced by his grey, joy grew more bright and dear;
His dark contrast edging ideal sight
Deepened unuttered meanings to the heart;
Pain grew a trembling undertone of bliss
And transience immortality’s floating hem,
A moment’s robe in which she looked more fair,
Its antithesis sharpening her divinity.

उस निरानंदी छायारूपी देव की विषण्णता और निष्ठुरता ने
सौन्दर्य और हास्य की अनिवार्यता और वर्धित कर दी;
उसकी कालिमा के सामने प्रसन्नता अधिक उज्जवल और प्रिय लगने लगी;
उसकी काली विपरीतता ने आदर्श के दृश्य को और सज्जित बना दिया
इस अन्तर के अनुच्चारित अर्थों को और गहरा बना दिया;
पीड़ा भी आत्मानन्द की एक सिहरती मन्द गूंज हो गयी
और अनित्यता के क्षणिक अमरत्व की एक लहराती किनारी के,
एक क्षणिक परिधान से वह और सुन्दर दिखने लगी,
इसके विरोधाभास ने सावित्री की दिव्यता को और प्रखरता प्रदान कर दी।

A comrade of the Ray and Mist and Flame,
By a moon-bright face a brilliant moment drawn,
Almost she seemed a thought mid floating thoughts,
Seen hardly by a visionary mind [605]
Amid the white inward musings of the soul.
Half-vanquished by the dream-happiness around,
Awhile she moved on an enchantment’s soil,
But still remained possessor of her soul.

उस दिव्य किरण और अलौकिक धुंध औ’ देव-ज्वाला की संगिनी बनी,
उसके शशि-उज्ज्वल मुख ने एक दीप्त घड़ी और पास खींच ली,
प्राय: वह स्वयं एक संकल्प सम उन उड़ते विचारों में बहती-सी लग रही थी,
अन्तरात्मा के अन्तरचिंतन के शुभ्र-विचारों के मध्य
एक द्रष्टा मन द्वारा उसे खोजना, देखना दुःसाध्य था।
उस स्वप्निल सुख से चहुं ओर घिरी, अर्ध-पराजित सी,
वह उस एक सम्मोहन की भूमि पर कुछ देर चलती रही,
पर अभी भी उसने अपनी चैत्य सत्ता को अपने अधिकार में रखा।

Above, her spirit in its mighty trance
Saw all, but lived for its transcendent task,
Immutable like a fixed eternal star.[606]

ऊर्ध्व में, उसकी आत्मा अपनी सशक्त समाधि में सब देख रही थी,
किन्तु वह अपने परात्पर कठोर कर्म हित जीवन धारण किये थी,
और एक अटल शाश्वत तारे समान अविकारी स्थित थी।

END OF CANTO ONE