BOOK FIVE. THE BOOK OF LOVE
Canto Three. Satyavan and Savitri
Out of the voiceless mystery of the past
In a present ignorant of forgotten bonds
These spirits met upon the roads of Time.
विगतकाल के मौन रहस्य से बाहर आकर
विस्मृत सम्बन्धों के इस अनजान वर्तमान में
ये आत्माएं युग-काल के इस मार्ग पर आ भेंटीं।
Yet in the heart their secret conscious selves
At once aware grew of each other warned
By the first call of a delightful voice
And a first vision of the destined face.
तथापि अपने गुह्य चेतन व्यक्तित्वों के अन्तर में
तुरन्त एक दूसरे के प्रति सचेत हो गये,
एक सुखदायक वाणी की प्रथम पुकार द्वारा
और विधि-नियत मुख के प्रथम दर्शन द्वारा चेतावनी पा।
As when being cries to being from its depths
Behind the screen of the external sense
And strives to find the heart-disclosing word,
The passionate speech revealing the soul’s need,
But the mind’s ignorance veils the inner sight,
Only a little breaks through our earth-made bounds,
So now they met in that momentous hour,
So utter the recognition in the deeps,
The remembrance lost, the oneness felt and missed.
जैसे कि जब प्राण निज गहनताओं से प्राण को पुकारता है
बहिर्बोध के पट के पीछे छिपा टेरता है
और आत्मभावना को प्रकट करने वाली वाणी खोजता है,
उस अनुरागमयीवाचा को जो आत्मा की अनिवार्यता प्रकटा दे,
किन्तु मानस का अज्ञान उस अन्तर्दृष्टि पर पर्दा बन जाता है,
केवल अल्प मात्र दरार हमारे पार्थिव पटों के मध्य बन पाती है,
ऐसे ही अब इस महत्त्वपूर्ण घड़ी में ये दोनों मिले,
अन्तरात्माओं की गहराई में वे अभिज्ञतापूर्ण चरमता पर थे
किन्तु स्मृति खो गयी थी, एकात्मता की अनुभूति तो आयी पर लोप हो गयी।
Thus Satyavan spoke first to Savitri:
“O thou who com’st to me out of Time’s silences,
Yet thy voice has wakened my heart to an unknown bliss,
Immortal or mortal only in thy frame,
For more than earth speaks to me from thy soul
And more than earth surrounds me in thy gaze,
How art thou named among the sons of men?
इस दशा में सत्यवान् पहलेसावित्री से बोलाः
‘‘हे देवि, तू महाकाल के मौन से निकल मेरे पास आयी है,
फिर भी तेरी वाणी ने मेरे हृदय में एक अनजान सुख को जगा दिया है,
निज काया में तू देवी है या मानवी,
क्योंकि तेरी आत्मा मुझसे इस पृथ्वी से भी स्पष्टतर बोली है
और तेरी चितवन मुझे इस धरा से अधिक घेर रही है,
मनु-पुत्रों के मध्य तू किस नाम से है जानी जाती?
Whence hast thou dawned filling my spirit’s days,
Brighter than summer, brighter than my flowers,
Into the lonely borders of my life,
O Sunlight moulded like a golden maid?
मेरे आत्म-दिवसों को पूर्ण बनाती तू कहांसे उषा सम उतरी है,
ग्रीष्म से अधिक प्रकाशमयी, मेरे पुष्पों से अधिक उज्ज्वला,
मम प्राण के एकाकी सीमान्तों में कहां से आ,
हे सूर्य किरण, एक स्वर्णकन्या सम तुझे किसने रचा है?
I know that mighty gods are friends of earth.
मुझे ज्ञात है समर्थ देवता धरा के मित्र हैं।
Amid the pageantries of day and dusk,
Long have I travelled with my pilgrim soul
Moved by the marvel of familiar things.[400]
दिवस और संध्या की शोभा-यात्राओं के मध्य
अपनी तीर्थयात्री आत्मा के साथ दीर्घकालीन यात्रा में
मैं परिचित पदार्थों के आद़्भुत्य से प्रभावित हुआ था।
Earth could not hide from me the powers she veils:
Even though moving mid an earthly scene
And the common surfaces of terrestrial things,
My vision saw unblinded by her forms;
The Godhead looked at me from familiar scenes.
धरा निज गोपित शक्तियां मुझसे छिपा नहीं सकी है:
यद्यपि इस पार्थिव दृश्य के मध्य आते जाते
और इन भौतिक पदार्थों के सामान्य धरातल पर भी,
मेरी दृष्टि ने उसके आकारों से संभ्रमित हुए बिना सब अवलोका है;
इन परिचित दृश्यों में गोपित परम-तत्त्व ने मेरी ओर देखा है।
I witnessed the virgin bridals of the dawn
Behind the glowing curtains of the sky
Or vying in joy with the bright morning’s steps
I paced along the slumberous coasts of morn,
Or the gold desert of the sunlight crossed
Traversing great wastes of splendour and of fire,
Or met the moon gliding amazed through heaven
In the uncertain wideness of the night,
Or the stars marched on their long sentinel routes
Pointing their spears through the infinitudes,
The day and dusk revealed to me hidden shapes;
Figures have come to me from secret shores
And happy faces looked from ray and flame.
नभ के इस द्युतिमान पट के पीछे छिपी
उषा की कुंवारी वधुओं का मैं साक्षी द्रष्टा रहा हूं,
या उज्ज्वल प्रभात के पगों के साथ आनन्दित हो स्पर्धा कर
दोपहरी के उनींदे तटों के साथ-साथ चला हूं,
सूर्य से प्रकाशित सुनहरे जगमगाते मरुस्थल को पार कर
तप्त अग्नि की शोभापूर्ण महान बंजर भूमि पर भटका हूं,
या अन्तरिक्ष में रजनी के अनिश्चित प्रसार में
नभ में विसर्पते चकित चन्द्रमा से भी भेंटा हूं,
अपनी भाले समान नोक से अनन्तता को छेदते
तारों को निज दीर्घ पथों की सुरक्षा में प्रयाण करते देखा है;
दिवस और संध्या ने अपने गोपित आकारों को मुझे दर्शाया है;
गुह्यतटों से आकृतियां मेरे पास खिंच आयी थीं
और किरण और ज्वाला के मुदित मुखों ने मेरी ओर देखा था।
I have heard strange voices cross the ether’s waves,
The centaur’s wizard song has thrilled my ear;
I glimpsed the Apsaras bathing in the pools
And saw the wood-nymphs peering through the leaves;
The winds have shown to me their trampling lords,
I have beheld the princes of the Sun
Burning in thousand-pillared homes of light.
ईथर की तरंगों पर पार जाती विचित्र वाणियों को मैंने,
और श्रवणों ने किन्नरों के जादुई गीत का मधुरस चखा है;
सरोवरों में स्नान करती अप्सरा-सुन्दरियों की छवि
और पल्लवों से झांकती वन-परियों को भी देखा;
मरुतों ने निज विध्वंसकारी शक्तियों को मुझे दर्शाया,
सूर्यदेव के कुमारों को मैंने अवलोका है
जो प्रचण्ड-प्रकाश के सहस्र स्वामी भुवनों में प्रज्वलित बसते हैं।
So now my mind could dream and my heart fear
That from some wonder-couch beyond our air
Risen in a wide morning of the gods
Thou drov’st thy horses from the Thunderer’s worlds.
अत: अब मेरा मन यह कैसा स्वप्न देख रहा है और हृदय आशंकित है
कि हमारे परिवेश से परे की किसी अद्भुत शय्या से
उठकर देवताओं के एक विस्तृत प्रभात में
तू इन्द्रदेव के लोकों से अपने अश्वों को दौड़ाती आयी है।
Although to heaven thy beauty seems allied,
Much rather would my thoughts rejoice to know
That mortal sweetness smiles between thy lips
And thy heart can beat beneath a human gaze
And thy aureate bosom quiver with a look
And its tumult answer to an earth-born voice.
यद्यपि तेरा सौन्दर्य स्वर्गिक ही दिखता है,
फिर भी मेरा मन यह जानकर हर्षित होगा
कि तेरे मधुमय अधरों पर खेलता स्मित मानवी है
और एक मानवीय चितवन तले तेरा हृदय धड़क सकता है
और तेरा स्वर्णिम वक्ष एक दृष्टि से स्पन्दित है
और इसकी व्याकुलता एक मनुज वाणी का प्रत्युत्तर है।
If our time-vexed affections thou canst feel,[401]
Earth’s ease of simple things can satisfy,
If thy glance can dwell content on earthly soil,
And this celestial summary of delight,
Thy golden body, dally with fatigue
Oppressing with its grace our terrain, while
The frail sweet passing taste of earthly food
Delays thee and the torrent’s leaping wine,
Descend. Let thy journey cease, come down to us.
इस काल हमारे उत्पीड़ित अनुराग की अनुभूति यदि तूने पायी है,
और धरती की इन सहज सामान्य वस्तुओं में तू सन्तुष्ट हो सकती है,
यदि पृथ्वी की माटी पर तेरी चितवन सुख सेवास कर सकती है,
और आनन्द की सारांश रूपी यह अलौकिकता,
यह तेरी कंचन काया, श्रम को क्रीड़ा सम ले सकती है
तो निज करूणा भार से हमारे क्षेत्र को पददलित करती उतर आ,
इस माटी के भोजन का क्षणिक कोमल मधुर स्वाद लेने
इस धरा की उछलती मदिरा का पान करने, तनिक ठहर जा।
निज यात्रा थाम, नीचे उतर हम तक आ जाओ।
Close is my father’s creepered hermitage
Screened by the tall ranks of these silent kings,
Sung to by voices of the hue-robed choirs
Whose chants repeat transcribed in music’s notes
The passionate coloured lettering of the boughs
And fill the hours with their melodious cry.
मेरे पिता की पर्णकुटी एवंआश्रम समीप है
जो इन मौन तरुवरों की दीर्घ पंक्तियों के पीछे छिपी है,
उनके लिए रंगीन सज्जित वेदमण्डली कीवाचाएं गाती हैं
उनके उच्चारणों के संगीतमय स्वरों की प्रतिलिपियां
शाखाओं के विहग आवेशमय रंगीन शब्दों में दोहराते हैं
और अपनी संगीतमयी ध्वनियों से इन घण्टों को भर देते हैं।
Amid the welcome-hum of many bees
Invade our honied kingdom of the woods;
There let me lead thee into an opulent life.
अनेक मधुकरों की स्वागत करती गुंजारों के मध्य आओ,
इन वनों के हमारे मधुमय साम्राज्य पर विजय पाओ;
एक समृद्ध जीवन की ओर ले जाने का दायित्व मुझे सौंप दो।
Bare, simple is the sylvan hermit-life;
Yet is it clad with the jewelry of earth.
सरल, आडम्बरहीन यह वनवासी ऋषि जीवन है;
तथापि पृथ्वी के आभूषणों से यह सज्जित शोभित है।
Wild winds run—visitors midst the swaying tops,
Through the calm days heaven’s sentinels of peace
Couched on a purple robe of sky above
Look down on a rich secrecy and hush
And the chambered nuptial waters chant within.
दौड़ते मस्त पवन के झोंके पर्यटक बने इन झूमते तरु-शिखरों के मध्य विचरते हैं,
शान्त दिवसों के मध्य स्वर्गिक शान्ति के प्रहरियों सम
ऊर्ध्वाकाश की एक जामुनी रंगीन शय्या पर लेटे बादलों से गुजरते
नीचे एक समृद्ध गोपनीयता और नीरवता को अवलोकते
और प्रकोष्ठीय पावन जलस्रोतों के अन्तर संगीत को सुनते हैं।
Enormous, whispering, many-formed around
High forest gods have taken in their arms
The human hour, a guest of their centuried pomps.
Apparelled are the morns in gold and green,
Sunlight and shadow tapestry the walls
To make a resting chamber fit for thee.”
विशालकाय, फुसफुसाते, अनेक आकार चहुं ओर हैं
इन उच्च वनदेवताओं ने निज हाथों में सम्भाल लिया है
आज इस मानवीय घड़ी को, जो उनकी शताब्दियों की इस शोभा की अतिथि है।
यहां प्रभात के स्वर्ण और हरित पोशाकों को पहिने
दीवारें धूप-छांह की कालीनों से सजी हैं
यहांतुम्हारे योग्य एक विश्राम-कक्ष निर्मित है।’’
Awhile she paused as if hearing still his voice,
Unwilling to break the charm, then slowly spoke.
Musing she answered: “I am Savitri,
Princess of Madra. Who art thou? What name
Musical on earth expresses thee to men?
सावित्री कुछ काल ठगी-सी खड़ी रही जैसे अभी भी उसकी वाणी सुनती हो,
और उस मोहिनी के जादू को तोड़ना न चाहती हो,
तब ध्यानमग्न-सी, वह धीरे से बोली, ‘‘मैंसावित्री हूं,
मद्रदेश की राजकुमारी। तुम कौन हो?
किस नाम का संगीत तुम्हें मनुजों में पहचान कराता है?
What trunk of kings watered by fortunate streams[402]
Has flowered at last upon one happy branch?
राजाओं के किस वंश की सौभाग्यशाली धाराओं से सींचे गये
किस प्रसन्न शाखा पर प्रस्फुटित पुष्प हो?
Why is thy dwelling in the pathless wood
Far from the deeds thy glorious youth demands,
Haunt of the anchorites and earth’s wilder broods,
Where only with thy witness self thou roam’st
In Nature’s green unhuman loneliness
Surrounded by enormous silences
And the blind murmur of primeval calms?”
क्यों इस जनहीन वन में तुम्हारा निवास है
निज कर्मक्षेत्र से दूर हो, जो तुम्हारी प्रतापी युवावस्था की मांग है,
यहां तो एकान्तवासियों और धरा के जंगली समूहों का वास है,
जहां तुम केवल आत्मसाक्षी के साथ अकेले विचरते हो
जड़-प्रकृति की हरित अमानवीय निर्जनता में
चहुं ओर से भीषण नीरवता से घिरे
और आदि प्रशान्ति की अन्धी गुंजारों के मध्य क्यों रहते हो?’’
And Satyavan replied to Savitri:
“In days when yet his sight looked clear on life,
King Dyumathsena once, the Shalwa, reigned
Through all the tract which from behind these tops
Passing its days of emerald delight
In trusting converse with the traveller winds
Turns, looking back towards the southern heavens,
And leans its flank upon the musing hills.
और सत्यवान् ने उसे उत्तर दिया:
‘‘अतीत दिवसों में जब उनकी दृष्टि जीवन को स्पष्ट देख सकती थी,
राजा द्युमत्सेन शाल्व नरेश थे, उनके साम्राज्य का विस्तार
इन पर्वत-शिखरों के पीछे जाते सकल विस्तृत पथों तक था
उनका साम्राज्य अपने हरे-भरे सुख के दिन बिताता
विश्वास-शाख से पूर्ण सागर में व्यापारी हवाओं से इसका सम्पर्क था
और यह पीछे की सीमा से मुड़कर दक्षिण के आकाश को छूता,
इसका पार्श्व-भाग इन चिन्तनमग्न पहाड़ियों पर टेक लगाये था।
But equal fate removed her covering hand,
A living night enclosed the strong man’s paths,
Heaven’s brilliant gods recalled their careless gifts,
Took from blank eyes their glad and helping ray
And led the uncertain goddess from his side.
किन्तु समदृष्टि विधि-नियन्ता ने निज सुरक्षा-कर उठा लिया।
उस वीर पुरुष के मार्गों को एक जीवित अन्धता ने घेर लिया
स्वर्ग के द्युतिमान देवताओं ने अपने उदार वरदानों को लौटा लिया,
उनकी रिक्त आंखो से उनकी प्रसन्नता और सहायक श्रीकिरण को छीन लिया
और उस चंचलालक्ष्मी देवी को उनके पार्श्व से दूर हटा दिया।
Outcast from empire of the outer light,
Lost to the comradeship of seeing men,
He sojourns in two solitudes, within
And in the solemn rustle of the woods.
बहिर्प्रकाश के निज साम्राज्य से बहिष्कृत,
दृष्टिवान् मनुष्यों कीसहयोगिता को खोकर,
वे अब दो एकान्तों में रमते हैं, अन्तर में
और इन वनों की मरमरी प्रशान्ति की ध्वनि में।
Son of that king, I, Satyavan, have lived
Contented, for not yet of thee aware,
In my high peopled loneliness of spirit
And this huge vital murmur kin to me,
Nursed by the vastness, pupil of solitude.
उस नृपति का पुत्र, मैं, सत्यवान्, यहां रहता रहा
सन्तुष्ट, क्योंकि अभी तक अपने विषय में अनजान था,
अपनी आत्मा के उच्च श्रेष्ठ समूहों के निज एकान्त में
और इस विशाल प्राण की ध्वनियों में बसता-जो मेरे अति समीप हैं,
मैं इस विशालता द्वारा पोषित, एकान्त का शिष्य हूं।
Great Nature came to her recovered child;
I reigned in a kingdom of a nobler kind
Than men can build upon dull Matter’s soil;
I met the frankness of the primal earth,
I enjoyed the intimacy of infant God.
महती प्रकृतिमाता ने अपने शिशु को फिर से अपना लिया है;
मैंने एक श्रेष्ठतर वर्ग का साम्राज्य पा लिया है
जो मन्द जड़तत्त्व की धरा पर मानव रचित राज्य से महत्तर है,
मैं इस आदिम पृथ्वी की निष्कपट सरलता से जुड़ा हूं,
यहां बाल-ईश्वर की आत्मीयता का सुख भोग रहा हूं।
In the great tapestried chambers of her state[403]
Free in her boundless palace I have dwelt
Indulged by the warm mother of us all,
Reared with my natural brothers in her house
I lay in the wide bare embrace of heaven,
The sunlight’s radiant blessing clasped my brow,
The moonbeam’s silver ecstasy at night
Kissed my dim lids to sleep. Earth’s morns were mine;
Lured by faint murmurings with the green-robed hours
I wandered lost in woods, prone to the voice
Of winds and waters, partner of the sun’s joy,
A listener to the universal speech:
My spirit satisfied within me knew
Godlike our birthright, luxuried our life
Whose close belongings are the earth and skies.
प्रकृति राज्य के महान् चित्रित भव्यकक्षों में,
उसके अनन्त प्रासाद में मुक्तभाव से मैं रहता हूं,
हम सबकी इस प्रेममयी माता के दुलार में मस्त हूं,
उसके घर में अपने प्राकृतिक भ्राताओं के साथ पला हूं।
स्वर्गलोक के विशाल खुले आलिंगन में सोता हूं,
दिनकर की धूप का दीप्तिमय आशीष मेरा मस्तक सहलाता है,
रात्रि में चन्द्र किरणों का रजत उल्लासमय हर्ष चूमकर
मेरी धुंधली पलकों को सुलाता है। धरती के प्रभात मेरे अपने हैं;
इन हरे परिधानों से सज्जित घड़ियों में मृदु मरमरी ध्वनियों से
खिंचा वनों में पथहारा घूमा हूं, हवाओं की सरसराहट
और जलधाराओं की ध्वनियों कीओर आकर्षित होता हूं,
सूर्य के हर्ष का भागीदार, वैश्विक वाचा का एक श्रोता हूं:
अन्तर में मेरी आत्मा संतुष्ट जानती है
देवतुल्य हमारे जन्माधिकार को, निज जीवन के वैभव को
ये पृथ्वी और अन्तरिक्ष जिसकी अभिन्न दुर्लभ सम्पत्ति हैं।
Before fate led me into this emerald world,
Aroused by some foreshadowing touch within,
An early prescience in my mind approached
The great dumb animal consciousness of earth
Now grown so close to me who have left old pomps
To live in this grandiose murmur dim and vast.
इससे पहले जब भाग्यविधाता मुझे इस पन्नगी हरित जग में लाया था,
मैं किसी अन्तर्निहित पूर्वाभासी स्पर्श के प्रति जाग्रत् था,
एक आदि भावी-ज्ञान मेरे चित्त में आ बसा था
धरती की इस महान् मूक पशु चेतना का यह ज्ञान
अब मेरे अति समीप है जब से मैं उन आडम्बरों को तज,
इन धूमिल और विशाल भव्य मृदु ध्वनियों में रहने आ गया।
As if to a deeper country of the soul
Transposing the vivid imagery of earth,
Through an inner seeing and sense a wakening came.
मैं उससे अपने आत्म-स्वप्न में भेंटा हूं।
जैसा कि आत्मा के गहनतर प्रदेश को
धरती की स्पष्ट चित्रावली स्थानान्तरित हो
मुझमें एक अन्तर्दृष्टि और चित्त में एक जागृति दे गयी है।
A visioned spell pursued my boyhood’s hours,
All things the eye had caught in coloured lines
Were seen anew through the interpreting mind
And in the shape it sought to seize the soul.
मेरे बालपन की घड़ियां दिव्य दर्शनों के दौर में बीती हैं,
वे सकल पदार्थ जो नेत्र ने सूक्ष्म रंगीन रेखाओं में धरे थे
और व्याख्याकारी मानस के माध्यम से पुन:नव-निरीक्षिका दृष्टि ने देखे
और फिर उस रूप में उनकी अन्तरात्मा को इसने खोजना सीखा।
An early child-god took my hand that held,
Moved, guided by the seeking of his touch,
Bright forms and hues which fled across his sight;
Limned upon page and stone they spoke to men.
आरम्भ से ही एक बाल-देवता ने निज करों में मेरा हाथ थाम लिया,
उसके स्पर्श ने ही संचालित कर मेरी जिज्ञासा का पथ-दर्शन किया,
चमकते आकार और रंग जो उसकी दृष्टि से उड़ते आते;
पृष्ठ और पाषाण पर आलोकित रेखाओं में वे मानव से बोलते।
High beauty’s visitants my inmates were.
वे उच्च सौन्दर्य के प्रवासी मेरे घनिष्ठ थे।
The neighing pride of rapid life that roams
Wind-maned through our pastures, on my seeing mood
Cast shapes of swiftness; trooping spotted deer
Against the vesper sky became a song[404]
Of evening to the silence of the soul.
तीव्र-जीवन का यह हिनहिनाता गर्वीला वैभव
जो हमारे घास के क्षेत्रों में हवा में अयाल उड़ाने दौड़ते,
मेरे द्रष्टा मनोभाव पर स्फूर्ति की आकृतियां छोड़ जाते हैं;
चितकबरे हिरणों के दौड़ते दल सांध्य नभ के सामने
मेरी आत्मा की नीरवता को अर्पित एक सांध्यगीत बन जाते।
I caught for some eternal eye the sudden
Kingfisher flashing to a darkling pool;
A slow swan silvering the azure lake,
A shape of magic whiteness, sailed through dream;
Leaves trembling with the passion of the wind
And wandering wings nearing from infinity
Lived on the tablets of my inner sight;
Mountains and trees stood there like thoughts from God.
Pranked butterflies, the conscious flowers of air,
The brilliant long bills in their vivid dress,
The peacock scattering on the breeze his moons
Painted my memory like a frescoed wall.
एक धूमिल होते सरोवर पर मैं हठात् एक श्वेत बगुले की
विद्युती कौंधन को किसी चिर-नेत्र सम मान लेता;
एक नीली झील को रजताभ बनाता एक राजहंस तैरता,
जादुई धवल एक आकार, जैसे स्वप्न के मध्य बहा जाता;
इस वायु के आवेश से इन पत्तों का कांप कर सिहरना,
तितलियों को छेड़ना, जो इस समीर के सचेत पुष्प हैं,
और नील अनन्तता में भटकते पक्षियों का लौटना
ये दृश्य मेरी अन्तर्दृष्टि के पट पर समाये रहते;
ये पर्वत और तरुवर प्रभु से आये विचारों सम अचल खडे़ हैं।
उज्ज्वल लम्बी चोंच के पक्षी अपनी विविध पोशाकों में सजे,
मयूर मस्त पवन पर अपने चन्द्राकारों को बिखेरते
मेरे स्मृति-पटल पर एक चित्रित दीवार सम रंग भर देते।
I carved my vision out of wood and stone;
I caught the echoes of a word supreme
And metred the rhythm-beats of infinity
And listened through music for the eternal Voice.
अपने अन्तर-दर्शन को मैं काष्ठ और पाषाण पर उकेरता;
सर्वोच्च शब्द ओऽम् की गूंजों को मैंधर लेता
और चिरन्तन के ताल में छन्दबद्ध कर लेता
और संगीत के माध्यम से शाश्वत की परा वाचा सुनता।
I felt a covert touch, I heard a call,
But could not clasp the body of my God
Or hold between my hands the World-Mother’s feet.
एक गोपित स्पर्श को अनुभव करता, एक आवाहन सुनता,
पर अपने प्रभु की काया का आलिंगन कभी न पा सका
या जगदम्बिके के चरणों को निज हाथों से कभी न धर सका।
In men I met strange portions of a Self
That sought for fragments and in fragments lived:
Each lived in himself and for himself alone
And with the rest joined only fleeting ties;
Each passioned over his surface joy and grief,
Nor saw the Eternal in his secret house.
मनुष्यों में परमात्मा के विचित्र अंशों को मैंने पाया है
वे जो अंशों को ही खोजते हैं और आंशिकता में ही बसते हैं:
प्रत्येक निज स्वभाव में और केवल स्वार्थ में एकाकी बन रहता
और बाकी समस्त से केवल क्षणिक बन्धनों से जुड़ता है;
प्रत्येक अपने सतही सुख और दुःख के आवेग में बसा है,
कोई भी अपने गुह्य गेह में बसे शाश्वत प्रभु को नहीं देख पाता।
I conversed with Nature, mused with the changeless stars,
God’s watch-fires burning in the ignorant Night,
And saw upon her mighty visage fall
A ray prophetic of the Eternal’s sun.
मैं विश्व-प्रकृति के साथ संलाप करता, इन अविकारी तारों के साथ ध्यान लगाता हूं,
ये इस अविद्या की अचित् रात्रि में प्रज्वलित प्रभु की प्रहरी ज्वालाएं हैं;
मैंने इस प्रकृति के बलवान् समर्थ मुख पर गिरते देखा
चिरन्तन के सूर्य की एक भावीसूचक दिव्यकिरण को।
I sat with the forest sages in their trance:
There poured awaking streams of diamond light,
I glimpsed the presence of the One in all.
वनवासी ऋषियों के साथ मैं समाधि में बैठा हूं:
वहां पर जाग्रत् धाराओं के हीरक प्रकाश को बरसते देखा,
वहीं पर मैंनेसर्वभूतात्मा में विद्यमान परमेंकम् का दर्शन पाया।
But still there lacked the last transcendent power
And Matter still slept empty of its Lord.
किन्तु तब भी वहां पर उस अन्तिम परा-शक्ति का अभाव है
और जड़तत्त्व अभी भी अपने प्रभु से निर्वासित सोया है।
The spirit was saved, the body lost and mute[405]
Lived still with Death and ancient Ignorance;
The Inconscient was its base, the Void its fate.
आत्मतत्त्व सुरक्षित है पर यह शरीर मूक औ‘ खोया
अभी तक घोर आदि अज्ञान से घिरा, मृत्यु देव के साथ रहता है;
अचित् जड़ता इसकी मूलाधार, चरम शून्यता इसका भाग्य है।
But thou hast come and all will surely change:
I shall feel the World-Mother in thy golden limbs
And hear her wisdom in thy sacred voice.
किन्तु अब तुम आ गयी हो और यह सब अवश्य बदल जायेगाः
मैं तेरे स्वर्णिम अंगों में जगजननी की अनुभूति पाऊंगा
और तेरी पुण्य वाचा में उसी की प्रज्ञावाणी सुनूंगा।
The child of the Void shall be reborn in God.
My Matter shall evade the Inconscient’s trance,
My body like my spirit shall be free:
It shall escape from Death and Ignorance.”
महाशून्य का यह बालक भगवत्ता में पुनः जन्म लेगा,
मेरा जड़तत्त्व इस घोर अचित् की समाधि से सुरक्षित निकल आयेगा।
मेरा शरीर भी मेरी आत्मा सम मुक्ति पा जायेगा।
यह यमराज और घोर अविद्या-पाश से अवश्य छूट जायेगा।’’
And Savitri musing still replied to him:
“Speak more to me, speak more, O Satyavan,
Speak of thyself and all thou art within;
I would know thee as if we had ever lived
Together in the chamber of our souls.
और अभी भी चिन्तन में डूबी सावित्री ने उत्तर दियाः
‘‘और बोलो, रुको नहीं, हे सत्यवान् कहते जाओ,
अपने विषय में और बताओ, निज अन्तर का रहस्य खोलते जाओ;
तब मैं तुम्हें पहचान जाऊंगी, समझ जाऊंगी कि हम जीवनों में
अपनी आत्माओं के कक्ष में सतत साथ रहे थे।
Speak till a light shall come into my heart
And my moved mortal mind shall understand
What all the deathless being in me feels.
तुम तब तक बोलते जाओ जब तक एक ज्योति मेरे हृदय में जाग न जाये
और मेरा द्रवित मानव-मन सब जान न ले और समझ न जाये
कि मेरी अन्तरवासी अमर सत्ता क्या अनुभव करती है।
It knows that thou art he my spirit has sought
Amidst earth’s thronging visages and forms
Across the golden spaces of my life.”
यह जानती है कि तुम वही हो जिसे मेरी आत्मा खोज रही है
इन धरा के असंख्य वदनों और आकारों के मध्य में
अपने जीवन के स्वर्णाकाशों को पार कर, तुम्हें ढूंढ़ती रही है।’’
And Satyavan like a replying harp
To the insistent calling of a flute
Answered her questioning and let stream to her
His heart in many-coloured waves of speech:
“O golden princess, perfect Savitri,
More I would tell than failing words can speak
Of all that thou hast meant to me, unknown,
All that the lightning flash of love reveals.
In one great hour of the unveiling gods
Even a brief nearness has reshaped my life.
और सत्यवान् ने एक प्रत्युत्तरी बीन सम
एक बांसुरी की आग्रही पुकार पर गुंजित हो
सावित्री के प्रश्नों के उत्तर में निज हृदय की
विविधरंगी लहरों से पूरित वाणी की धारा उसकी ओर बहा दीः
‘‘ओ स्वर्णमयी राजकुमारी, परिपूर्णा सावित्री,
ये असफल शब्द जितना कह सकते हैं, मैं उससे अधिक बताऊंगा,
हे अपरिचिता, तू मेरे लिए कितनी विशेष है, सब सुनाऊंगा,
देवताओं द्वारा उद़्घाटित इस महती एक घड़ी में
प्रेम की इस विद्युती-चमक ने जो सब प्रकटाया है।
इस नन्ही क्षणिक समीपता ने मेरे जीवन का नव-रूपायण कर दिया है।
For now I know that all I lived and was
Moved towards this moment of my heart’s rebirth;
I look back on the meaning of myself,
A soul made ready on earth’s soil for thee.
क्योंकि अब मैं जान गया कि जिस सब के लिए मैं जीवित रहा हूं
वह संचालित हो रहा था मेरे हृदय के पुनर्जन्म के इस मुहूर्त की ओर;
मैंने पीछे मुड़कर निज सत्ता के अर्थ को खोजा तो पाया,
कि तेरे लिए ही इस धरती की माटी पर यह मेरा जीव रचा गया।
Once were my days like days of other men:
To think and act was all, to enjoy and breathe;[406]
This was the width and height of mortal hope:
Yet there came glimpses of a deeper self
That lives behind life and makes her act its scene.
कभी मेरे दिवस भी अन्य पुरुषों सम बीतते थेः
विचार करना, कर्म करना, सुख के श्वास में जीना ही जीवन था;
मर्त्य-आशा की इतनी ही पहुंच और विस्तार थाः
तथापि कभी कदा एक महत्तर अन्तर-सत्ता की झलकें आ जातीं
जो हमारे प्राण के पीछे गोपित है और कर्म को अपना दृश्यपट बनाती है।
A truth was felt that screened its shape from mind,
A Greatness working towards a hidden end,
And vaguely through the forms of earth there looked
Something that life is not and yet must be.
एक सत्य अनुभव आया जो मन से निज रुप को छिपा रखता है,
एक दिव्य महानता को पाया जो एक प्रच्छन्न उद्देश्य के प्रति कार्यरत है,
और पार्थिव आकारों के मध्य अस्पष्ट-सा कुछ दिखलायी दिया
कुछ था जो अभी तक जीवन में नहीं है पर उसे होना ही होगा।
I groped for the Mystery with the lantern, Thought.
इस गुह्य रहस्य को मैंने निज विचारशक्ति के प्रकाश में खोजा।
Its glimmerings lighted with the abstract word
A half-visible ground and travelling yard by yard
It mapped a system of the Self and God.
जिसकी टिमटिमाहटें उस अमूर्त शब्द से आलोकित थीं
यह एक अर्ध-प्रकाश का धूमिल क्षेत्र है और पग-पग यात्रा करते हुए
इसने जीवात्मा और परमेश्वर की प्रणाली का मानचित्र आंक लिया है।
I could not live the truth it spoke and thought.
किन्तु जिस सत्य को इसने उच्चारा और मनन किया उसे मैं जी नहीं सका।
I turned to seize its form in visible things,
Hoping to fix its rule by mortal mind,
Imposed a narrow structure of world-law
Upon the freedom of the Infinite,
A hard firm skeleton of outward Truth,
A mental scheme of a mechanic Power.
अतः मैं ईश के आकार को दृश्य पदार्थों में धर लेने मुड़ गया,
इस आशा में कि इसके विधान को नश्वर बुद्धि से निश्चित कर लूंगा,
मैंने जग-विधान का एक सीमित आकार
अनन्तता की स्वतन्त्र स्वाधीनता पर आरोपित कर दिया,
यह विधान आदि सत्य का एक बाहरी कठोर दृढ़ ढांचा है,
एक यान्त्रिक महाऊर्जा की एक मानसिक योजना है।
This light showed more the darknesses unsearched;
It made the original secrecy more occult.
It could not analyse its cosmic veil
Or glimpse the Wonder-worker’s hidden hand
And trace the pattern of his magic plans.
इस प्रकाश ने तो संधानहीन इस अचित् अन्धकार को और गहरा कर दिया;
इसने आदि गुह्य रहस्य को और गूढ़ बना दिया;
यह अपने पर आवरण सम पड़ी वैश्विक माया का विश्लेषण न कर पाया
और उसकी जादुई योजनाओं की रुपरेखा का पता न लगा पाया।
I plunged into an inner seeing Mind
And knew the secret laws and sorceries
That make of Matter mind’s bewildered slave.
The mystery was not solved but deepened more.
तब मैं एक अन्तर्द्रष्टा उच्चतम के अन्तर में डूब गया
और गुह्य विधानों और मायाजालों का ज्ञान पा लिया
जिसने जीव को जड़तत्त्व के मानस का भ्रमित दास बना दियाः
पर यह रहस्य सुलझ न पाया और गूढ़ बनता गया।
I strove to find its hints through Beauty and Art,
But Form cannot unveil the indwelling Power;
Only it throws its symbols at our hearts.
तब आत्म-सौन्दर्य और कला द्वारा इसके संकेतों को पढ़ने का प्रयास किया,
किन्तु आत्माकार भी अन्तर्वासी परमाशक्ति को नहीं प्रकटा सका
केवल यह हमारे प्रतीकों द्वारा हमारे हृदय पर क्षेपण करता है।
It evoked a mood of self, invoked a sign
Of all the brooding glory hidden in sense:
I lived in the ray but faced not to the Sun.
यह आत्मसत्ता में एक मनोभाव को जगा देता है,
इन्द्रियबोध में गोपित आत्मनिमग्न समस्त महिमा का संकेत देता हैः
मैं उस किरण में बस गया किन्तु सूर्य के समक्ष न पहुंच पाया।
I looked upon the world and missed the Self,
And when I found the Self, I lost the world,
My other selves I lost and the body of God,[407]
The link of the finite with the Infinite,
The bridge between the appearance and the Truth,
The mystic aim for which the world was made,
The human sense of Immortality.
इस संसार को देखता रहा और परमात्वतत्त्व को खो दिया,
और जब परमात्मा को पाया तो जग से विमुख हो गया,
मैंने अपनी अन्य सत्ताओं और प्रभु की इस काया को,
असत् को सत् से जोड़ते अपने इस सूत्र को खो दिया,
भागवत सत्य और इस प्रतीयमान जग के मध्य बने इस सेतु को,
उस गुह्य लक्ष्य को जिसके लिए यह संसार रचा गया है,
एवं दिव्य-अमरत्व के मानवीय बोध को खो दिया है।
But now the gold link comes to me with thy feet
And His gold sun has shone on me from thy face.
किन्तु अब वह स्वर्ण सूत्र तेरे चरणों से चल मुझ तक आया है
और तेरी मुख-श्री में प्रभु का स्वर्ण सूर्य आज फिर चमका है।
For now another realm draws near with thee
And now diviner voices fill my ear,
A strange new world swims to me in thy gaze
Approaching like a star from unknown heavens;
A cry of spheres comes with thee and a song
Of flaming gods. I draw a wealthier breath
And in a fierier march of moments move.
क्योंकि तेरे साथ एक नया साम्राज्य मुझे आज खींच रहा है
और अब मेरे कानों में दिव्यतर ध्वनियां गूंज रही हैं,
अज्ञात देवलोकों से एक तारे समान चमकती
एक विचित्र नव-सृष्टि तेरी चितवन में तैरती मेरी ओर आ रही है;
महत्-स्तरों की एक पुकार और दीप्तिमान देवों का एक गान तू साथ लायी है।
एक प्राणदायी समृद्ध श्वास मेरे वक्ष में भरता जाता है
और पलों के गति-संचालन का आवेग आज अति तीव्र है।
My mind transfigures to a rapturous seer.
मेरा मन एक प्रेमसमाधि में मग्न ऋषि में परिवर्तित हो गया है।
A foam-leap travelling from the waves of bliss
Has changed my heart and changed the earth around:
All with thy coming fills. Air, soil and stream
Wear bridal raiment to be fit for thee
And sunlight grows a shadow of thy hue
Because of change within me by thy look.
परमानन्द की लहरों से उड़ते एक फेनिल उछाल ने
मेरे हृदय को और इस चहुं ओर की पृथ्वी को बदल डाला हैः
तेरे आगमन से सकल सृष्टि परिपूर्ण हो गयी है।
पवन, धरा और धारा ने तेरे उपयुक्त वधू की रूपसज्जा की है
और सूर्य की धूप भी जैसे तेरे रंग की एक छाया-भर बन रह गयी है
क्योंकि तुझे देख मेरा अन्तर बाहर सब परिवर्तित हो गया है।
Come nearer to me from thy car of light
On this green sward disdaining not our soil.
निज ज्योति के इस रथ से उतर अब मेरे और समीप आ जाओ
इस हरित वनस्थली पर उतरो इस हमारी धरती को न ठुकराओ।
For here are secret spaces made for thee
Whose caves of emerald long to screen thy form.
क्योंकि यहां के ये गुप्त निकुंज तेरे लिए ही बने हैं
इनकी पन्नगी कंदराएं तेरे वदन का पट बनने को लालायित हैं।
Wilt thou not make this mortal bliss thy sphere?
क्या आज तू मर्त्य आनन्द के इस क्षेत्र को नहीं अपनायेगी?
Descend, O Happiness, with thy moon-gold feet,
Enrich earth’s floors upon whose sleep we lie.
हे आनन्दमयि, उतर, निज शशि-स्वर्ण चरणों को धरती पर धर
इसके धरातल को वैभव प्रदान कर जिसकी गोद में हम सोये हैं।
O my bright beauty’s princess, Savitri,
By my delight and thy own joy compelled
Enter my life, thy chamber and thy shrine.
ओ मेरी सौन्दर्य की राजकुमारी, तेजस्विनी सावित्री,
ओ मेरे सुख और अपने हर्षातिरेक की बन्दिनी, प्रेम से बाध्य होकर
मेरे जीवन के प्रांगण में निज कक्ष और निज देवालय में प्रवेश कर।
In the great quietness where spirits meet,
Led by my hushed desire into my woods
Let the dim rustling arches over thee lean;
One with the breath of things eternal live,
Thy heartbeats near to mine, till there shall leap
Enchanted from the fragrance of the flowers[408]
A moment which all murmurs shall recall
And every bird remember in its cry.”
इस महती नीरवता में जहां दो आत्माएं मिली हैं,
मेरी मौन कामना की अनुगत बन मेरे वनों में आ जा
इन धूमिल सरसराते तोरणों को निज देह पर झुक आने दे;
वस्तुओं के प्राणश्वास से एकाकार बना शाश्वत रहता है,
अपने प्राण की धड़कनों को मेरे हृदय के इतने समीप आने दे,
जिससे इस मधुर मोहक घड़ी में इन पुष्पों की सुगंध सदा के लिए बस जाये,
जिसे भविष्य में ये सकल मरमरी ध्वनियां याद करें
और जो प्रत्येक विहग की कुहुक में एक स्मृति बन गूंजें।’’
Allured to her lashes by his passionate words
Her fathomless soul looked at him from her eyes;
Passing her lips in liquid sounds it spoke.
उसके प्रेमपगे शब्दों से नख-शिख तक आकर्षित हो
सावित्री की अगाध-आत्मा ने उसे निज नयनों से निहारा;
फिर उसके अधरों से तरलवाणी बनकर फूट पड़ी।
This word alone she uttered and said all:
“O Satyavan, I have heard thee and I know;
I know that thou and only thou art he.”
उसने केवल ये शब्द उच्चारे और इनमें ही निज अन्तर खोल दियाः
‘‘हे सत्यवान्, तुम्हारे वचन सुन मैं जान गयी हूं;
केवल तुम ही वह हो, तुम्हीं हो, मैं पहचान गयी हूं।’’
Then down she came from her high carven car
Descending with a soft and faltering haste;
Her many-hued raiment glistening in the light
Hovered a moment over the wind-stirred grass,
Mixed with a glimmer of her body’s ray
Like lovely plumage of a settling bird.
तब वह अपने उच्च रथ से नीचे उतर आयी
शीघ्रता से उतरते हुए मृदु चरणों पर कुछ लड़खड़ायी;
उसकी रंगीन चुनरी धूप में झिलमिलायी
उसकी तन-आभारश्मि के संग मिलकर
वायु से कांपती दूर्वा पर एक क्षण को लहराकर,
ठहर गयी, एक विहगी के सुन्दर पंखों सम फड़फड़ाकर।
Her gleaming feet upon the green gold sward
Scattered a memory of wandering beams
And lightly pressed the unspoken desire of earth
Cherished in her too brief passing by the soil.
उसके ज्योतिर्मय चरणों पर उस हरित स्वर्णिम दूर्वा पर
भ्रमित विचरण करती किरणों ने एक स्मृति बिखेर दी
और धरा की अनकही कामना धीरे से सहला दी
माटी ने निज अन्तर में उस क्षणिक स्पर्श को प्रेम से सहेज लिया।
Then flitting like pale brilliant moths her hands
Took from the sylvan verge’s sunlit arms
A load of their jewel faces’ clustering swarms,
Companions of the spring-time and the breeze.
तब निज पीत कोमल जुगनू सम चमकते हाथों से
सावित्री ने वनीय लता की धूप में चमकती शाखाओं से
उनके रत्नों सम शोभित मुख वाले पुष्प गुच्छों को चुन लिया,
वसंत ऋतु और समीर के उन सहचरों को झोली में भर लिया।
A candid garland set with simple forms
Her rapid fingers taught a flower song,
The stanzaed movement of a marriage hymn.
सरलाकार की एक वरमाला सहजभाव से बना ली
उसकी अंगुलियों ने मानों एक पुष्प गीत की रचना कर दी,
जिसकी पदावलियां लग्न संगीत के मन्त्रों को उच्चारती थीं।
Profound in perfume and immersed in hue
They mixed their yearning’s coloured signs and made
The bloom of their purity and passion one.
रंगीन आभा से रंजित और सुगंधि से महकते
उसने अपनी लालसा के रंगीन चिह्नों को मिश्रित किया
और अपने पावन और शुचि-कामावेश को पुष्प से एकाकार कर दिया।
A sacrament of joy in treasuring palms
She brought, flower-symbol of her offered life,
Then with raised hands that trembled a little now
At the very closeness that her soul desired,
This bond of sweetness, their bright union’s sign,
She laid on the bosom coveted by her love.
अमूल्य अंजलियों में निज हर्ष का एक अनुष्ठान संजो
सावित्री अपने अर्पित प्राण का पुष्प प्रतीक ले आयी,
तब निज करों को उठा जो अब तनिक कांप रहे थे
अपनी आत्मा के इष्ट को इतने समीप पाकर,
इस माधुर्य के बन्धन को, उनके उज्ज्वल एकत्व के चिह्न को,
निज प्रेम द्वारा अभिलाषित प्रिय वक्ष पर पहना दिया उस माला को।
As if inclined before some gracious god[409]
Who has out of his mist of greatness shone
To fill with beauty his adorer’s hours,
She bowed and touched his feet with worshipping hands;
She made her life his world for him to tread
And made her body the room of his delight,
Her beating heart a remembrancer of bliss.
फिर जैसे किसी महिमाशाली देवता के सामने हो
जो निज धुंध के बाहर महानता से दीप्तिमान हो
अपने आराधक की घड़ियों को सुरम्यता से परिपूर्ण करने को,
सावित्री ने नमन कर उसके चरणों को भक्ति भरे हाथों से स्पर्श किया,
उसने निज जीवन उसके चरणों को भक्ति भरे हाथों से स्पर्श किया,
उसने निज जीवन उसके संसार के अधीन कर अर्पित कर दिया
और निज काया को उसके भोग-सुख का कक्ष बना दिया,
उसका स्पन्दित हृदय आनन्द का एक अनुस्मारक बन गया।
He bent to her and took into his own
Their married yearning joined like folded hopes;
As if a whole rich world suddenly possessed,
Wedded to all he had been, became himself,
An inexhaustible joy made his alone,
He gathered all Savitri into his clasp.
सत्यवान नीचे झुक आया और उसे अपने में समेट लिया
आशाओं सम लिपट कर परिणय की लालसा ने उन्हें जोड़ दिया;
मानों हठात् एक सम्पूर्ण समृद्ध संसार उसका अपना हो गया,
उन सबसे गठबन्धित वह पहले से था, अब वह स्वयं सत्ता बन गया,
एक अविनाशी हर्ष केवल उसका अपना हो गया,
उसने सावित्री को निज आलिंगन में भर लिया।
Around her his embrace became the sign
Of a locked closeness through slow intimate years,
A first sweet summary of delight to come,
One brevity intense of all long life.
उसका आलिंगन सावित्री के चहुं ओर वह चिह्न बन गया
एक आबद्ध समीपता का जो घनिष्ठ वर्षों के मध्य शनैः शनैः अंकित होगा,
यह आने वाले सुख का एक प्रथम मधुर सारांश था,
सकल दीर्घ जीवन का एक लघु रुप था।
In a wide moment of two souls that meet
She felt her being flow into him as in waves
A river pours into a mighty sea.
दो आत्माओं के मिलन के उस एक विशाल क्षण में
सावित्री ने निज सत्ता को उसके अन्तर में लहराकर प्रवेश करते
ऐसे अनुभव किया कि सरिता विशाल सिंधु में गिरती है जैसे।
As when a soul is merging into God
To live in Him for ever and know His joy,
Her consciousness was a wave of him alone
And all her separate self was lost in his.
अथवा एक आत्मा प्रभु में यथा लीन होने जाती है
ईश्वर में सतत बसने और उसके आत्मानन्द में डूब जाने,
उसकी चेतना अब केवल उसी के प्रति सचेत थी
और उसकी पृथक् सम्पूर्ण सत्ता उसी में जा खो गयी थी।
As a starry heaven encircles happy earth,
He shut her into himself in a circle of bliss
And shut the world into himself and her.
ज्यों मोदभरी धरा को एक तारा-मण्डित व्योम घेरे हो
उसने सावित्री को निज व्यक्तिसत्ता के आनन्दवृत्त में बन्द कर लिया
और उसको तथा सकल जग को निज में कैद कर लिया।
A boundless isolation made them one;
He was aware of her enveloping him
And let her penetrate his very soul,
As is a world by the world’s spirit filled,
As the mortal wakes into Eternity,
As the finite opens to the Infinite.
Thus were they in each other lost awhile,
Then drawing back from their long ecstasy’s trance
Came into a new self and a new world.
उस असीम निर्जनता ने उनको एकत्व में बांध दिया;
वह अपने को आवेष्टित करती उसकी व्यक्तिसत्ता के प्रति सचेत था
और उसने सावित्री को अपनी अन्तरात्मा तक विंध जाने दिया
मानों एक जगत् को दूसरे जगत् की आत्मा ने भर दिया,
जैसे कि चिरन्तनता में नश्वरता जाग उठी हो,
ज्यों अनित्यता नित्यता की ओर उद़्घाटित हो गयी हो
इस प्रकार वे दोनों एक-दूसरे में कुछ काल खोये रहे,
फिर अपनी दीर्घ भावसमाधि से जाग अलग हो गये
एक नवचेतना और एक नये संसार में आ गये।
Each now was a part of the other’s unity.[410]
The world was but their twin self-finding’s scene
Or their own wedded being’s vaster frame.
अब वे दोनों एक दूसरे की एकता के परिपूरक भाग थे,
यह संसार अब उनकी अभिन्न आत्म-उपलब्धि का क्षेत्र था
या उनका परिणीत सत्ता का अपना ही विशालतर ढांचा था।
On the high glowing cupola of the day
Fate tied a knot with morning’s halo threads
While by the ministry of an auspice-hour
Heart-bound before the sun, their marriage fire,
The wedding of the eternal Lord and Spouse
Took place again on earth in human forms:
In a new act of the drama of the world
The united Two began a greater age.
इस पुण्य-दिवस के उच्च प्रकाशमय छत्र के तले
सौभाग्य ने प्रभात के आभामण्डलीय सूत्रों से उन्हें गठबन्धित किया
जब कि एक शुभलग्न के पुरोहित ने सूर्य के सामने
जो उनके विवाह की अग्नि था उनके हृदयों को बांध दिया।
एक बार पुनः इस धरती पर मानववेष में
सृष्टि के स्वामी और शक्तिरूपा भार्या का विवाह सम्पन्न हुआः
इस जगत् के नाटक में एक नया दृश्य आज जुड़ गया
एकात्म बन चिर-युगल ने एक महत्तर युग आरम्भ कर दिया।
In the silence and murmur of that emerald world
And the mutter of the priest-wind’s sacred verse,
Amid the choral whisperings of the leaves
Love’s twain had joined together and grew one.
उस पन्नगी वन जग की उस नीरवता और मरमराहट में
और मरुत पुरोहित के सरसराते पावन मन्त्र में,
तरु-पल्लवों की समवेत फुसफुसाहट के मध्य
दिव्य-प्रेम के युगल साथ जुड़कर एक हो गये।
The natural miracle was wrought once more:
In the immutable ideal world
One human moment was eternal made.
एक बार फिर से वह स्वाभाविक सहज चमत्कार घटित हुआ थाः
इस अविकारी आदर्श जगत् में
एक मानव-काल का मुहूर्त शाश्वत बन गया।
Then down the narrow path where their lives had met
He led and showed to her her future world,
Love’s refuge and corner of happy solitude.
तब उस संकीर्ण पगडण्डी से जो उनके जीवन का मिलन-बिन्दु था,
वह सावित्री को उसका भावी संसार दिखाने नीचे ले आया,
यह प्रेम का आश्रयस्थल और प्रसन्न-एकान्त का कोना था।
At the path’s end through a green cleft in the trees
She saw a clustering line of hermit-roofs
And looked now first on her heart’s future home,
The thatch that covered the life of Satyavan.
इस मार्ग के अन्त में वृक्षों के मध्य बने एक हरित झरोखे से
उसे तपस्वियों की कुटियों की छतों का एक झुण्ड दिखायी दिया,
उसने इस तरह सर्वप्रथम निज प्राण के भावी आवास का दर्शन किया,
सत्यवान् के जीवन को सुरक्षा प्रदान करती उस पर्णकुटी को देखा।
Adorned with creepers and red climbing flowers
It seemed a sylvan beauty in her dreams
Slumbering with brown body and tumbled hair
In her chamber inviolate of emerald peace.
लाल पुष्पित वनलताओं से घिरी और सज्जित संवरी
यह उसे निज सपनों में दिखी वन-सुन्दरी सम लगी,
जिसकी गंदुमी काया निज केशों को बिखराये थी
अपने हरित शान्ति के पन्नगी कक्ष में अक्षत भाव से सो रही थी।
Around it stretched the forest’s anchorite mood
Lost in the depths of its own solitude.
इसके चहुं ओर वन का एकाकी परिवेश फैला हुआ
स्वयं अपनी ऐकान्तिकता में खोया था।
Then moved by the deep joy she could not speak,
A little depth of it quivering in her words,
Her happy voice cried out to Satyavan:
“My heart will stay here on this forest verge
And close to this thatched roof while I am far:[411]
Now of more wandering it has no need.
सावित्री एक गहन आनन्द से द्रवित हो बोल न सकी,
कठिनाई से एक लघु गम्भीरता उसके कम्पित शब्दों में उभर आयी
और हर्षाकुल उसकी वाणी सत्यवान् से बोलीः
‘‘मैं निज प्राण को इस वन की घाटी में छोड़े जा रही हूं
यह इस पर्णकुटी के समीप रहेगा जब कि मैं दूर रहूंगीः
अब और भ्रमण करने भटकने की इसे आवश्यकता नहीं रही।
But I must haste back to my father’s house
Which soon will lose one loved accustomed tread
And listen in vain for a once cherished voice.
किन्तु मुझे तुरन्त ही निज पितृगृह लौटना है
जिसे शीघ्र ही अपनी प्रियपुत्री की चरणचाप सुनने की आदत तज देनी है
और जिसकी बचपन की दुलारी वाणी सुनने का प्रयास निष्फल रहेगा।
For soon I shall return nor ever again
Oneness must sever its recovered bliss
Or fate sunder our lives while life is ours.”
क्योंकि मैं शीघ्र ही यहां लौट आऊंगी
और इस एकत्व से प्राप्त सुख को पुनः कभी नहीं गंवाऊंगी,
या जब तक हमारा जीवन है नियति भी उसे अलग नहीं कर पायेगी।’’
Once more she mounted on the carven car
And under the ardour of a fiery noon
Less bright than the splendour of her thoughts and dreams
She sped swift-reined, swift-hearted but still saw
In still lucidities of sight’s inner world
Through the cool scented wood’s luxurious gloom
On shadowy paths between great rugged trunks
Pace towards a tranquil clearing Satyavan.
एक बार फिर वह निज रथ पर आरूढ़ हो गयी
और एक तपती दोपहरी की उस धूप में
जो उसके विचारों और सपनों के तेज की अपेक्षा मद्धिम थी
उसका रथ तीव्र गति से दौड़ पड़ा, उसका हृदय-स्पन्दन भी तीव्र था, फिर भी
दृष्टि के अन्तर्जगत् की स्थिर विशालताओं में देख सकी
उस शीतल सुगन्धित वन की वैभवपूर्ण उदासी के मध्य
विशाल खुरदुरे वृक्ष-तनों के बीच के छायादार मार्ग पर
टहलते सत्यवान् को जाते एक शान्त स्पष्ट खुले क्षेत्र की ओर।
A nave of trees enshrined the hermit thatch,
The new deep covert of her felicity,
Preferred to heaven her soul’s temple and home.
वृक्षों का एक झुरमुट उस तपस्वी कुटीर को घेरे था,
जो उसके आनन्द का नूतन गहन आश्रयस्थल था,
यह उसकी आत्मा का मन्दिर और धाम जो स्वर्ग से भी प्रियतर था।
This now remained with her, her heart’s constant scene.[412]
यही दृश्य उसके नयनों और अन्तर में सदा के लिए अब बस गया था।
END OF CANTO THREE
END OF BOOK FIVE