लेखक: आलोक पांडे गायिका : ज्योतिका
माँ अब बस डूब जाऊँ मैं तुममें
खो दूँ मैं सारी ही पहचान तुममें l
ना मैं ही रहूँ ना ये संसार सारा
सभी में मैं देखूँ तेरा ही नजारा
जहाँ भी मैं देखूँ तुम्हें ही मैं देखू
तुम्हारे सिवा और कुछ भी ना देखूँ l
सांसे मेरी बस तेरी जिंदगी हो
मेरी धड़कनें तेरी ही रागिनी हो
रक्त की बूँदें सारी हो तुझपर समर्पित
हरेक कोशिका तेरी ही वंदिनी हो l
हृदय में मेरे प्रेम तेरा ही पनपे
जहां भाव जायें तेरा प्रेम जन्मे
मेरे सब विचारों में तू ही तू चमके
वाणी में माँ बस तेरा रस ही बरसे l
बस इतनी अरज माँ मेरी मान लेना
रहूँ मैं कहीं भी ना तुम दूर होना
भटकू यदि तो भी तुम साथ रहना
गिरूं मैं अगर तो माँ तुम थाम लेना l
लूँ कितने जनम कितने ही बार मृत्यु
मगर दोनों में तेरा ही बस दरस हो
हरेक देह में बस करूँ तेरी सेवा
तेरा प्रेम ही मेरे जीवन का रस हो l
ना कुछ चाहिये ना ही कुछ और मांगूं
सदा सर्वदा बस तुम्हें ही मैं चाहूँ l
About Savitri | B1C3-11 Towards Unity with God (pp.31-33)