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At the Feet of The Mother

‘The Mother’ – Chapter 6 (b) Four Great Aspects of the Mother (text in Hindi)

Chapter 6 (b) Four great Aspects (चार महारूप)

माता इस विश्वब्रह्माण्ड का जो परिचालन और जगन्नाट्य-संबंधी जो कार्य करती हैं उसमें उनके चार महारूप विशेष रूप से सामने प्रकट हैं, ये उनकी प्रमुख शक्तियों और विग्रहों में से चार हैं। प्रथमा हैं उनकी विग्रहभूता प्रशांत विशालता, सर्वव्यापिनी ज्ञानवत्ता, अचंचल मङ्गलमयता, अशेष निःशेष करुणा, अतुल अद्वितीय महिमा और विश्वराट् गौरव-गरिमा। द्वितीया हैं मूर्तिमान् उनका भास्वर वीर्य और अदम्य आवेग, उनका रणोद्यत उन्मादभाव और सर्वजय संकल्प, उनका अति क्षिप्र प्रचण्ड वेग और प्रखर प्रलयंकर प्रताप। तृतीया हैं, कान्तिमयी, माधुर्यमयी और आश्चर्यमयी; सौंदर्य, सामंजस्य और छन्द-लालित्य का सारा निगूढ़ रहस्य उन्हीं में है; अति विचित्र और अति सूक्ष्म उनकी बहुविध संपदा है, दुर्निवार उनका आकर्षण और परम मनोहारिणी उनकी छवि है। चतुर्थी हैं उनकी आंतर ज्ञानवत्ता और सावधान निर्दोष कर्मकुशलता और समस्त विषयों में उनकी प्रशांत और यथावत् संसिद्धि की सहज अथाह क्षमता से विभूषिता मातृमूर्ति। ज्ञान, बल, सामंजस्य और संसिद्धि, माता के पृथक्-पृथक् विशिष्ट लक्षण हैं और इन्हीं शक्तियों को वे अपने साथ इस जगत् में ले आती हैं, अपनी विभूतियों में मानवीय आवरण को आश्रय कर उन्हें प्रकट करती हैं; और जो लोग माता के साक्षात् जीते-जागते प्रभाव की ओर अपनी पार्थिव प्रकृति को उद्घाटित कर रख सकेंगे उनमें वे अपनी ऊर्ध्व दिव्य स्थिति के धर्म के अनुसार अपनी इन शक्तियों को प्रतिष्ठित करेंगी। माता के इन महारूपचतुष्टय को हम इन चार महानामों से पुकारते हैं — महेश्वरी, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती।

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Between the age of eighteen and twenty I had attained a conscious and constant union with the divine Presence and that I had done it all alone.